शनिवार, 29 दिसंबर 2012


शब्दों का और भावों का निरिक्षण करते हुए दूसरों के मान सम्मान को प्रमुखता देना ही संस्कारवान होने के लक्षण होते है , जो लोग कर्मों और शब्दों में फर्क करते है वे सदा दूसरों को दुःख देकर स्वयं भी सुखी नहीं हो सकते ! ईश्वरीय बनायीं रिश्ते  चाहे वह घर परिवेश से हो या सामाजिक दायरे के हो सर्वप्रथम कसौटी है जो एक दूसरे के आत्मस्वाभिमान की रक्षा व् इंसानियत का प्रति हम सबका प्रथम धर्म होना अनिवार्य है !

कुछ लोगों का अभिमत है कि बच्चे का जीवन सफेद कागज जैसा होता है. उस पर व्यक्ति जैसे चाहे, वैसे चित्र उकेर सकता है. बच्चे को जिस दिशा में मोड़ना हो सरलता से मोड़ा जा सकता है. एक दृष्टि से यह मन्तव्य सही हो सकता है पर यह सर्वांगीण दृष्टिकोण नहीं है. क्योंकि हर बच्चा अपने साथ आनुवंशिकता लेकर आता है, गुणसूत्र (क्रोमोसोम) और संस्कारसूत्र (जीन्स) लेकर आता है. सामाजिक वातावरण भी उसके व्यक्तित्व का एक घटक है. इसका अर्थ यह हुआ कि संस्कार-निर्माण के बीज हर बच्चा अपने साथ लाता है. सामाजिक या पारिवारिक वातावरण में उसे ऐसे निमित्त मिलते हैं, जिनके आधार पर उसके संस्कार विकसित होते हैं.

शिक्षा का अंतिम लक्ष्य सुंदर चरित्र है। मनुष्य के व्यक्तित्व के सभी पहलुओं का पूर्ण और संतुलित विकास करता है। इसके अंतर्गत बच्चों का भावनात्मक और आध्यात्मिक विकास ही होता है।उच्च स्तरीय शिक्षा द्वारा बच्चों में पाँचों मानवीय मूल्यों सत्य, प्रेम, धर्म, अहिंसा और शांति का विकास होता है।आज की शिक्षा मनुष्य को विद्वान एवं कुशल डॉक्टर, इंजीनियर या अफसर तो बना देती है परंतु वह अच्छा चरित्रवान इंसान बने यह उसमें होने वाले संस्कारों पर निर्भर करता है।एक पक्षी को ऊँची उड़ान भरने के लिए दो सशक्त पंखों की आवश्यकता होती है उसी प्रकार मनुष्य को भी जीवन के उच्च लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दोनों प्रकार की शिक्षा की आवश्यकता होती है। सांसारिक शिक्षा उसे जीविका देती है और आध्यात्मिक शिक्षा उसके जीवन को मूल्यवान बनाती है।

आज अंतरराष्ट्रीय बाल दिवस है.आयें हम बड़े  लोग अपने बच्चों को उचित संस्कार देते हुए अपने देश का गौरव बदाएं !

                                              मन 

मन बहुत कोमल होता है और इसको वश में रखना कठोर व्रत  के समान होता है ! यदि मन अंतर्द्वंद  का शिकार होता है  तो प्राणी   का मस्तिष्क असंतुलित हो जाता है! जिन मनुष्य का मन शीघ्र  विचलित हो जाता है उसके परिवार में अनुशाषनहीनता  , अवव्यवस्था  , दुराचार जैसे गुण  पनपने लगते हैं ! मनोनिग्रह   अत्यंत महत्वपूर्ण धरोहर है ! इसके बिना न तो आत्मिक संतोष और न ही समृद्धि  प्राप्त होती है ! प्रत्येक  मनुष्य का मन भिन्न भिन्न आनंद में संतोष  प्राप्त करता है ! भौतिक आनंद जिसमें  भौतिक सुखों  की  वृद्धि  के लिए हर पल  अग्रसर रहता है  और फलांक्षा  में मन  में संतोष अथवा तृष्णा धारण कर  लेता है किन्तु जिस मन को आलौकिक  आनद  को  प्राप्त  करना होता है व् ब्रह्म  ज्ञान  की खोज  में  तत्पर रहता है वह अपने को  ईश्वर के हवाले  कर हरेक परिस्तिथि में संतोष और आनद प्राप्त करता है ! मन  को तीन शक्तियाँ अपने नियंत्रण में रखती है -सतोगुण , रजोगुण  और तमोगुण ! प्रत्येक व्यक्ति के मन में इन तीनो शक्तियों  का स्वरुप विद्यमान रहता है ! बस  अनुपात का फर्क ही एक मनुष्य को  दूसरे से अलग करता है ! 
 मानव मन में अस्तिरथा  की स्तिथि का कारण भी यही है ! इस मन के दो भाव हैं - चेतन और अवचेतन ! अवचेतन मन को अशुभ नही कहना चाहिए !  अपितु यह हमारे अतीत के कर्मो का भंडारण   है  जिससे सदैव सीख मिलती है ! चेतन मन  अहंकारी और भावुक होता है किंतु  अवचेतन मन  पर  करुणा  और धैर्य का प्रभाव रहता है  !  मन में नित्य दिन  दोनों भावों का समावेश  होता है ! जिसमें  वक्त और परिस्तिथि के हिसाब से उसमें घटत और बढ़त  होती है !
चेतन  मन को अवचेतन मन की ओर ले जाना कठिन है इसीलिए उसकी प्राप्ति  के लिए सत्संग अत्यंत आवश्यक  है , जिसका गुण एकाग्रता है ! यह मन तब भटकता है  जब हम स्वयं  की खोज नही करते ! हम निरर्थक  विवादों  में  दिलचस्पी  और  दूसरों  के  कार्य  कलापों  की  जानकारी  एकत्र  करने में उत्सुकता रखते हैं , अपने दोषों को भूलकर  , दूसरों के दोषों में अपना अमूल्य समय खराब करते हैं  ,तो मन चंचल होकर भटकता  रहेगा !
मनोनिग्रह   कोई सरल कार्य नही ! इसके लिए आत्मविश्वाश  और दृढ निश्चय अत्यंत आवश्यक है ! सबसे पहले निर्मल और पवित्रता युक्त शुद्ध आचरण  को जीवनशैली  बनाना होगा ! मन की इन अशुद्धियों को एक एक करके तोडना होगा ! घृणा , क्रोध , भय , ईर्ष्या , लोभ  और पराकर्षण का त्याग  आवश्यक हैं ! यह  तभी संभव है जब हम सतोगुण को बढ़ने वाली क्रिया और सात्विक भोजन पर ध्यान दें ! सारा  ध्येय  सैट , चित ,आनंद की प्राप्ति  होनी चाहिए ! जिन्हें अपने मन को सतोगुण की ओर  मार्गी  बनाना है  , उन्हें  दुर्भावनाओं , शिकायतों  और छोटी सोच से बचना चाहिए ! बोझिल मन को इस अवस्था की प्राप्ति मुश्किल से होती है ! 
हमेशा  सृजनशीलता की ओर तत्पर रहना चाहिए  ! आत्मनिरीक्षण  द्वारा प्रत्येक दिवस के घटित कार्यकलापों पर आत्ममंथन  अत्यंत आवश्यक है ! मन को सदैव अंत : कर्ण  में तीक्ष्ण  दृष्टी  से देखना चाहिए और उनमें उत्पन्न विचारों को शोध मनुष्य द्वारा किया जाना अनिवारिय है  की  वह कुमार्गी या सुमार्गी बन रहा है !
अन्तत : मन को नियंत्रित कर सुखी जीवन यापन करना मनुष्य का परम धर्म होना चाहिए जो उसे शुद्ध आचरण और संतोष की अविरल धारा की ओर अग्रसर करती है !
रिश्तों  का  दर्पण 

आत्मा के भीतर तक संवेदनाओं का  धरातल पैदा करता है ' रिश्ता '! रिश्तों का अमरत्व  त्याग , स्नेह व भावना दर्पण  में निहित होता है ! यह  वह  अहसास होते हैं जिनके विभिन्न आयाम होते हैं ! इंसान सामाजिक प्राणी है  और संसार में जीवन यापन करने के लिए रिश्ते उसे आत्मबल देते हैं ! उसके जीवन में प्रत्येक रिश्ते की अनमोल पहचान होती है !

जिन्दगी के प्रारंभिक कड़ी  में माँ बाप के परिवार से प्राप्त रिश्ते उसके लिए अनमोल होते हैं फिर जब वह प्रथम बार घर से बाहर निकलता है तो पारिवारिक परिवेश से बाहर निकलता है!  पारिवारिक  परिवेश से बाहर उसे मित्रों का वह अनूठा संसार मिलता है जिसमें वह बहुत  आनंद ,स्नेह और अटूट विश्वास के बंधन में बंध जाता है ! उसके बाद जीवनसाथी और उससे जुड़े नवीन रिश्तों के अनुपम संसार में वह सुख दुःख  में अपने आस पास रिश्तों का सुंदर संसार देखता है !

रिश्तों की बागडोर तभी मजबूत बनती है जब उसमे श्रधा  ,अटूट प्यार और विश्वास हो ! रिश्ते अपने आलोकिक चमक  तभी प्राप्त करता है जब उसे संजोना और निभाना  आये ! एक दूसरे   के मान स्वाभिमान का ध्यान रखा जाये ! किन्तु सम्बन्धों की प्रगाढ़ता दोनों तरफ निबाही   जानी   चाहिए ! जिन्दगी में वसंत की भांति होते हैं रिश्ते ,इनमें जरा सा भी दरार  या खटास आ जाये तो रिश्तों की कड़वाहट जीवन में पतझड़ के समान बन जाती है ! यदि रिश्तों में संदेह या द्वेष आ जाए तो इसके परिणाम त्रासदी के मार्गी  बन जाते हैं ! जिस प्रकार मीठी वस्तुओं पर चींटियों का आक्रमण होता है इसी प्रकार इर्ष्या , संदेह , द्वेष , कट्टु बोल  रिश्तों में दीमक समान है , जो सम्बन्धों को शनै:  शनै:  खोखला करती जाती है !

यदि आप अपने इर्द गिर्द रिश्तों की सुंदर वाटिका चाहते हैं तो एक कुशल  माली की भाँती उनका ख्याल भी रखना होगा ! खून के रिश्तों  में गरिमा तो होती है किन्तु सामाजिक दायरों में सिमटे मानवीय रिश्ते भी वही देख रेख और अपनत्व चाहते हैं ! जिस रिश्ते की नीव कमजोर हो और आपसी आत्मीयता का आभाव हो तो उस रिश्ते की गरिमा की उम्र छोटी होती है ! यदि अपने अहं को बनाये रखने के लिए यदि एक दूसरे के मन को आहत करेंगे तो समय के साथ उसका भावनात्मक आधार की चरमरा जायेगा 

जीवन  के हर मोड़ पर हमे अपने परिजन , परिचित और अजनबी लोग मिलते जो भावनात्मक कड़ी से हमारे रिश्तों रुपी माला में मनकों की भाँती सम्मिलित होते चले जाते हैं ! कुछ रिश्ते जीवनपर्यन्त  साथ रहते हैं तो कुछ अपनी  खट्टी  ,मीठी  और कसैली यादों की दास्ताँ पीछे छोड़ जाते हैं ! रिश्तों की डोर बड़ी कमजोर होती है , इसे मजबूती हमारी आपसी संवेदनाएं देती है ! एक दूसरे की प्रेरणा बनना चाहिए और एक दूसरे के आत्मसम्मान पर विशेष ध्यान देना चाहिए !

रिश्तों  की नीव बरकरार रखने के लिए आत्मीयता ,एक दूसरे  के दुःख कम करने के भाव , विश्वाश और आकर्षण  नितांत आवश्यक निधि है ! इन गुणों को दोनों पक्षों द्वारा निभाया  जाना अनिवार्य  होता है ! रिश्तों की पकड़ मजबूत बने रखने के लिए आपसी स्नेह मौलिक है ! उपहास करना और मजाक करना ...दोनों की परिधि स्पष्ट रखनी चाहिए  नही तो वहां कड़वाहट  भर जाएगी ! हमे तो समाज में रिश्तों के  कुशल शिल्पकार की भूमिका में खरा साबित होना होगा तभी हमारी कला की इस संसार में प्रशंसा होगी !रिश्तों में पात्रता और पवित्रता मौलिक हैं !

मित्रता के  रिश्ते में विश्वास  अहम होता है ! अपने अहं या स्वयं को ऊँचा साबित करने के लिए अपने मित्रों के जज्बात के साथ खिलवाड़ से आपको सकून तो मिल जायेगा किन्तु उस उपहास से आहत मन प्रतिशोध की चाह जीवन तक बर्बाद कर सकता है ! हर रिश्ते में मर्यादा का आचरण मान्य है ! रिश्तों को निभाने में वाणी अहं कड़ी है जो संबंधों में मधुरता या विकृता का मापदंड तय करता है ! प्रत्येक व्यक्ति  के मानसिक ,सामाजिक और पारिवारिक आवश्यकता भिन्न होती है ! ऐसे में एक दूसरे के साथ भावनात्मक  संबंध रखने पर ही रिश्ते सफल होते हैं ! जीवन में अक्सर ऐसा भी होता है की खून के रिश्ते आँसू देते हैं  किन्तु परायों से प्राप्त आत्मीयता व्यक्ति विशेष की जीवन दशा व् दिशा बदल देती है ! पुरानी कहावत  यहाँ फीकी पड़ जाती है कि इस जहाँ में केवल खून के रिश्ते महत्वपूर्ण होते हैं !

  आधुनिकता का आवरण अब रिश्तों पर दिखने लगा है ! आज की आधुनिकता की दौड़ में रिश्तों को स्वार्थ और आत्मीयता के आभाव ने पूरी हिला कर रख दिया है ! खून के रिश्ते हो या आपसी विश्वास के रिश्ते ...सभी पर इर्ष्या और द्वेष का रंग घुलने लगा है     आज के परिवेश में एक दूसरे से प्रतिशोध , गिरता आत्मविश्वास , झूठा दंभ , आत्म केन्द्रित जीवनशैली  और संबंधों का व्यवसायीकर्ण  दिखने में आ रहा है जिसका मुख्य कारण धर्म के प्रति अरुचि जो अशांति और अवसादों जैसे मनोवेगों को बढ़ावा दे रहा है !

हम सभी को ध्यान रखना होगा हर रिश्ते के लिए अहं  वह जहर जो तब तक डसती रहेगी जब तक आपसी सम्बन्ध विच्छेद न हो जाये !आपसी सामजस्य  और आत्मीयता  रिश्तों के लिए अमूल्य धरोहर है !  बस एक कथनी  जो किसी शायर कि जुबानी है सदैव याद रखनी होगी --"   जिंदगी की किताब के कुछ पन्ने होते है! कुछ अपने और कुछ बेगाने होते हैं! प्यार से संवर जाती है जिंदगी! बस प्यार से रिश्ते निभाने होते है !"   

सहनशीलता सहनशीलता 


सहनशीलता  का अर्थ है अपने भीतर शील प्रवृति एवं सहने की शक्ति का समायोजन करना ! सहनशीलता द्वारा मनुष्य कठिनतम परिस्तिथि में भी स्वयं को असहाय नहीं समझता ! सहनशीलता एक आनुवंशिक गुण न होकर अर्जित गुण है  जो समय व् परिस्तिथि के अनुरूप व्यक्ति के अंदर विकसित  होती चली जाती है ! आत्मविश्वास  यदि हमारे स्वाभाव में प्रबल हो तब हम स्वयं को सहनशीलता की परिपाटी में विजयी साबित कर पायेंगे ! मनुष्य में यह गुण तभी आएगा जब वह किसी भी बात से व्यग्र , उग्र या उतेजित न होकर अपने व् अपने समाज में रहने वाले लोगो के विचारों के साथ तालमेल बैठाते  हुए ही अपने निर्णय आगे लायें !





सहनशील होने के लिए हमे  आत्मविश्वास के साथ क्षमा  भाव भी विकसित  करना होगा जिससे हम दूसरो के  वचनों  व् कर्मों से प्रभावित न हो पाएं !हमे अहंकार  दिखाई ही नही देता !पर उससे होने वाले नुक्सान का बोध देर से होता है !वाणी और व्यवहार  व्यक्ति के चिंतन  व् व्यक्तित्व की खरी कसौटी है ! समयित बोलने वाले असम्यित बोलने वाले से अधिक आत्मविश्वासी  और उन्नंत ह्रदय वाला होता है !छोटी-छोटी  प्रतिक्रियाओं में हम अक्सर बड़े फैसले कर बैठते हैं।  भूल जाते हैं कि हमारे इन फैसलों से रिश्ते खंडित हो  जाते हैं, भावनाएं तड़क जाती हैं। अपने क्रुद्ध व्यवहार की  प्रतिक्रिया से हमें सब वापिस  मिल जाता है, पर रिश्तों की नीव भी उजड़  जाती है ! सहनशील व्यक्ति अल्पभाषी व् मृदुभाषी होता है ! हमारी वाणी में वशीकरण  मन्त्र  होते है जिसका इस्तेमाल  करने का सलीका हमारे भीतर होना चाहिए ! आत्मसम्मान  के साथ साथ  दूसरे   के स्वाभिमान को भी उतना ही सम्मान तभी दे पायेंगे जब हम अपने ह्रदय  में  रुपी सहनशीलता  कमल को खिला दें ! शुभ विचार परमार्थ के मार्गी है जो एक आत्मविश्वासी सहनशील व्यक्ति  के  मस्तिक  में पनपते हैं ! प्रेम एक आत्मिक गुण है  इसे जताया नही जाता अपितु निभाया  जाता है जो एक सहनशील  व्यक्ति  की पहचान होती है !सहनशीलता रुपी गुण की प्राप्ति हेतु सर्वप्रथम उन कारणों  को समझने होंगे जिनकी वजह से हम अपना मानसिक असंतुलन खोकर दूसरों के साथ दुर्व्यह्व्हार करने लगते हैं !आत्मज्ञान ही मनुष्य को सहनशील बनता है जो सत्संग द्वारा प्राप्त होता है! जो लोग प्रतिकूल परिस्तिथि में स्वयं को समयनुसार ढाल लेते हैं और समय के अखंड प्रवाह में सहनशीलता के साथ बहते बहते एक दिन पूज्य शालिग्राम बन जातें हैं तो ऐसे लोग हमारे आदर्श बन जाते हैं व् महापुरुष कहलाते हैं ! तो आयें सहनशीलता रूपी गुण  को अपनाकर  अपना जीवन उन्नत बनाएं !


सहनशीलता  का अर्थ है अपने भीतर शील प्रवृति एवं सहने की शक्ति का समायोजन करना ! सहनशीलता द्वारा मनुष्य कठिनतम परिस्तिथि में भी स्वयं को असहाय नहीं समझता ! सहनशीलता एक आनुवंशिक गुण न होकर अर्जित गुण है  जो समय व् परिस्तिथि के अनुरूप व्यक्ति के अंदर विकसित  होती चली जाती है ! आत्मविश्वास  यदि हमारे स्वाभाव में प्रबल हो तब हम स्वयं को सहनशीलता की परिपाटी में विजयी साबित कर पायेंगे ! मनुष्य में यह गुण तभी आएगा जब वह किसी भी बात से व्यग्र , उग्र या उतेजित न होकर अपने व् अपने समाज में रहने वाले लोगो के विचारों के साथ तालमेल बैठाते  हुए ही अपने निर्णय आगे लायें !





सहनशील होने के लिए हमे  आत्मविश्वास के साथ क्षमा  भाव भी विकसित  करना होगा जिससे हम दूसरो के  वचनों  व् कर्मों से प्रभावित न हो पाएं !हमे अहंकार  दिखाई ही नही देता !पर उससे होने वाले नुक्सान का बोध देर से होता है !वाणी और व्यवहार  व्यक्ति के चिंतन  व् व्यक्तित्व की खरी कसौटी है ! समयित बोलने वाले असम्यित बोलने वाले से अधिक आत्मविश्वासी  और उन्नंत ह्रदय वाला होता है !छोटी-छोटी  प्रतिक्रियाओं में हम अक्सर बड़े फैसले कर बैठते हैं।  भूल जाते हैं कि हमारे इन फैसलों से रिश्ते खंडित हो  जाते हैं, भावनाएं तड़क जाती हैं। अपने क्रुद्ध व्यवहार की  प्रतिक्रिया से हमें सब वापिस  मिल जाता है, पर रिश्तों की नीव भी उजड़  जाती है ! सहनशील व्यक्ति अल्पभाषी व् मृदुभाषी होता है ! हमारी वाणी में वशीकरण  मन्त्र  होते है जिसका इस्तेमाल  करने का सलीका हमारे भीतर होना चाहिए ! आत्मसम्मान  के साथ साथ  दूसरे   के स्वाभिमान को भी उतना ही सम्मान तभी दे पायेंगे जब हम अपने ह्रदय  में  रुपी सहनशीलता  कमल को खिला दें ! शुभ विचार परमार्थ के मार्गी है जो एक आत्मविश्वासी सहनशील व्यक्ति  के  मस्तिक  में पनपते हैं ! प्रेम एक आत्मिक गुण है  इसे जताया नही जाता अपितु निभाया  जाता है जो एक सहनशील  व्यक्ति  की पहचान होती है !सहनशीलता रुपी गुण की प्राप्ति हेतु सर्वप्रथम उन कारणों  को समझने होंगे जिनकी वजह से हम अपना मानसिक असंतुलन खोकर दूसरों के साथ दुर्व्यह्व्हार करने लगते हैं !आत्मज्ञान ही मनुष्य को सहनशील बनता है जो सत्संग द्वारा प्राप्त होता है! जो लोग प्रतिकूल परिस्तिथि में स्वयं को समयनुसार ढाल लेते हैं और समय के अखंड प्रवाह में सहनशीलता के साथ बहते बहते एक दिन पूज्य शालिग्राम बन जातें हैं तो ऐसे लोग हमारे आदर्श बन जाते हैं व् महापुरुष कहलाते हैं ! तो आयें सहनशीलता रूपी गुण  को अपनाकर  अपना जीवन उन्नत बनाएं !