मन दर्पण
मन पंछी ही तो है इसका न कोई ठौर न ठिकाना | आस पास होती सामायिक घटनाओं पर अपनी भावनात्मक उड़ान कब भरने लगे और नन्ही के मन का दर्पण बन जाये स्वयं नन्ही भी नहीं जानती सब माँ शारदे का आशीर्वाद |
रविवार, 27 अप्रैल 2014
अतीत के फूल
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"हे भगवान मेरे परिवार को किसकी नज़र लग गई .. पहले दामाद अब बेटी भी चली गई " मालती का विलाप उस को भी अधीर कर रहा था ! हम माँ बाप पर विपदा आ पड़ी थी ! मै अभी हाल में ही पत्नी व बेटी की लगन से पक्षाघात से उभरा था और मेरी पत्नी को गठिया थी ! इकलौती बेटी जूही आज गीजर के करंट के चपेट में आ गई थी और तडपकर उसने वहीं दम तोड़ दिया था ! जूही के पति यानि उनके दामाद की ८ वर्ष पूर्व सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी ! तब से लेकर आज तक जूही ने अपने बच्चों राहुल व पिंकी व हमारी जिम्मेदारी अपने कंधे पर उठा ली थी ! आज उसके जाने से वे बेबसी के आँसू रो रहे थे ! उन्होने मन ही मन दृढ निश्चय किया कि भले ही उनकी उमर व स्वास्थय उनके कार्य में बाधक बनेगा पर जिंदगी की लड़ाई में वे अपनी जिम्मेदारी से मुह नहीं मोड़ेंगे ! मालती और वह रिटायर्ड सरकारी डॉक्टर थे ! जूही के विवाह के बाद वे अपने छोटे क्लिनिक के माध्यम से समाज सेवा में अपना समय व्यतीत कर लेते थे किन्तु आज वही कार्य उनके लिए जरूरत बन गया था ! अपने परिचित दोस्तों की मदद से उन्होने फिर से काम पर जाना शुरू कर दिया ! जीवन की गाड़ी धीरे धीरे पटरी पर रेंगने लगी थी कि एक दिन फिर बदकिस्मती उन पर हंस पड़ी ! ६ साल की अल्पायु में दोनो बच्चों में मेजर थैलासीसीमिया पाया गया था और बहुत इलाज के बावजूद १० वर्ष के नन्हे फूल दुनिया से विदा हो गए थे ! तब से लेकर आज तक उन्होने थैलेसीमिया के मरीजों के बीच अपने शेष जीवन के आयाम खोज लिए थे ! " नानू नानू नानी नानी देखो हम आ गए ", बच्चों की आवाज सुनकर वह अतीत से बाहर निकल आया था उनके सामने वे दो फूल थे जिनके माली ने उनके खर्चों से बचने के लिए उस अस्पताल में छोड़ गए थे ! ईश्वर की लीला भी अजीब .... दोनो का नाम था राहुल और पिंकी ... और उनके हाथ खुद ब खुद अपने बच्चों को गोद में लेने के लिए आगे बढ़ गए !
__________________________सुनीता शर्मा
-बुत
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सारा परिवार आज बहुत खुश था ! शहर के मशहूर मॉल " फ्रेंडशिप " में विनोद ने अपने बेटे माणिक के जन्मदिन की पार्टी रखी थी ! सभी मिलकर नाच गा रहे थे किन्तु माणिक की छोटी बहिन मृदुला का ध्यान कहीं और था ! सबकी नज़रे बचाकर वह मॉल की खिड़की से पार्क में स्थापित एक झुकी बुत को लगातार देखने लगी उसे उस बुत में अपनी दादी नज़र आने लगी और वह रो पड़ी ! माँ पापा बहुत बुरे हैं ! उन्होंने मेरी बूढी दादी जिसकी कमर ऐसे ही झुकी रहती है उन्हें गाँव में अकेले छोड़ कर यहाँ आ गए है ! दादी भी तो अकेली होगी और उन्हें कितना बुरा लगता होगा ! कुछ सोचकर मृदुला ने दो गुब्बारे ,थोड़ा केक और थोड़े पैसे जो उसे अभी एक अंकल ने दिए थे उन्हें लेकर वह चुपचाप मॉल के पार्क में आ गई जहाँ पार्टी में आए बच्चे झूला झूल रहे थे ! मृदुला उस सफ़ेद मूर्ति के पास गई और बोली - " दादी आप सारा दिन ऐसे क्यों खड़ी रहती हो ,थक जाओगी , आज भैया का बर्थडे है देखो मैं तुम्हारे लिए केक और पैसे लाई हूँ और ये हैं गुब्बारे इनसे खेला करो देखो इसमें मैं और माणिक भैया दिख रहे है न , तो अब आप अकेली नहीं ! " बोलते बोलते मृदुला रो पड़ी ! अरे यह क्या ? मूर्ति हिली और उसने न केवल गुब्बारे लिए बल्कि मृदुला को गले लगा लिया , और बोली- "बिटिया मैं दुनिया में अकेली कहाँ ,आप जैसे बच्चे रोज मुझसे मिलते हैं और खेलते हैं ! मैं इस मॉल के मालिक की माँ हूँ और मेरे कोई बच्चे खो न जाएं या कोई उन्हें बहला फुसला कर ले न जाए इसकी निगरानी करती हूँ बदले में मुझे मिलता है तुम सबका ढेर सारा प्यार , तो हूँ न आपकी भी दादी ,अब हंसो और याद रखो बिटिया कभी अकेले मत घूमा करो , अब जाओ और भैया के साथ पार्टी में रहो !" __________________सुनीता शर्मा
बुधवार, 4 सितंबर 2013
शिक्षक दिवस
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शिक्षक दिवस एक ऐसा दिन है जब हम उन गुरुओं का धन्यवाद करें जो हमें शिक्षा प्रदान कर हमारे जीवन में उजाला भर हमें जीवन जीने के सही तरीके से अवगत कराते हैं। शिक्षक दिवस गुरु की महत्ता बताने वाला प्रमुख दिवस है । भारत में 'शिक्षक दिवस' प्रत्येक वर्ष 5 सितम्बर को मनाया जाता है। शिक्षक का समाज में आदरणीय व सम्माननीय स्थान होता है। भारत के द्वितीय राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस और उनकी स्मृति के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला 'शिक्षक दिवस' एक पर्व की तरह है, जो शिक्षक समुदाय के मान-सम्मान को बढ़ाता है। किसी भी राष्ट्र के विकास में शैक्षिक विकास की भूमिका अहम है। शिक्षक दिवस शिक्षकों को अपने जीवन में उच्च जीवन मूल्यों को स्थापित कर आदर्श शिक्षक बनने की प्रेरणा देता है।
समाज को संस्कारवान बनाए रखने का महत्वपूर्ण कार्य शिक्षक करते हैं ! शिक्षक बच्चों का जीवन तराशकर उसे समाज के लिए सक्षम् बनाने वाला जौहरी होता है ! वास्तव में गुरु की महिमा अपरंपार है ! वह तो देवतुल्य या उससे भी बढ़कर है !
गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागू पाय
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।
कबीरदास द्वारा लिखी गई उक्त पंक्तियाँ जीवन में गुरु के महत्त्व को वर्णित करने के लिए काफी हैं। भारत में प्राचीन समय से ही गुरु व शिक्षक परंपरा चली आ रही है। गुरुओं की महिमा का वृत्तांत ग्रंथों में भी मिलता है। एकलव्य और द्रोणाचार्य जैसे गुरु-शिष्य के कई उदाहरण हमारे सामने है। विद्यार्थी जीवन में ही नहीं बल्कि जीवन के हर पथ पर हमें कोई न कोई ऐसा व्यक्ति मिलता ही है जो हमारे जीवन में एक सकारात्मक परिवर्तन लाता है। शिक्षक उस माली के समान है, जो एक बगीचे को भिन्न-भिन्न रूप-रंग के फूलों से सजाता है। जो छात्रों को कांटों पर भी मुस्कुराकर चलने को प्रोत्साहित करता है। उन्हें जीने की वजह समझाता है। शिक्षक के लिए सभी छात्र समान होते हैं और वह सभी का कल्याण चाहता है। शिक्षक ही वह धुरी होता है, जो विद्यार्थी को सही-गलत व अच्छे-बुरे की पहचान करवाते हुए बच्चों की अंतर्निहित शक्तियों को विकसित करने की पृष्ठभूमि तैयार करता है। वह प्रेरणा की फुहारों से बालक रूपी मन को सींचकर उनकी नींव को मजबूत करता है तथा उसके सर्वांगीण विकास के लिए उनका मार्ग प्रशस्त करता है। किताबी ज्ञान के साथ नैतिक मूल्यों व संस्कार रूपी शिक्षा के माध्यम से एक गुरु ही शिष्य में अच्छे चरित्र का निर्माण करता है। एक ऐसी परंपरा हमारी संस्कृति में थी, इसलिए कहा गया है कि-
"गुरु ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात परब्रह्म तस्मैः श्री गुरुवेः नमः।"
विवेकानंद एक ऐसे शिष्य थे जिन्होने अपने गुरु से जीवन जीने का सही तरीका सीखा। उन्होने अपने गुरु के दिखाए पथ पर चलते हुए न जाने कितने लोगों के जीवन में प्रेम, नि:स्वार्थ सेवा और सत्यता का दीपक प्रज्वलित किया। गुरु का स्थान तो माता-पिता से भी ऊँचा होता है, क्योंकि माता-पिता जीवन देते हैं और गुरु उस जीवन का सही अर्थ समझाकर, सत्य का मार्ग दिखाते हैं।अगर वही गुरु, शिष्यों के जीवन में अंधकार का कारण बन जाएँ तो कैसे कोई शिष्य एकलव्य और विवेकानंद बन पाएँगे। आधुनिक युग में शिक्षक की भूमिका बहुत बढ़ गयी है ! एक बच्चे के सर्वांगीण विकास में शिक्षक अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है जिसमें वह उसका शैक्षणिक, मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक व साँस्कृतिक विकास भी करता है ल राष्ट्र निर्माण में छात्रों की भूमिका, शिक्षक द्वारा दिये गए मार्गदर्शन पर निर्भर करती है जिसमें शिक्षक अमृत के समान होते हैं। उन्होंने कहा कि छात्र-शिक्षक एक सिक्के के दो पहलू हैं, जिसके बिना मजबूत समाज और राष्ट्र की कल्पना नहीं की जा सकती है।
आधुनिक युग में शैक्षिक विकास के साथ साथ भोतिकवाद की दौड़ भी तेज हुयी है ! प्रत्येक व्यक्ति अधिक से अधिक सुख सुविधाएँ जुटा लेने को प्रयासरत है जिसने गला काट प्रतिद्वंद्विता को जन्म दिया है! झूंठ ,मक्कारी धोखेबाजी ,चापलूसी ,हिंसा जैसे अवगुणों को अपनाना उसकी मजबूरी बन गयी है अर्थात नैतिकता का अस्तित्व समाप्त प्रायः होता जा रहा है !यह तो कटु सत्य है कि बिना, नैतिक उत्थान के सिद्धांतों , की रक्षा किये मानव विकास संभव नहीं है ! ऐसे वातावरण में भी हमें आदर्शों को भूलना नहीं चाहिए या अपने बच्चों को आदर्शों पर अडिग रहने के लिए उन्हे प्रेरित करते रहना चाहिए !आज के आधुनिक युग में जब शिक्षण मात्र एक व्यवसाय बन कर रह गया है ! ऐसे में समय के साथ छात्रों और शिक्षकों के आपसी संबंध भी बदले हैं ! आज शिक्षा में शिक्षक की भूमिका को अस्वीकार कर इ-लर्निंग जैसी बात हो रही है और आधुनिक ज्ञान विज्ञान के अविष्कारो ने इसे कुछ हद तक संभव भी बनाया है लेकिन आमने सामने के शिक्षण में जो आपसी विचारों का आदान- प्रदान है वह दूर शिक्षा में संभव नहीं हो पाता ! उसमें विचारों का एक तरफा बहाव है जो छात्रों का सम्पूर्ण विकास नहीं कर पाता ! लेकिन साथ ही हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि आमने सामने कि शिक्षा का माहौल भी कटु हो गया है ! शिक्षक दिवस का भी बाजारीकरण हो गया है ! महंगे गिफ्ट, झूठी बड़ाई अपनी प्रशंसा इसी की भूख है ! साथ ही छात्रों का भी शिक्षकों के प्रति विश्वास घटा है और व्यवहार बदला है यानि छात्र और शिक्षक दोनों ही एक दूसरे को संदेह की दृष्टी से देखने लगे हैं ! इसके पीछे दोनों के व्यवहार में आये परिवर्तन ही दोषी हैं जिससे छात्रों और शिक्षकों के बीच मतभेद बढता जा रहा है ! अब उनमें पहले सा आत्मीय स्नेह नहीं रह गया है ! एक तरफ छात्र शिक्षकों के पीठ पीछे उनका मजाक उड़ाने से नहीं चूकते ! शिक्षक भी कुछ हद तक फ़िल्मी शिक्षको की तरह विदूषक मात्र रह गए हैं जो कक्षा में घुसते ही सो जाते हैं या अन्य किसी हास्यास्पद स्तिथियों के जनक बन जाते हैं, साथ ही वे भी अब मात्र पाठ्यक्रम भर से नाता रखने लगे हैं ! दबाव और भय के माहौल में शिक्षक भी ‘जैसा चाल रहा है चलने दो’ की नीति अपना कर अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़ रहे हैं. और इन सबका परिणाम है संस्कारहीन बच्चे और बढ़ते अपराध ! आज जब इलेक्ट्रोनिक मीडिया, समाचार पत्रों में कहीं शिक्षकों के नैतिक पतन की, व्यभिचार की, तो कहीं छात्रों द्वारा शिक्षकों की हत्या तक की ख़बरें देखने और पढ़ने को मिल रही है तो स्थिति और वीभत्स हो गई है , शिष्यों द्वारा गलत आचरण और शिक्षकों की उदासीनता समाज के लिए चुनौती बनता जा रहा है ! आजकल बच्चों में आ रहे मूल्यों में गिरावट के कारण शिक्षकों की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गयी है। अब समय आ गया है कि प्रत्येक शिक्षक इस बात को प्रभावशाली ढंग से सामने लाये कि मूल्य शिक्षा बच्चों के भविष्य के लिए अनिवार्य है ।
ये विश्वास से मानना होगा कि गुरु का इस आधुनिक युग में भी महत्ता में जरा भी कमी नहीं आई है ! गुरु का अनादर करने वाले शिष्य जीवन में कभी सफल नहीं हो पाते हैं ! इसीलिए जीवन में सफलता और सम्मान पाने के लिए सभी को गुरुओं का आशीर्वाद लेते रहना चाहिए ! गुरु का महत्व आज भी अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को प्रेरणा स्त्रोत को कहा जाता है ! गुरु के बिना ज्ञान संभव नहीं है। गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है और सदैव रहेगा ! समाज के शिल्पकार कहे जाने वाले शिक्षकों का महत्व यहीं समाप्त नहीं होता क्योंकि वह ना सिर्फ आपको सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं बल्कि आपके सफल जीवन की नींव भी उन्हीं के हाथों द्वारा रखी जाती है। आए सभी मिलकर एक स्वस्थ स्माज के निर्माण हेतू संकल्पबद्ध होकर उज्ज्वल भारत का निर्माण करें और यह तभी संभव होगा जब गुरु शिष्य परंपरा का सभी मिलकर पालन करें !
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सभी आदरणीय सदस्य , शिक्षकगण व सुधी पाठक जन को शिक्षक दिवस कि मंगलकामनाए !
रविवार, 12 मई 2013
मातृ दिवस
माँ अपने आप में सम्पूर्णता लिए हुए एक ऐसा शब्द जिसका वर्णन करना भी एक परम सौभाग्य का विषय है ! विश्व में अधिकतर देश इस दिन को धूमधाम से मनाते हैं किन्तु हमे माँ को सम्मानित करने के लिए किसी विशेष दिवस की आवश्यकता नहीं है ! भारत में प्रत्येक दिन हर घर में माँ की वंदना करने की परम्परा रही है ! आज पाश्चात्य के प्रभाव से हमारी संस्कृति ने इस लोक आडम्बर को अपना लिया है !
माँ के बारे में अपने अंतर्मन से पूछें कौन है और क्या है , तो उत्तर आएगा माँ हमारे जीवन की वह अमृतधारा है जो दिव्य है ,अतुलनीय ,अकथनीय है ! जन्म से मृत्यु तक हमारे सुख दुःख की सच्ची संगिनी होती है माँ ! हर व्यक्ति के जीवन में माँ का स्थान उसके नजरिए पर निर्भर करता है ! हमारे जीवन का प्रतीक माँ गर्भ से लेकर हमारे सम्पूर्ण जीवन संचालिका होती है ! माँ की ममता वह सागर जिसकी थाह न कोई ले सका है, न ही कभी ले सकेगा ! माँ ,जीवांश से जीवन देने और जीवन देने से लेकर विभिन्न आयामों की कुशल संचालिका होती है ! माँ की ममता अतुलनीय ,अकथनीय होती है ,वह बच्चों का जीवन संबल होती है ! हर घर आँगन की अनुराग होती है माँ ! वह जीवन के हर कष्ठ झेलकर भी अपने बच्चों की ख़ुशी ढूंढ लेती है ! हम स्वय जिसका अंश हैं उसका ऋण तो चुकाना कल्पना से परे है ! ईश्वर हर स्थान पर नहीं पहुँच सकता इसलिए उसने अपने कार्य माँ को सौप दिया !प्रख्यात कवि आलोक श्रीवास्तव जी ने माँ को कुछ यूँ परिभाषित किया है जो अदभुत है _
घर में झीने रिश्ते मैंने
लाखों बार उधड़ते देखे
चुपके चुपके कर देती थी
जाने कब तुरपाई अम्मा !
माँ की समवेदनाएं अतुलनीय होती है जिसमें उसका ध्यान योग अर्थात टेलीपथी सबसे प्रबल होती है ! मानव हो या पशु पक्षी योनि माँ की तपस्या का कोई मोल नहीं है ! माँ को अपने बच्चे के प्रति समवेदनाएं चौबीस घंटे स्पन्दित होती रहती हैं जैसे इंसान तो इंसान गाय भी मीलों दूर जंगल में भी अपना ध्यान अपने बछड़े पर लगाये रहती है ,घर पर उसके रभाने पर वह भी उससे अपनी आवाज मिलाकर घर लौट आती है ! असल में माँ की ममता को तीन भागो में विभाजित किया जा सकता है - मुर्गी छाप , कछुआ चाप और कुञ्ज छाप ! मुर्गी अपने अन्डो को अपने स्पर्श से जगत में लाती है , कछुआ अपनी निगाहों से अपने अण्डों को सेककर इस दुनिया में लाती है तो इन सब में सर्वोतम तपस्या कुञ्ज पक्षी का होता है जो अपने ध्यान योग से अपने बच्चो को जगत में लाती है जबकि वह स्वय अपने अंडो से कोसो दूर रहती है ! माँ के इस ध्यान में अतुलनीय शक्ति है कि उसके बच्चे संसार के किसी भी कोने में हो उसके तन मन से बस अपने बच्चों की मंगल कामना में समर्पित रहता है !अपने बच्चों के मन के हर जज्बात को सम्भाल लेने में माँ की भूमिका सर्वोपरी है !
प्रसिद्ध माताओं में अग्रणीय जीजाबाई शौर्यता का प्रतीक , अहिल्याबाई होलकर न्याय का प्रतीक और पन्ना धाई अपने राज्य सेवा धर्म में त्यागी सेविका के रूप में इतिहास में सदा याद रखी जाती है ! हमारी संस्कृति में वसुंधरा को माता कहा गया है ! हम भारतवासी अपनी जन्मभूमि को माँ मानते है जो पूरी दुनिया में एक मिशाल है ! हम सभी बड़े गर्व से स्वय को माँ भारती की सन्तान मानते है !
आज आधुनिक समाज में माँ का सम्मान कदाचित घट रहा है ! व्यक्ति के जीवन मूल्यों में विकृति दिखने लगी है ! जिस माँ की चरण वन्दना से दिन प्रारम्भ होता था आज उसका तकरीबन हर घर में तिरस्कार हो रहा है ! जिस माँ ने उसकी पैदाइश से लेकर उसके हर आह में साथ दिया आज बच्चे अपने दायित्व से मुह मोड़कर अपनी ही माँ को दो वक़्त की रोटी , प्यार के दो बोल और थोडा सा आसरा देने से कतराने लगे है ! जिस माँ ने अपने जीवन की अनगिनत रातें हमे सुख देने में काट दी थी आज उसी के बीमार होने पर हम उसके लिए एक रात जगना तो दूर ,उसके सिराहने के पास बैठने तक का समय नहीं निकाल पाते ! जिस माँ के ऋण से मुक्त होना असम्भव माना जाता था आज इसी तथाकथित समाज में उसे तिरस्कार ,वृद्धा आश्रम का रास्ता व् मानसिक आघात मिल रहा है ! व्यक्ति के जीवन की आधार माँ का बुढापा बच्चों को बोझ क्यूँ लगता है ,जब वह शैशवकाल में हमारा साथ देती है तो हम अपने कर्तव्यों से क्यूँकर मुह मोड़ना चाहते है !बच्चे तो स्वार्थान्ध होकर उसे अपने प्रत्येक कार्य की उपलब्धी का साधन मात्र मानते हैं ! परिवार की सम्बल माँ सदैव कुपोषण का शिकार होती रही है ,अल्पायु में उसे भाँती भाँती की बीमारियाँ घेर लेती हैं किन्तु तब भी उसके चेहरे पर कोई शिकन नहीं आता !
ऐसा नहीं है कि माँ का नकरात्मक पहलू न दिखता हो ! आधुनिकता की मार माँ की भूमिका में नारी में दिखने लगा है ! आज नारी कुछ आवश्यकताओ की पूर्ती या फिर अपने महत्वकांक्षाओ की पूर्ती हेतू माँ की भूमिका से मुह मोड़ने लगी हैं ! बच्चों का लालन पालन क्रेच ,आंगनबाड़ी के हवाले कर अपने कर्तव्यों की इति समझ रही है ! जो समय बच्चा अपनी माँ के आँचल में गुजारता है वह समय तो आधुनिक माएँ आफिस या क्लबों को दे रही हैं जिसका नतीजा बच्चों में संस्कारहीनता स्पष्ठ दिखने लगी है ! आज जो समाज का नैतिक पतन हो रहा है उसमें कहीं न कहीं माँ की भूमिका से नारी का मुह मोड़ना दृष्टीगोचर हो रहा है ! अपने स्वार्थ और नाम ख्याति की पूर्ती की इच्छा में वह अपने बच्चो को जीविका का साधन बनाते हुए उन्हें वक्त से पहले परिपक्व बनाने वाले क्षेत्रों की ओर प्रेरित कर रही है ! माँ ही ममतान्ध में अपने ही घर परिवेश में भेदभाव के बीज बोती है ! बेटियों को बेटों के सामने कम आंकना ,आज गम्भीर विकृतियों को जन्म दे रही है ! आज के वर्तमान परिवेश में माँ का दायित्व निबाहती नारी को रुढ़िवादी परम्पराओं को तोड़कर समयनुसार स्वय को बदलना होगा ! समभाव से बच्चों का लालन पालन ,संस्कारों से परिपूर्ण एक स्वस्थ समाज की ओर अग्रणीय भूमिका निबाहनी होगी ! माँ आखिर माँ ही होती है ,वह कभी कुमाता नहीं हो सकती , बेटी हो या बेटा सब को दे समान दुलार ! बेटी बहू में उपजी वर्षों की खायी को पाटने का अधिकार है नारी अधीन जो कभी न कभी माँ की भूमिका में आती है !
अंत में वस्तुत: माँ जैसे आलोकिक शक्ति से स्मरण मात्र से न केवल हमारे कष्ठ हल्के हो जाते है अपितु उसके दर्शन मात्र से
प्रफुलित हो जाता है ! हमारे वेद, पुराण, दर्शनशास्त्र, स्मृतियां, महाकाव्य, उपनिषद आदि सब ‘माँ’ की अपार महिमा के गुणगान से भरे पड़े हैं।वेदों में ‘माँ’ को ‘अंबा’, ‘अम्बिका’, ‘दुर्गा’, ‘देवी’, ‘सरस्वती’, ‘शक्ति’, ‘ज्योति’, ‘पृथ्वी’ आदि नामों से संबोधित किया गया है। इसके अलावा ‘माँ’ को ‘माता’, ‘मात’, ‘मातृ’, ‘अम्मा’, ‘अम्मी’, ‘जननी’, ‘जन्मदात्री’, ‘जीवनदायिनी’, ‘जनयत्री’, ‘धात्री’! श्रीमदभागवत पुराण में उल्लेख मिलता है कि ‘माताओं की सेवा से मिला आशिष, सात जन्मों के कष्टों व पापांे को भी दूर करता है और उसकी भावनात्मक शक्ति संतान के लिए सुरक्षा का कवच का काम करती है।’ इसके साथ ही श्रीमदभागवत में कहा गया है कि ‘माँ’ बच्चे की प्रथम गुरू होती है।‘ आप सभी को सादर शुभकामनाएं कि हर घर में होगा माँ का सम्मान , भारत माँ का अडिग रहेगा मान सम्मान !
मंगलवार, 19 मार्च 2013
होली में सुरक्षा
भारत त्योहारों का देश है ! प्रत्येक महीने में प्रत्येक दिवस किसी न किसी आस्था के साथ जुड़ा है ! यही त्यौहार भारतीय संस्कृति की अमिट पहचान होने के साथ समाज को सुसंस्कृत भी करती है ! त्यौहार विभिन्नता में एकता के प्रतीक हैं ! होली भी इन में से एक फाल्गुन माह में मनाया जाने वाला हर्षो उल्लास का पर्व है ! इस समय प्रकृति अपने अनुपम सौन्दर्य में नहा रही होती है ! पुष्पों से भरे उपवन जंगल मन को प्रफुल्लित करते हैं ! इस अनुपम छटा को देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो धरती स्वय फाल्गुन की मस्ती में फूलों से होली खेल रही हो !
हमारे समाज में होली का अपना अलग ही महत्व है ! लोग रंग भेद भुलाकर गुलाल की मस्ती में अपने सभी रंजो गम भुलाकर खूब खुश होते हैं ! आज पारम्परिक रंगों का स्थान रसायनों ने ले लिया है ,इनसे बचना और बच्चों को उचित जानकारी देने की आवश्यकता है ! इस त्यौहार से जुडी कहानी बच्चों को अवश्य सुनाएं ! सर्वप्रथम होली वाले दिन बच्चे के पूरे शरीर में सरसों का तेल लगा लें ! बच्चों को गंदगी से खेलने से रोके ,उन्हें इको फ्रेंडली रंग दें ! होली का नाम आते ही रंग भरा वातावरण सामने आ जाता है। ऐसे में बच्चे ज्यादा हुडदंग मचाते हैं और रंगों का प्रयोग करते हैं जिसका असर उनके स्वास्थ्य पर पडता है। भारत में हर साल लगभग 80 प्रतिशत लोगों को रंगों के दुष्प्रभाव का सामना करना पडता है।
डॉक्टरों के अनुसार होली के बाद त्वचा, कान, आंख व सांस के मरीज 50 प्रतिशत तक बढ जाते हैं जिसमें बच्चों की संख्या ज्यादा होती है। बच्चों की त्वचा बहुत कोमल और नाजुक होती है जो इन केमिकलयुक्त रंगों को बर्दास्त नहीं कर पाती है और बच्चों को कई प्रकार के चर्म रोग हो जाते हैं। इसलिए होली में बच्चों को केमिकलयुक्त और गीले रंगों की बजाय सूखे रंग और गुलाल दीजिए। बच्चों को गुब्बारे वाले खेलों से दूर रखे ,इससे उनको या दूसरे को जीवन भर का नुक्सान हो सकता है !
स्वच्छता के सारे नियम इस दिन भंग हो जाते है ! जो जैसा मिला बस खा लिया ! बच्चों को सही गलत का मापदंड भी सिखाएं ! यदि बच्चों की तबियात खराब हो जाए तो सारा त्यौहार की मयुज मस्ती ख़राब हो जाती है ! इसीलिए उन्हें कहीं भी बहार कुछ भी खाने से रोके ! घर पर ही शुद्ध व्यंजन बनाएं ! बाहर की मिठाईयां व् पकवान भले ही आकर्षक हो किन्तु स्वच्छता का आभाव व् मिलावट का खरतर लगातार बना रहता है !बच्चों को व्यवहारिक ज्ञान भी दें ताकि बच्चे किसी रंजिश का शिकार न बन बैठे ! चलो मनाएं होली खुशियों के रंगो संग !
गुरुवार, 14 मार्च 2013
प्रणाम का महत्व
आज अपनी रचना से ही अपनी बात आरम्भ करती हूँ , सभी के जीवन में प्रणाम की महत्ता है ! प्रणाम रुपी ताले में उन्नति की चाभी होती है ! आएँ पहले जाने प्रणाम किन्हें करना होता है !
” सुबह करो प्रथम प्रणाम परमेश्वर का ,
जग में जलता दिया जिसके नाम का ,
उसके बाद करो दर्शन अपने करों का
जिनमें संचित होता प्रकाश ज्ञान व् स्वास्थ्य का ,
फिर सुमिरन में प्रणाम करो धरती गगन पाताल का ,
जिनसे देखो हरदम चलता जीवन सभी का ,
फिर सदैव होता प्रणाम घर में वृद्धों का
जिनके ह्रदय में बसता संसार आशीर्वाद का
फिर न भूलना प्रणाम अपनी जननी का
संघर्ष झेलकर जिसने कर्ज निभाया धरती का
फिर प्रणाम का अधिकार होता पिता का
जिसने हमे सिखाया कर्तव्य अपने जीवन का
फिर प्रणाम का अधिकार शिक्षक का
जिसने भेद सिखाया ज्ञान व् फ़र्ज़ के अंतर का
वैसे तो प्रणाम में समाहित संसार संस्कारों का
जीवन में अपना लेना प्रणाम का पथ उन्नति का !”
जग में जलता दिया जिसके नाम का ,
उसके बाद करो दर्शन अपने करों का
जिनमें संचित होता प्रकाश ज्ञान व् स्वास्थ्य का ,
फिर सुमिरन में प्रणाम करो धरती गगन पाताल का ,
जिनसे देखो हरदम चलता जीवन सभी का ,
फिर सदैव होता प्रणाम घर में वृद्धों का
जिनके ह्रदय में बसता संसार आशीर्वाद का
फिर न भूलना प्रणाम अपनी जननी का
संघर्ष झेलकर जिसने कर्ज निभाया धरती का
फिर प्रणाम का अधिकार होता पिता का
जिसने हमे सिखाया कर्तव्य अपने जीवन का
फिर प्रणाम का अधिकार शिक्षक का
जिसने भेद सिखाया ज्ञान व् फ़र्ज़ के अंतर का
वैसे तो प्रणाम में समाहित संसार संस्कारों का
जीवन में अपना लेना प्रणाम का पथ उन्नति का !”
भारतीय संस्कृति में हाथ जोड़कर प्रणाम को अभिवादन सूचक माना जाता है ! अच्छे जीवन की प्राप्ति हेतु विभिन्न संस्कारों की भूमिका अतुलनीय होती है ! हमारी भारतीय संस्कृति में जन्म से मृत्यु तक संस्कारों की अमृत धारा प्रवाहित होती रहती है ! अच्छे संस्कार व्यक्ति को यशश्वी , उर्जावान व् गुणवान बनाते हैं ! संस्कार देश की परिधि निर्धारित करती है ! इसीलिए समाज के सभी सदस्यों को संस्कारों की मान गरिमा बनाये रखने हेतु सजग रहना चाहिए !
बच्चों को समझाएं कि जो अपनत्व प्रणाम में है वह हाथ मिलाने के आधुनिक व्यवहार में नहीं होता ! पाश्चात्य संस्कृति का दुरूपयोग करने के नकरात्मक प्रभाव आते है , व् स्वास्थ्य के लिए भी खतरा साबित हो सकते हैं ! हेल्लो , हाय , बाय व् हाथ मिलाने से उर्जा प्राप्त नहीं होती ! हमारी आज की युवा पीढ़ी अपनी स्वस्थ परम्परा को ठुकराकर अपने लिए उन्नति के द्वार स्वय बंद कर रहे है ! हाथ मिलाने से बचें , दोनों हाथ जोड़कर या पाँव पर झुक कर अभिवादन की आदत डालें , और हाथ मिलाना से जहाँ तक हो सके बचे क्यूंकि यह स्वास्थ्य के मार्ग में और अध्यात्मिक उत्थान के मार्ग में अवरोधक हैं !
अच्छे संस्कारों में सर्वप्रथम बच्चों को बडो का सम्मान करना सिखाईये ! बच्चों को प्रणाम का महत्व समझाईये ! बच्चों के जीवन की सम्पनता प्रणाम में ही संचित होती है ! जो बच्चे नित्य बडो को , वृद्ध जनों को , व् गुरुजनों को प्रणाम करते हैं और उनकी सेवा करते हैं , उसकी आयु , विद्या , यश और बल सभी साथ साथ बढ़ते हैं ! हमारे कर्म और व्यवहार ऐसे होने चाहिए कि बड़ों के ह्रदय से हमारे लिए आशीर्वाद निकले , और हमारे व्यवहार से किसी के ह्रदय को ठेश न पहुंचे ! प्रणाम करने से हमारे समूचे भावनात्मक और वैचारिक मनोभावों पर प्रभाव पड़ता है जिससे सकरात्मक बढती है ! आयें अपने बच्चों को सही मार्ग दर्शन दें !
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बुधवार, 6 मार्च 2013
तनाव तो जीवन उपहार
इम्तहान का दौर आरम्भ हो चुका है ,सैकड़ों विद्यार्थी बोर्ड की परीक्षा दे रहे हैं ! परीक्षा कोई भी हो ,आपके पूरे वर्ष की मेहनत का रहस्य छुपाये रहती है ! इन दिनों तनाव बढना स्वाभाविक है क्यूंकि आपका सम्पूर्ण भविष्य के निर्माता होते हैं ये इम्तहान ! बच्चे ,अभिभावक व् शिक्षकगण इससे सभी प्रभावित होते हैं ! रात दिन एक करके पढाई करना ,अभिभावकों द्वारा भारी दबाब बच्चों पर घातक असर डालता है ! यह ज्ञात रहे बिना तनाव के कोई भी व्यक्ति जीवन में कोई भी मुकाम हासिल नहीं कर सकता ! यह वह अमृत धारा है जिसके सेवन से आपको अच्छे परिणाम प्राप्त करने की प्रबल इच्छा जागृत होती है ! तनाव मुक्त जीवन में व्यक्ति संघर्षशील नहीं होता , अधिक प्रयास करने की उसकी इच्छा भी नहीं होती और वह नीरस जीवन व्यतीत करता है ! इसीलिए परीक्षा से डरें नहीं अपितु अपने कार्य को सुनियोजित तरीके से पूर्ण करने की कोशिश करें !
सर्वप्रथम विद्यार्थी ये याद रखें कि परीक्षा पास करने में ईश्वर उनकी तभी मदद करेगा जब वे अध्यन में दिलचस्पी दिखायेंगे ,जितना समय वो आपस में गिले शिकवे दूर करने में ,मन्दिर मस्जिदों के चक्कर काटने में व्यर्थ करेंगे ,उतनी ही दूर उनकी मंजिल दिखेगी ! यदि किसी कारणवश आपने वर्ष भर अध्यन नहीं किया और अब भी यदि समय गवायेंगे तो क्या हासिल होगा ! अपने भाग्य को कोसने या फिर कम अंक आने के भय से नकरात्मक उर्जा को अपने ऊपर होने ही नहीं देना है ! आजकल बच्चों ने बड़ा आसान मार्ग ढूंढ लिया है ! यदि अंक अच्छे नहीं आये या परचे अच्छे नहीं गए ....तो घर से भाग जायेंगे , या फिर मौत को गले लगा लेंगे ,सारा झंझट ही खत्म हो जायेगा ! नही प्रिय बच्चों ऐसा बिलकुल भी नहीं है ,व्यक्ति का पूरा जीवन ही इम्तहान है जिसे उसे डटकर सामना करना होता है , बढाओ से डरकर आप कहीं भी जायेंगे नित्य नए इम्तहान आपके सामने आ खड़े होंगे ! इसीलिए अपने को सदा भाग्यशाली समझना कि ईश्वर ने आपको परीक्षा योग्य समझा तभी तो आप विद्यालय जा सके ,जरा उन लाखों बच्चों की ओर देखो जिन्हें दो वक़्त की रोटी नसीब नहीं होती ,विद्यालय पहुँचना तो उनके लिए सपने सरीखा है ! और क्या उनके जीवन का संघर्ष अपने आप में स्वयं इम्तहान से क्या कम है ! हरिवंश राय बच्चन जी कविता बारम्बार पढ़ा करो ...तनाव ही आपकी मंजिल बनने में सहायक सिद्ध होगी ...याद कर लेना इस रचना को और जीवन में अपने उतार लेना
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है ।
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है ।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है ।
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है ।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है ।
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है ।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में ।
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में ।
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ।
असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो ।
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो ।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम ।
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम ।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती !
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती !
अभिभावकों से भी निवेदन केवल परीक्षा के दिनों में बच्चों पर परीक्षा का दबाब न बनाएं , पूरे वर्ष भर उनका संबल बने और उनकी हर विषय की समस्याओं को समझने की चेष्ठा करें ! अच्छा स्वास्थ्य वर्धक भोजन ,व्यायाम ,व् जीवन संघर्ष युक्त प्रेरित करती रचनाओं द्वारा उनके उचित मार्गदर्शी बनिए ! परीक्षा नजदीक आते ही माता-पिता का तनाव बच्चों पर हावी होने लगता है। बच्चों ने चाहे पूरे साल ढंग से तैयारी की हो पर परीक्षा नजदीक आते ही माता-पिता बच्चों के पीछे पडे रहते हैं। टीवी देखना, बातें करना, खेलना-कूदना सब बंद कर देते हैं। पर यह सब गलत है। जहां तक हो सके बच्चों के साथ दोस्ताना बर्ताव करें। अपना तनाव कम रखें ताकि बच्चे तनाव में न आए। हर वक्त बच्चे को पढते रहने की नसीहत न दें। उसे अपने हिसाब से तैयारी करने के लिए कहें। बस यह ध्यान रखें कि वह हर विषय को पूरा समय दे। तनाव युक्त जीवन को सहर्ष अपनाएं अपना व् समाज हित में सदैव अग्रसर रहिए ! सभी परीक्षार्थियों को मेरी और से शुभकामनायें !
गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013
बढ़ता इलेक्ट्रॉनिक नशा
आज की भागती दौड़ती जीवन शैली में लोगों के व्यवहार में भारी परिवर्तन आया है ! एक ही परिवार के सदस्यों के मध्य सामजस्य का आभाव आने लगा है ! आपसी मतभेद से बचने के लिए अनेको माध्यम से लोग अपनी जिम्मेदारी से बचने का कुशल अभिनय करने लगे हैं ! आज के युग में इलेक्ट्रॉनिक नशा हर व्यक्ति के सर चढ़ कर बोल रहा है ! हम अपने दिनचर्या में मुख्य समय टी . वी या इन्टरनेट के साथ व्यतीत करना सीख गए हैं !यह ऐसा घातक नशा बनता जा रहा है जिसमें व्यक्ति के दिलो दिमाग में उसके कार्यक्रमों के प्रति बैचैनी दिखाई देने लगी है ! सोते जागते , हर कार्य में इन उपकरणों से अत्याधिक लगाव भविष्य में कई चुनौती को दावत दे रही है !
पहले बच्चे स्कूल से आकर गृहकार्य , क्रीडा और बडो के साथ बैठकर विचारों का आदान प्रदान करते थे किन्तु आज वह स्कूल से आने के पश्चात सीधे टी .वी , कंप्यूटर के आगे बैठ जाता है और अपने पसंदीदा कार्यक्रम के साथ भोजन को मात्र भूख मिटाने के लिए खाने लगा है !यही उसे धीरे -धीरे मोटापे , मधुमेह और ह्रदय रोगों की ओर धकेल रहा है ! इसके साथ साथ मानसिक कुरीतियाँ भी बढ़ रही हैं !अच्छे ज्ञान के स्थान पर बुरे ,हिंसात्मक व् अश्लीलता प्रधान कार्यक्रम की ओर उसका बढ़ता नशा समाजिक चिंता का विषय बन गया है !
आज वयस्क भी अपनी परेशानी को भुलाने के लिए इन्ही साधनों के आगे घंटों बैठकर समय व्यतीत तो कर लेता है किन्तु उसके पास घरेलू जिम्मेदारी को निपटाने का समय नहीं होता ! फूहड़ ,बेसिर पैर के कार्यक्रम में उलझा तो रहेगा किन्तु बच्चों को नैतिक ज्ञान देने का उसके पास समय नहीं होता !बड़ी विडम्बना है की जहाँ आपके पास आधा घंटा भी अपने परिवार की उलझनों को सुलझाने हेतु समय नहीं होता तो आप 2-3 घंटे टी .वी .हेतु कैसे निकाल पाते हैं ! इसी तरह महिलाएं चाहे वे घरेलू हों या कामकाजी ,बेकार के समाजिक पतन दर्शाने वाले कार्यक्रमों पर अपने पारिवारिक सदस्यों के साथ घंटो बिता लेंगी , या फिर अपनी मित्र मंडली में बढ़ चढ़ कर एक एक पात्र की चर्चा में भाग लेंगी किन्तु उन बुराईयों के प्रति अपने बच्चों का मार्ग दर्शन करने का उनके पास समय क्यूँ नहीं रहता ? अपनी घरेलू नैतिक जिम्मेदारी के प्रति उसका उदासीन व्यवहार पारिवारिक विघटन के संकेत देने लगा हैं ! मुख्य बात यह की अपने पसंदीदा पात्र के जीवन को अपने जीवन का लक्ष्य बना बेहद चिंता का विषय बन गया है !
जिस पारिवारिक परिवेश में इलेक्ट्रॉनिक एडिक्शन अधिक है वहां के परिवेश में प्रेम ,त्याग और आपसी सामजस्य की भारी कमी दिखने लगी है ! हर कार्यों को एक दूसरे पर टालने जैसे इन परिवेश के सदस्यों का गुण बन गया है !भौतिक सुखों की आड़ में यह आधुनिक नशा कितना घातक सिद्ध हो रहा है इसका तो शायद आज आदमी समझना ही नहीं चाह रहा ! मनोरंजन जब विकृत रूप लेने लगे तो समाज को स्वत : सावधान हो जाना चाहिए ! एक बात का सदैव ख्याल रखें कि टी . वी . पर आने वाले कार्यक्रमों का यह काम नहीं कि वे समाज को दिशा दें या न दें , उनका कार्य तो मात्र पैसा बटोरना है ! चाहे इसके लिए उन्हें फूहड़ मनोरंजन ,हिंसा ,कल्पित ,संस्कार विहीन कहानियाँ ही परोसना पड़े !यहाँ तक कि धर्माचार्यों के उपदेशों को ही न सुनना पड़े ! उनको तो आय प्राप्त हो रही है ! यह तो आपको तय करना है कि आपके लिए और आपके परिवार के लिए क्या सही है और क्या गलत ! सभी कार्यक्रम सकरात्मक नहीं होते ,उनके नकरात्मक भावों को समझने व् परिवार से बचाने का प्रयास कौन करेगा !
टी . वी . इन्टरनेट जहां एक ओर समाज को भटकाव की ओर ले जा रही है वहीं यदि इसके सकरात्मक पहलूओं की ओर यदि हम अपने परिवार का रुझान बढ़ायेंगे तो वह समय का सदुपयोग कहलायेगा ! अधिक से अधिक प्रयास करें कि सभी परिवार के सदस्य एक सुनिश्चित समय पर समाचार , ज्ञानवर्धक कार्यक्रम देखें और उस पर चर्चा करें ! अपने पारिवारिक व् नैतिक जिम्मेदारी को समझें ,एक सुंदर शिक्षित ,संस्कारवान समाज के निर्माण में सहयोग दें !
सदैव याद रखें ,"दुनिया वैसी ही है जैसे हम इसके बारे में सोचते हैं, यदि हम अपने विचारों को बदल सकें, तो हम दुनिया को बदल सकते हैं।" ~ एच. एम. टोमलिसन
बुधवार, 20 फ़रवरी 2013
बचपन सँवारें प्रसंशा टॉनिक के संग
प्रसंशा जीवन का वह अनमोल रत्न जिसकी धुरी के इर्दगिर्द मनुष्य के व्यक्तित्व का विकास होता है !यह एक टॉनिक के समान है जो व्यक्ति का सर्वांगीण विकास में सहायक बनता है ! प्रसंशा के दो बोल व्यक्ति विशेषकर बच्चों में आत्मविश्वाश बढाने के साथ -साथ उन्हें जीवन संघर्ष झेलने के लिए भी प्रेरित करता है !बच्चों को प्रोत्साहित करते रहेंगे तो आत्मविश्वास बढ़ेगा ! उनके चिन्तन पर सकरात्मक प्रभाव पड़ेगा ! बच्चों को सृजनात्मक कार्यों की ओर प्रोत्साहित करें ताकि वे अपने रूचि के अनुसार और बढ़िया नतीजे सामने ला सकें ! प्रसंशा करते समय इस बात का ध्यान रखे की आपके द्वारा दी गयी तारीफ कृत्रिम न लगे ,जब भी दें पूरे उर्जा से दें ! बच्चा छोटा भले ही हो अनुभूति उसके भीतर भी है !
अक्सर अभिभावक ही अपने बच्चों के विकास में बाधाएं उत्पन्न करते हैं ! बात बात पर डांटना ,टीका टिप्पण करना , हतोसाहित करना जिसके प्रभाव में बच्चों में हीन भावनाओ का विकास होता है ! अभिभावकों द्वारा यह अवधारणा कि प्रसंशा बच्चों को जिद्दी व् घमंडी बनाता है ,निराधार है ! मनो वैज्ञानिक इस दिशा में निरंतर शोध करते रहते हैं ! उनके अनुसार यदि बच्चों को अपने अभिभावक ,शिक्षकों व् अपने परिवेश का समर्थन प्राप्त होता है उनका सर्वांगीण विकास होता है जो उनके जीवनपर्यंत काम आता है ! बच्चो की बस आवश्यकता से अधिक प्रसंशा करना गलत है क्यूंकि यदि वह इसका आदि हो जायेगा तो आप अपना ही महत्व खो देंगे ! ऐसी स्तिथि में वस्तुत : व् जिद्दी बन सकता है और झूठी प्रसंशा की ओर लालायत हो जायेगा जिसका नुक्सान उसे तो होगा ही किन्तु भविष्य में आपकी भी दुखद स्तिथि बनने का अंदेशा रहेगा !
यदि बड़े बच्चों का उचित समय पर उचित प्रसंशा करेंगे तो बच्चों के मन में इसका सकरात्मक प्रभाव तो दिखेगा ही साथ में वे इस गुण के साथ आस पास के परिवेश में व्यवहार करते दिखेंगे !किन्तु इसके विपरीत उनके कार्यों को दूसरों के साथ तुलना करते हुए उनकी आलोचना करेंगे तो यही बच्चे न केवल हीन भावना का शिकार होंगे अपितु अपनी त्रासदी से आस पास के माहौल को भी कुंठाग्रस्त बना देंगे !
सभी व्यस्क यह ध्यान रखें कि हमे बच्चों के सुख दुःख में समभाव रखना है और उन्हें निरंतर प्रगति पथ पर अग्रसर करना है ! उसेउनकी हार में अकेला न छोड़े बल्कि उसके मनोदशा में साथ देना है ,इससे उसका मनोबल बढेगा और उसका ह्रदय भी दूसरों के लिए विशाल बनेगा ! इन्ही भावनाओ को लेकर जब वह अपने परिवेश में कार्य करेगा तो उसमें आपकी आदतों का प्रतिबिम्ब स्पष्ठ दिखेगा ! यदि हम हर स्तिथि में उनका साथ देते हैं और उसके अच्छे कार्यों पर उनका हौसला बढ़ाते हैं ,तो आप यह समझ लें की आप देश के प्रति अपने दायित्व निबाह रहे हैं ! बच्चों के साथ मित्रता रखेंगे तो उनको भी अहसास होगा कि दुनिया सुंदर है वे जीवन का मकसद समझेगें।
बच्चों का मन कोमल फूलों की पंखुड़ियों समान होता है ! यदि बड़े उनकी प्रसंशा करते हैं तो यही गुण उसके व्यक्तित्व का अभिन्न अंग बन जायेगा ! घर में आनन्द का माहौल रहेगा तो बच्चों के भीतर सकरात्मक उर्जा का संचार होगा और इस प्रतिस्पर्धा के दौर में वे किसी प्रकार के बोझ में नहीं दबेंगे ! यह भी ध्यान रखे कि यदि हम उनकी गलतियों में उनको सकरात्मक दिशा न डकार उनकी आलोचना करेंगे तो वे भी बात बात में आपकी कमियाँ ढूँढने से न चूकेंगे और आपसे नजरे चुरायेंगे ! कुछ बच्चे दब्बू भी बन जाते है !उनके साथ दुश्मनी भरा सौतेला व्यवहार मत कीजिये अन्यथा वे अपनी कुंठाओं के आग में समाज के विध्वंशक बन जायेंगे जिसका पश्चताप भी नहीं हो सकेगा ! रास्ट्र के निर्माण में हमे अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निबाहनी है ! आएँ हम सभी मिलकर प्रसंशा टॉनिक का प्रचार करें ! हमेशा याद रखें कि'' यदि आप चाहते हैं कि आपका बच्चा सही मार्ग पर चले, तो केवल उसे सही मार्ग की जानकारी प्रदान न करें, बल्कि उस पर चल कर भी दिखाएं।'' ~ जे. ए. रोसेनक्रांज
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