बुधवार, 9 जनवरी 2013


 नैतिक शिक्षा 
राष्ट्र   निर्माण  की  सच्ची  आधारशिला  यह  है  कि  नैतिक  व् धार्मिक वातावरण उत्पन्न किया जाये ! बाल्यकाल से ही घर , परिवार , विद्यालय  , कॉलेज  व् समाज में संस्कारों का प्रसार करना चाहिए ! व्यक्तिगत था समाजिक जीवन में सुसंस्कृत विचारधारा  एवं सुव्यवस्तिथ  कार्य प्रणाली  का होना आवश्यक है !यदि हमारी युवा पीढ़ी सिद्धांतों  के प्रति आस्थावान व् सजग नहीं है तो  समझ लेना चाहिए कि  उनमें  संस्कारों  की  दीक्षा  का आभाव  रहा है ! अच्छी  पुस्तकें सहानुभूति में मित्र  शिक्षण  में गुरु और सम्पूर्ण जीवन  में नेक  राह चलने की प्रेरणा देने वाले परमात्मा की तरह होती है ! जीवन में प्रत्येक  वस्तुओं पर सभी का ध्यान केन्द्रित रहता है किन्तु नैतिक ज्ञान को अनदेखा किया जाता है  जो चरित्र  निर्माता होती है ! सत्साहित्य से जो प्रेरणाएं मिलती है उसका प्रभाव  व्यक्ति के चिन्तन  व् चरित्र पर पड़ता है और उसकी प्रतिक्रिया   निश्चिंत  रूप  से  दृष्टीकोण  के परिष्कार एवं समुन्नत  जीवन  क्रम  के रूप  सामने आती है ! नैतिक शिक्षा को संजीवनी  विद्या  भी  कह  सकते हैं  जो खून को सदैव  दूषित अणो  से दूर  रखती  हैं !
आज के वर्तमान परिस्तिथि को देखते हुए , हमे  बच्चों  के  विकास  हेतु  प्रयत्नशील  बनना पडेगा ! संस्कार का मूल विद्यालय  वैसे तो घर ही है जिसमें अभिवावक  का महत्वपूर्ण योगदान होता है ! उसके पश्चात  विद्यालय  शिक्षा  में  नैतिक  मूल्यों  का पाठ्यक्रम  में शामिल होना अनिवार्य है ! किन्तु यह भी सत्य है कि  नैतिक शिक्षा  को चरणों  में बाँधकर  यदि बच्चे को सुस्कृत  बना लिया जाये तो आज की हिंसा की मनोवृति से कदाचित वह दूर रह पायेगा ! हम लोग  अक्सर बच्चों  की पढाई में संस्कारों को केवल  प्राथमिक  कक्षा तक  केन्द्रित  कर  देते हैं जबकि यह जीवनपर्यंत  प्राप्त होती रहनी चाहिए !  विशेषत: बच्चों  के मानसिक विकास यूँ तो 2-12 वर्ष में   बन जाता है ,किन्तु इस समय तक   वह स्वयं को  सामाजिक  परिवेश  की विभिन्न  कसौटियों  को परखने  में अक्षम रहता है ! इसीलिए मनोवैज्ञानिकों  का मानना है की नैतिक शिक्षा की मुख्य भूमिका 13 वर्ष से 19 वर्ष की आयु तक प्रभावी रूप से शिक्षण  संस्थाओं  द्वारा अनिवार्य किया जाना चाहिए ! सभी अभिभावकों व् शिक्षकों का मुख्य कार्य बच्चों के चेतन व् अवचेतन मन  का विकास होना चाहिए !
मनोवैज्ञानिकों  का मत है कि मन को अध्यात्म  से जोड़कर काफी हद तक संतुलित किया जा सकता है जो कि  मनुष्य को प्रत्येक क्षण उसके कार्यों के प्रति सजग रखता है ! यह बच्चों व् बड़ो की आदतों को नियंत्रित करता है! जिससे वे समय व् परिस्तिथि  के अनुसार कार्य व् निर्णय  लेने में सक्षम  रहते हैं !  अच्छे  चरित्रों  की उपलब्ध  कथाओं के माध्यम से व् प्रयोगात्मक शैली से बच्चों  के अंदर  नैतिक मूल्यों  का विकास  करना चाहिए !यही उसके चरित्र का निर्माता भी है ! 
आज का कट्टू  सत्य है की बच्चे दिन ब  दिन हिंसा ,झडप व्  बैचनी  से भरे माहौल में बड़े हो रहे हैं ! जिसमें  बेईमानी  की पराकाष्ठा बढ़ी है ! चरित्र  निर्माण  एक  जटिल प्रक्रिया है ! हम सभी मिलकर  विपरीत परिस्तिथियों   को बदलेंगे  और बदलकर ही रखेंगे ऐसा सभी को वचनबद्ध होना पड़ेगा !  उत्कृष्टता  और आदर्शवादिता  की किरणे  हर अंत :कर्ण तक पहुँचायेंगे ! इन नैतिक मूल्यों से बचपन  को  निखारते रहना होगा  जिससे उनके भविष्य को  मजबूत दिशा मिल सकेगी ! इन में प्रमुख हैं !1. . एक  दूसरे  के प्रति  प्रेम  व्  सहानुभूति  2 .ईमानदारी  3  मेहनत 4. एक दूसरों  के लिए आदर भाव ,5 आपसी सहयोग की प्रबल भावना 6.समरसता की भावना 7 .क्षमा  8  भेदभाव से अछूता संसार 10. एकता  की उन्नत भावना ! प्रत्येक बच्चे को  महान आदर्शों  के अनुरूप  ढालने  और सभी को प्रेरित करते रहना के प्रयास को मुख्य धारा से जोड़ना  मुख्य ध्येय  बने ! ज्ञानयज्ञ की चिंगारी भारत के कोने कोने पहुँचाने का बीड़ा उठाना होगा !
नैतिक शिक्षा प्राईमरी या माध्यमिक  तक ही सीमित रखा गया है ! 12 वर्ष तक माँ , 19 वर्ष तक पिता व् शिक्षक और उसके पश्चात  समाज का एक व्यक्ति के चरित्र निर्माण  का दायित्व होता है ! और यही विडंबना  है कि  विद्यालयों  में आठवी कक्षा के बाद नैतिक शिक्षा को निर्थक मान कर पाठ्यक्रम से हटा  लिया जाता है !किन्तु अक्सर पिता यह सोचकर की बच्चा बड़ा हो गया है और समाज इसलिए बेपरवाह रहता है कि  यह अभिभावक की जिम्मेदारी है ! हर व्यक्ति एक दूसरे  के कंधों पर अपने कर्तव्य  लाद  देते हैं और यहीं से आरम्भ होता है बच्चों का नैतिक पतन ! 13 वर्ष से 19 वर्ष की भावुक उम्र में वे परिवार व् समाज के नियन्त्रण से आज़ाद होकर  वे अपनी अलग  दुनिया  में मग्न हो जाते हैं ! और जब यही बच्चे भटक जातें हैं तब आरभ होता है एक दूसरे  पर आरोप प्रत्यारोपों  का अंतहीन सिलसिला ! इसीलिए सभी से अनुरोध की समय रहते ही सजग हो जाएँ नहीं तो आने वाला कल अनैतिक तत्वों से बढ़ जाएगा जिसमें आप हम सभी दोषी होंगे !

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