देश का भविष्य : ख़ुशी
आज की बढती प्रतिस्पर्धा युग का विषाद बन रही है ,अवसाद ! जीवन के विभिन्न आयामों से जूझ रहे तकरीबन 80% लोग अवसाद से ग्रसित हैं ! सामजिक , राजनितिक , आर्थिक व् व्यवसायिक क्षेत्र में तालमेल के आभाव में व्यक्ति की आंतरिक ख़ुशी प्रभावित हुयी है ! इसका सीधे सीधे प्रभाव उसके परिवार विशेषकर बच्चों पर पड़ता है ! चिडचिडापन , अध्याधिक चिंतनशील रहना , दब्बूपन अथवा झगडालू प्रवृति ने हंसी ख़ुशी के वातावरण को दीमक की तरह चाटना आरम्भ कर दिया है ! इसका प्रतिकूल असर सामाजिक परिपेक्ष में आज दिख रहा है जो भविष्य में विकराल रूप धारण कर लेगी ! आज हम जानने की चेष्ठा करेंगे आखिर ख़ुशी क्या होती है और कहाँ से प्राप्त की जा सकती है !
हर व्यक्ति का अपने जीवन को देखने का नजरिया अलग होता है ! घुमकड़ी , विभिन्न स्वादों का लुफ्त लेना , अपने शौक पूरे करना ,, पुस्तकें पढना , विभिन्न कलाओं से जुड़ना इत्यादि विभिन्न माध्यम दृष्टीगोचर होते हैं ! दुनिया में बड़े पैमाने में मनोवैज्ञानी ने खुशियों के पैमाने ढूँढने का प्रयास कर रहे हैं ! जिससे वे लोगों को अवसादों से बाहर ला सकें ! ख़ुशी कोई खरीदने या बेचने वाली वास्तु नहीं है ! यह तो आंतरिक भावनात्मक दर्पण है जो लोगों में भिन्नता लिए हुए होती है !जिसमें धन , व्यवसायिक सुरक्षा , सामजिक सुरक्षा , सच्ची मित्रताएं , घरेलु सुरक्षा एवं सुरक्षित भविष्य शामिल हैं !
प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तु ने कहा था कि ख़ुशी जीवन का अर्थ और उद्देश्य दोनों हैं ! उनके अनुसार लोग भौतिक सुखो में ख़ुशी के आयाम ढूँढने में मग्न रहते हैं ! किन्तु मंजिल हासिल होने के बाद भी खुश नहीं दिखते और जब निराशाएं घेरने लगती हैं तो अपने आपको दोषी मानते हुए कुंठाओं से ग्रसित कर लेते हैं ! फिर आरम्भ होता है डाक्टरों के यहाँ चक्कर काटने का अंतहीन सिलसिला या फिर किसी आध्यात्मिक गुरुओं की तलाश ! अपने व्यक्तिगत जीवन को आंतरिक व् बाह्य आवश्यकताओं के आपूर्ति के आभाव में अवसादित जीवन जीते हैं !
महात्मा बुद्ध के अनुसार जिस तरह एक मोमबती से हजारों मोमबतियां जलाई जासकती हैं और उस मोमबती की उम्र कम नहीं होती इसी प्रकार ख़ुशी भी बांटने से कम नहीं होती ! यदि हम ऐसी सीख को जीवन में अपनाएं तो यकीनन हमारी ऐसी उन्नति होती चली जाएगी कि हम ख़ुशी के ऊँचे शिखर पर पहुँच जायेंगे ! संसार के प्रलोभन हमे भटकाते हैं किन्तु अपने भविष्य निर्माण की दिशा में हमे अपने आध्यात्मिक विकास की ओर भी चिंतनशील रहना चाहिए ! मन हमारा तभी प्रसन्न रह पायेगा जब हम जीवन की विषम परिस्तिथि से न घबराएं अपितु उन्हें आत्मसात करते चले जाएँ !
अपनी निंदा स्तुति , हानि लाभ , मान अपमान , यश अपयश की परिस्तिथियों में समान व् आशावादी बने रहना चाहिए ! भौतिक आनन्द के स्थान पर आत्मिक आनन्द की ओर अग्रसर रहना चाहिए !सत्स्न्गीत , सत्साहित्य सत्संग और समभाव ही हमे ख़ुशी देता है ! मिलनसार , सहनशील , संवेदनशील व्यक्ति हर परिस्तिथियों में अपने को खुश रखने में सक्षम रहता है ! सत्कर्म ,सतविचार व् अछे मित्र को जीवन की आधारशिला बनानी चाहिए ! सच्चे लग्न से किया गया कार्य ही सच्ची ख़ुशी देता है ! ह्रदय की पवित्रता , मृदु वाणी मनुष्य को प्रसन्नचित रखती है और उसका कल्याण करती है !
अभिभावक जब माता पिता का दायित्व निबाहते हैं तो सर्वप्रथम अपने बच्चे के सर्वांगीण विकास हेतु उसके अंतर्मन के प्रत्येक पहलूओं का उन्हें ज्ञान रखना चाहिए !उनकी जिन्दगी को बेहतरीन दिशा देने के लिए उनमें अच्छे संस्कार भरकर उनके चरित्र का निर्माण करेंगे तो घर परिवार ,समाज में खुशियों की भार आएगी ! बच्चे देश के अमूल्य निधि हैं ! इन्हें सुसंस्कृत बनाने की नैतिक जिम्मेदारी अभिभावक व् शिक्षकों पर होता है ! उन्हें अकेलेपन से बचाना चाहिए ! उनकी गतिविधियों पर नजर रखे ! भटकाव की स्तिथि में दण्डित करने के पैमाने से बचकर व्यवहारिकता से समस्यायों को सुलझाएं ! 16 वर्ष की उम्र के बाद बच्चों के मस्तिष्क की गतिविधियाँ स्वयं को परिपक्वता की दिशा देने लगती है यही समय है जिसमें बच्चे दिशाविहीन होकर विभिन्न प्रकार नशे के शिकार होने लगते हैं ! नासमझी में ये गलत दिशा में खुशियाँ तलाशने लगते हैं!
खुशियों को इच्छाओं का प्रतिबिम्ब माना जाता है ! जैसे जैसे आपकी इच्छाएं पूर्ण होती जाती हैं वैसे वैसे आपको ख़ुशी मिलती जाती हैं ! ख़ुशी के मायने व्यक्ति के चिंतनशैली पर निर्भर करती है जो प्रत्येक व्यक्ति में भिन्न होती है ! ख़ुशी यदि सकारात्मक है तो बच्चे के विकास में बढ़ोतरी करती है अन्यथा पतन का कारक भी बनती है ! ख़ुशी ऐसी भावना जो मन के सारे अवसादों को हल्का कर देती है और होठों पर मुस्कान ले आती है ! हर व्यक्ति के खुशियों के मायनों में उपभोग की वस्तुएं , शौकिए कार्य , पारिवारिक समारोह , अपनी उपलब्धियां और आध्यात्म शामिल होते जिसमें परिस्तिथि के अनुसार इनके प्रतिशत घटे बढ़ते रहते हैं !
छोटे बच्चे सरल होते हैं , इनकी खुशियाँ इनके आत्मसम्मान पर टिकी होती हैं ! कोमल हृदय के कारण इनका आत्मबल शीघ्र क्षीण होने लगता है इसीलिए अभिभावकों को अपने बच्चो से धैर्य से काम लेना चाहिए ,अधिक अनुशाशन युक्त दबाब बच्चो के मनोबल का हनन करते हैं जिसका प्रतिरूप अभिभावक उनके युवा अवस्था में सभी भुगतते हैं क्यूंकि शनै शनै बाल कोमल मन अवसादित होकर भविष्य में अनैतिक क्रियाओं में क्रियाशील होता चला जाता हैं ,फिर उन्हें उनसे छीनी गयी खुशियाँ लौटना नामुमकिन होता चला जाता है ! समाज में बढ़ते अपराध का मुख्य कारण यह भी है ! आज संस्कार से निमित समाज की अत्यंत आवश्यकता है ! इसमें प्रत्येक व्यस्क को समाज निर्माण के प्रति नैतिक जिम्मेदारी निबाहनी होगी तभी हर ह्रदय में खुशियों की बहार दिखेगी !
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