बच्चों में आत्मविश्वास
मनोबल व् सच्ची लगन से जीवन के हर संघर्ष में व्यक्ति कामयाब रहता है ! बच्चो में आत्मविश्वास की कमी उन्हें हीन भावना से भर देती है ! आत्मविश्वास की कमी व्यक्तित्व के विकास में रूकावट है ! इसके आभाव में बच्चों के अन्दर नकारात्मक विचार भर देती है ! और यदि इन विचारों की बढोतरी हो जाये तो बच्चे दिशाहीनता के शिकार हो जाते हैं ! ऐसे में बच्चे अपनी काल्पनिक दुनिया बना लेते हैं जिसमें उन्हें अपने भीतर कमियाँ ही कमियाँ दिखाई देने लगती है ! फिर वे अपने को दुनिया की नजरों से दूर छुपाने की कोशिश में लग जाते हैं ! उनके मन :चिन्तन पर हीन भावना प्रचुर मात्रा में भर जाती है ! ऐसे में इन बच्चों को एकाकीपन अधिक लुभाता है ! जो बच्चे हीन भावना से ग्रसित होते हैं उनमें आत्मविश्वास की भारी कमी दिखती है ! उनकी प्रत्येक क्षेत्र की प्रगति में रूकावट आने लगती है ! साथ में उनका यह समझने लगना की वे जीवन में कभी सफल नहीं हो पाएंगे ,उनके व्यक्तित्व में घातक प्रहार करता है !
बच्चों को सिखाएं कि वे अपने भीतर सकरात्मक विचारों का संचार करें ! अच्छी किताबें जिसमें महान संतों की वाणी हो ,उन्हें पढने से उनके भीतर आत्मबल का संचार होगा जिससे उन्हें अपनी अपनी समस्यायों से दृढ़ता से जूझना आ जायेगा ! बच्चों से कहें कि वे अपने आस पास ध्यान से देखें कि हर व्यक्ति के अंदर कुछ न कुछ कमी दिखने लगेगी ! इस सृष्टी की सम्पूर्णता केवल ईश्वर के पास है बाकि सभी किसी न किसी क्षेत्र में दूसरे से अधिक सक्षम होते हैं ! उन्हें उनके गुण पहचानना सिखाएं ताकि वे उसी दिशा में अपनी योगिता अनुसार अपने भीतर की उर्जा का संचार कर सकें ! इससे उनके भीतर पनप रहे नकारात्मक चिन्तन से वे भी बचे रहेंगे साथ ही उनके परिवेश पर भी बुरा असर नहीं पड़ेगा ! बच्चे यह सीख लें की नकारात्मक चिंतन से पूरे समाज को हानि होती है ! कभी वे स्वय को दुसरे से कम न समझे ! यदि एक बच्चा कक्षा में पढाई में अव्वल है तो दूसरा बच्चा खेल में तो तीसरा कला में तो चौथा तकनीकी क्षेत्र में ! हर बच्चे की बोद्धिक क्षमता भी भिन्न होती है ! अभिभावक व् शिक्षक बच्चों को गुमराह होने से बचा सकते हैं ! आज के दौर में शिक्षा प्रणाली भी इसी वजह से लचीली कर दी गयी है ! बच्चों के गुणों का आकलन मात्र पढाई से ही नहीं अपितु उनके सर्वागीण विकास से किया जाना चाहिए !हर बच्चा के भीतर किसी न किसी क्षेत्र की प्रतिभा छुपी होती है ! बच्चों को स्वय का आकलन करना सिखाएं कि उन्हें किन कारणों से हीन भावना आती है ! कक्षा में अनुतीर्ण होना / शिक्षकों द्वारा फटकार या प्रताड़ना / अभिभावकों द्वारा किये जाने वाली तुलनात्मक आलोचना / परिवार में आपके दातित्व / खुद की कमी / लापरवाही इत्यादि अन्य कारण उन्हें स्वयम मनन करना होगा !
अभिभावक भी ध्यान दें कि बच्चों का मन उस कोमल मिट्टी की भांति है जिसे आप यानि कुम्हार अपने इच्छा अनुरूप ढालता है ! आप अपने बच्चे के गुण दोष परखिये ,फिर उसी अनुसार उसे दिशा दें ! मारना / डांटना / आलोचना करने से आप बच्चे के विकास में स्वयम बाधा डालते हैं ! यदि आप उनका आत्मबल बढाने में अक्षम हैं तो कम से कम उन्हें गहन अन्धकार की ओर न धकेलें ! अपने बच्चे की रूचि पहचानिए और उसे उस में व्यस्त होने दीजिये ! आप स्वयं देखेंगे की समय के साथ उसका आत्मविश्वास भी बढेगा और वह बाकि क्षेत्रों में स्वत : रूचि लेने लगेगा ! कभी बच्चों को डरायें धमकाएं नहीं क्यूंकि अक्सर इसके दुष्परिणाम भी आपको ही झेलने पड़ेंगे ! आत्मविश्वास की कमी से बच्चे कई बार गलत निर्णय ले बैठते हैं जिसकी वजह से बाद में आप जीवन भर पछतायेंगे ! बच्चों के बीच संवाद बनाये रखें यह सुझाव विशेषकर उन अभिभावकों के लिए महत्वपूर्ण है जो अपने कार्य में व्यस्त रहते हैं ! उन्हें प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए प्रेरित करें किन्तु उन्हें अपनी कठपुतली न बनाएं ! बच्चों को प्रतिस्पर्धा के अनुकूल बनाएं पर उस पर इसका बोझ न डालें ! जब जब बच्चा कोई प्रशंसनीय कार्य करे तो उसकी तारीफ करें इससे उसमें आत्मविश्वास बढ़ेगा ! बच्चो के सामने आप अपना आदर्श स्थापित करें ताकि वह अपनी दिक्कते स्वय आपके सामने रखना सीख लें ! कभी भी भूल से नकरात्मक शब्दों का इस्तेमाल न करें ! अच्छे कुशल माली के समान – उन्हें स्वस्थ पोषण दें। माली पौधे को खाद पानी देता है। खर पतवार को पास उगने नहीं देता। धूप, अतिवृष्टि, अनावृष्टि से बचाता है। यदि डालियां इधर-उधर बढ़ रही हैं तो सुंदर रूप देने के लिए काट छांट भी करता है।अभिभावक भी बच्चों को स्वस्थ साहित्य पढ़ने को दें, बुराई से बचाएं, गंदे व्यवहार की निंदा करते हुए उन्हें उनसे दूर रखें और सबसे अहम बच्चों का मनोविज्ञान समझें और अपना भी।
शिक्षकगण की भूमिका भी सकरात्मक होनी चाहिए ! शिक्षक केवल किसी विद्यार्थी को अपने अद्यापन क्षेत्र में सम्पूर्ण बनाने की चेष्ठा नहीं करता अपितु उनके व्यक्तित्व के विकास में उनकी नैतिक भागीदारी होती है ! उन्हें उनकी योग्यता फ्च्न्ने में मदद करें ! नन्हे बीजो को सुंदर फलदार वृक्ष में बदलना जो मानवतावाद से भरपूर हो ,इसकी जिम्मेदार भी शिक्षक ही होते हैं ! सब बच्चों को समान दृष्टि से देखें, निश्छल व्यवहार करें व समय का पालन करें – तो यह गुण बच्चों में स्वत: आ जाएंगे। वे भी समय पर अपना कार्य पूर्ण कर के दिखाएंगे व सबके साथ मित्रवत व्यवहार करेंगे।उनके अभिभावकों के सामने उनकी निंदा न करके उनकी उन अच्छाईयों को पहले सामने लायें जो उनके विकास में आधारशिला का कार्य करता है ! उसके पश्चात यदि उनकी कमजोरियां सामने लायी जाएँगी तो वे स्वयं अपने को सुधरने का प्रयत्न करेंगे ! उनकी हर विषय में रूचि जागृत करने हेतु उन्हें प्रयोगिक कार्यशाला द्वारा अध्यन कराएं ! इससे वह मात्र किताबी ज्ञान न लेकर वास्तविक जगत का सामना करने लायक हो पायेगा ! नैतिक शिक्षा की कक्षा में आत्मविश्वास बढाने वाली कहानियों द्वारा मार्गदर्शन करें ! समाज कल्याण की दिशा में प्रेरित करने वाले अभियान से बच्चों को जोड़े , उन्हें मात्र किताबी आदर्श न सिखाकर वास्तविक जगत के प्रतिस्ठित लोगो से मिलवाएं जिससे उनमें भी आत्मबल का संचार हो और वे भी जीवन में कुछ सीखने व् बनने के लिए लालायित रहे ! परीक्षा के दिनों में उनके आत्मबल को डिगने न दें ! लगातार बच्चे के अभिभावक के सम्पर्क में रहे ! मनोचिकित्सक डा. क्षितिज विमल जी का सुझाव है कि अध्यापक इस बात का जरूर ध्यान दें कि जो वे बच्चों को पढ़ा रहे हैं, उसके प्रति बच्चे संतुष्ट दिखे। क्योंकि अगर बच्चे संतुष्ट नहीं होंगे तो मानसिक तनाव बढ़ने के आसार होते हैं। अभिभावक भी इस बात पर ध्यान दें कि बच्चों पर ज्यादा प्रेशर न डालें और गलती से भी उनमें हीन भावना पैदा न होने पाए।
अंत में हम सबकी नैतिक जिम्मेदारी है की हम अपनी वाटिका के सुगन्धित पुष्प की सुगंधी को चहु दिशा में फ़ैलाने हेतु उनकी शक्ति बने ! बच्चों को प्रतिभावान बनाएं ! मैरी क्यूरी के अनुसार ,"हम में से जीवन किसी के लिए भी सरल नहीं है. लेकिन इससे क्या? हम में अडिगता होनी चाहिए तथा इससे भी अधिक अपने में विश्वास होना चाहिए. हमें यह विश्वास होना चाहिए कि हम सभी में कुछ न कुछ विशेषता है तथा इसे अवश्य ही प्राप्त किया जाना चाहिए"
मनोबल व् सच्ची लगन से जीवन के हर संघर्ष में व्यक्ति कामयाब रहता है ! बच्चो में आत्मविश्वास की कमी उन्हें हीन भावना से भर देती है ! आत्मविश्वास की कमी व्यक्तित्व के विकास में रूकावट है ! इसके आभाव में बच्चों के अन्दर नकारात्मक विचार भर देती है ! और यदि इन विचारों की बढोतरी हो जाये तो बच्चे दिशाहीनता के शिकार हो जाते हैं ! ऐसे में बच्चे अपनी काल्पनिक दुनिया बना लेते हैं जिसमें उन्हें अपने भीतर कमियाँ ही कमियाँ दिखाई देने लगती है ! फिर वे अपने को दुनिया की नजरों से दूर छुपाने की कोशिश में लग जाते हैं ! उनके मन :चिन्तन पर हीन भावना प्रचुर मात्रा में भर जाती है ! ऐसे में इन बच्चों को एकाकीपन अधिक लुभाता है ! जो बच्चे हीन भावना से ग्रसित होते हैं उनमें आत्मविश्वास की भारी कमी दिखती है ! उनकी प्रत्येक क्षेत्र की प्रगति में रूकावट आने लगती है ! साथ में उनका यह समझने लगना की वे जीवन में कभी सफल नहीं हो पाएंगे ,उनके व्यक्तित्व में घातक प्रहार करता है !
बच्चों को सिखाएं कि वे अपने भीतर सकरात्मक विचारों का संचार करें ! अच्छी किताबें जिसमें महान संतों की वाणी हो ,उन्हें पढने से उनके भीतर आत्मबल का संचार होगा जिससे उन्हें अपनी अपनी समस्यायों से दृढ़ता से जूझना आ जायेगा ! बच्चों से कहें कि वे अपने आस पास ध्यान से देखें कि हर व्यक्ति के अंदर कुछ न कुछ कमी दिखने लगेगी ! इस सृष्टी की सम्पूर्णता केवल ईश्वर के पास है बाकि सभी किसी न किसी क्षेत्र में दूसरे से अधिक सक्षम होते हैं ! उन्हें उनके गुण पहचानना सिखाएं ताकि वे उसी दिशा में अपनी योगिता अनुसार अपने भीतर की उर्जा का संचार कर सकें ! इससे उनके भीतर पनप रहे नकारात्मक चिन्तन से वे भी बचे रहेंगे साथ ही उनके परिवेश पर भी बुरा असर नहीं पड़ेगा ! बच्चे यह सीख लें की नकारात्मक चिंतन से पूरे समाज को हानि होती है ! कभी वे स्वय को दुसरे से कम न समझे ! यदि एक बच्चा कक्षा में पढाई में अव्वल है तो दूसरा बच्चा खेल में तो तीसरा कला में तो चौथा तकनीकी क्षेत्र में ! हर बच्चे की बोद्धिक क्षमता भी भिन्न होती है ! अभिभावक व् शिक्षक बच्चों को गुमराह होने से बचा सकते हैं ! आज के दौर में शिक्षा प्रणाली भी इसी वजह से लचीली कर दी गयी है ! बच्चों के गुणों का आकलन मात्र पढाई से ही नहीं अपितु उनके सर्वागीण विकास से किया जाना चाहिए !हर बच्चा के भीतर किसी न किसी क्षेत्र की प्रतिभा छुपी होती है ! बच्चों को स्वय का आकलन करना सिखाएं कि उन्हें किन कारणों से हीन भावना आती है ! कक्षा में अनुतीर्ण होना / शिक्षकों द्वारा फटकार या प्रताड़ना / अभिभावकों द्वारा किये जाने वाली तुलनात्मक आलोचना / परिवार में आपके दातित्व / खुद की कमी / लापरवाही इत्यादि अन्य कारण उन्हें स्वयम मनन करना होगा !
अभिभावक भी ध्यान दें कि बच्चों का मन उस कोमल मिट्टी की भांति है जिसे आप यानि कुम्हार अपने इच्छा अनुरूप ढालता है ! आप अपने बच्चे के गुण दोष परखिये ,फिर उसी अनुसार उसे दिशा दें ! मारना / डांटना / आलोचना करने से आप बच्चे के विकास में स्वयम बाधा डालते हैं ! यदि आप उनका आत्मबल बढाने में अक्षम हैं तो कम से कम उन्हें गहन अन्धकार की ओर न धकेलें ! अपने बच्चे की रूचि पहचानिए और उसे उस में व्यस्त होने दीजिये ! आप स्वयं देखेंगे की समय के साथ उसका आत्मविश्वास भी बढेगा और वह बाकि क्षेत्रों में स्वत : रूचि लेने लगेगा ! कभी बच्चों को डरायें धमकाएं नहीं क्यूंकि अक्सर इसके दुष्परिणाम भी आपको ही झेलने पड़ेंगे ! आत्मविश्वास की कमी से बच्चे कई बार गलत निर्णय ले बैठते हैं जिसकी वजह से बाद में आप जीवन भर पछतायेंगे ! बच्चों के बीच संवाद बनाये रखें यह सुझाव विशेषकर उन अभिभावकों के लिए महत्वपूर्ण है जो अपने कार्य में व्यस्त रहते हैं ! उन्हें प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए प्रेरित करें किन्तु उन्हें अपनी कठपुतली न बनाएं ! बच्चों को प्रतिस्पर्धा के अनुकूल बनाएं पर उस पर इसका बोझ न डालें ! जब जब बच्चा कोई प्रशंसनीय कार्य करे तो उसकी तारीफ करें इससे उसमें आत्मविश्वास बढ़ेगा ! बच्चो के सामने आप अपना आदर्श स्थापित करें ताकि वह अपनी दिक्कते स्वय आपके सामने रखना सीख लें ! कभी भी भूल से नकरात्मक शब्दों का इस्तेमाल न करें ! अच्छे कुशल माली के समान – उन्हें स्वस्थ पोषण दें। माली पौधे को खाद पानी देता है। खर पतवार को पास उगने नहीं देता। धूप, अतिवृष्टि, अनावृष्टि से बचाता है। यदि डालियां इधर-उधर बढ़ रही हैं तो सुंदर रूप देने के लिए काट छांट भी करता है।अभिभावक भी बच्चों को स्वस्थ साहित्य पढ़ने को दें, बुराई से बचाएं, गंदे व्यवहार की निंदा करते हुए उन्हें उनसे दूर रखें और सबसे अहम बच्चों का मनोविज्ञान समझें और अपना भी।
शिक्षकगण की भूमिका भी सकरात्मक होनी चाहिए ! शिक्षक केवल किसी विद्यार्थी को अपने अद्यापन क्षेत्र में सम्पूर्ण बनाने की चेष्ठा नहीं करता अपितु उनके व्यक्तित्व के विकास में उनकी नैतिक भागीदारी होती है ! उन्हें उनकी योग्यता फ्च्न्ने में मदद करें ! नन्हे बीजो को सुंदर फलदार वृक्ष में बदलना जो मानवतावाद से भरपूर हो ,इसकी जिम्मेदार भी शिक्षक ही होते हैं ! सब बच्चों को समान दृष्टि से देखें, निश्छल व्यवहार करें व समय का पालन करें – तो यह गुण बच्चों में स्वत: आ जाएंगे। वे भी समय पर अपना कार्य पूर्ण कर के दिखाएंगे व सबके साथ मित्रवत व्यवहार करेंगे।उनके अभिभावकों के सामने उनकी निंदा न करके उनकी उन अच्छाईयों को पहले सामने लायें जो उनके विकास में आधारशिला का कार्य करता है ! उसके पश्चात यदि उनकी कमजोरियां सामने लायी जाएँगी तो वे स्वयं अपने को सुधरने का प्रयत्न करेंगे ! उनकी हर विषय में रूचि जागृत करने हेतु उन्हें प्रयोगिक कार्यशाला द्वारा अध्यन कराएं ! इससे वह मात्र किताबी ज्ञान न लेकर वास्तविक जगत का सामना करने लायक हो पायेगा ! नैतिक शिक्षा की कक्षा में आत्मविश्वास बढाने वाली कहानियों द्वारा मार्गदर्शन करें ! समाज कल्याण की दिशा में प्रेरित करने वाले अभियान से बच्चों को जोड़े , उन्हें मात्र किताबी आदर्श न सिखाकर वास्तविक जगत के प्रतिस्ठित लोगो से मिलवाएं जिससे उनमें भी आत्मबल का संचार हो और वे भी जीवन में कुछ सीखने व् बनने के लिए लालायित रहे ! परीक्षा के दिनों में उनके आत्मबल को डिगने न दें ! लगातार बच्चे के अभिभावक के सम्पर्क में रहे ! मनोचिकित्सक डा. क्षितिज विमल जी का सुझाव है कि अध्यापक इस बात का जरूर ध्यान दें कि जो वे बच्चों को पढ़ा रहे हैं, उसके प्रति बच्चे संतुष्ट दिखे। क्योंकि अगर बच्चे संतुष्ट नहीं होंगे तो मानसिक तनाव बढ़ने के आसार होते हैं। अभिभावक भी इस बात पर ध्यान दें कि बच्चों पर ज्यादा प्रेशर न डालें और गलती से भी उनमें हीन भावना पैदा न होने पाए।
अंत में हम सबकी नैतिक जिम्मेदारी है की हम अपनी वाटिका के सुगन्धित पुष्प की सुगंधी को चहु दिशा में फ़ैलाने हेतु उनकी शक्ति बने ! बच्चों को प्रतिभावान बनाएं ! मैरी क्यूरी के अनुसार ,"हम में से जीवन किसी के लिए भी सरल नहीं है. लेकिन इससे क्या? हम में अडिगता होनी चाहिए तथा इससे भी अधिक अपने में विश्वास होना चाहिए. हमें यह विश्वास होना चाहिए कि हम सभी में कुछ न कुछ विशेषता है तथा इसे अवश्य ही प्राप्त किया जाना चाहिए"
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