शिक्षा और संस्कार
सुंदर संस्कारवान समाज का निर्माण बच्चों में पड़ने वाली दृढ नीव पर आधारित होती है ! यदि नीव कमजोर होगी तो देश की नाव भी डगमगाती रहेगी ! इस दिशा में प्रत्येक व्यस्क को कार्यरत रहना होगा !
बच्चे का जीवन सफेद कागज जैसा होता है. उस पर व्यक्ति जैसे चाहे, वैसे चित्र उकेर सकता है. बच्चे को जिस दिशा में मोड़ना हो सरलता से मोड़ा जा सकता है. एक दृष्टि से यह मन्तव्य सही हो सकता है पर यह सर्वांगीण दृष्टिकोण नहीं है. क्योंकि हर बच्चा अपने साथ आनुवंशिकता लेकर आता है, गुणसूत्र (क्रोमोसोम) और संस्कारसूत्र (जीन्स) लेकर आता है. सामाजिक वातावरण भी उसके व्यक्तित्व पर प्रभाव डालता है. इसका अर्थ यह हुआ कि संस्कार-निर्माण के बीज हर बच्चा अपने साथ लाता है. सामाजिक या पारिवारिक वातावरण में उसे ऐसे निमित्त मिलते हैं, जिनके आधार पर उसके संस्कार विकसित होते हैं.
शिक्षा का अंतिम लक्ष्य सुंदर चरित्र है। मनुष्य के व्यक्तित्व के सभी पहलुओं का पूर्ण और संतुलित विकास करता है। इसके अंतर्गत बच्चों का भावनात्मक और आध्यात्मिक विकास ही होता है।उच्च स्तरीय शिक्षा द्वारा बच्चों में पाँचों मानवीय मूल्यों सत्य, प्रेम, धर्म, अहिंसा और शांति का विकास होता है।आज की शिक्षा मनुष्य को विद्वान एवं कुशल डॉक्टर, इंजीनियर या अफसर तो बना देती है परंतु वह अच्छा चरित्रवान इंसान बने यह उसमें होने वाले संस्कारों पर निर्भर करता है।एक पक्षी को ऊँची उड़ान भरने के लिए दो सशक्त पंखों की आवश्यकता होती है उसी प्रकार मनुष्य को भी जीवन के उच्च लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दोनों प्रकार की शिक्षा की आवश्यकता होती है। सांसारिक शिक्षा उसे जीविका देती है और आध्यात्मिक शिक्षा उसके जीवन को मूल्यवान बनाती है।
शिक्षा और संस्कार एक दूसरे से जुड़े हैं ! शिक्षा और संस्कार से ही देश का निर्माण हो सकता है। जब व्यक्ति में शिक्षा का विकास होगा, तब वह विकास की ओर आगे बढ़कर समाज के लिए कार्य करेगा।समाज के बदलाव के लिए व्यक्ति में अच्छे गुणों की आवश्यकता होती है और इसकी नीव बाल्यकाल में ही रख दी जानी चाहिए ! बच्चों को तीन गुणों से प्रखर बनाएं जिससे वह समाज के प्रति अपनी शक्ति व् अपना कर्म भी सकरात्मक रखेगे ! ये गुण हैं , ज्ञान ,कर्म व् श्रधा ,जब यह तीनों गुण व्यक्ति में होंगे, तो वह समाजसेवा में आगे बढ़ेगा। आज जो रास्ट्र व्यापी अनैतिक्वाद प्रदूषण हमारे समाज को दूषित कर रहा है उसका मूलभूत कारण बच्चों में संस्कारों का आभाव और इसका दोष वयस्कों पर आता है जो स्वयं भी अपने भारतीय अमूल्य संस्कारों के प्रति उदासीन होते जा रहे हैं ! बाहय सभ्यता का आँख मूँद कर अनुसरण करना ही हमे पतन की ओर ले जा रहा है !
हम सभी को याद रखना होगा कि शब्दों का और भावों का निरिक्षण करते हुए दूसरों के मान सम्मान को प्रमुखता देना ही संस्कारवान होने के लक्षण होते है , जो हमे बच्चों को घर ,स्कूल और सामाजिक परवेश में सिखाते रहना होगा !रास्ट्र निर्माण की दिशा में बच्चों की अपेक्षा वयस्कों की नैतिक जिम्मेदारी अधिक है वे अपनी भूमिका को पूरी निष्ठा से निबाहें और सुंदर परिवेश का निर्माण में सहभागी बने ! आयें बच्चों को गुरुकुल पद्धति में सिखाये जाने वाली परम्पराओ से अवगत कराएं और उन्हें गुणवान ,ज्ञानवान और आदर्श नागरिक बनाने में अपने दायत्व को भरपूर निबाहे !
सुंदर संस्कारवान समाज का निर्माण बच्चों में पड़ने वाली दृढ नीव पर आधारित होती है ! यदि नीव कमजोर होगी तो देश की नाव भी डगमगाती रहेगी ! इस दिशा में प्रत्येक व्यस्क को कार्यरत रहना होगा !
बच्चे का जीवन सफेद कागज जैसा होता है. उस पर व्यक्ति जैसे चाहे, वैसे चित्र उकेर सकता है. बच्चे को जिस दिशा में मोड़ना हो सरलता से मोड़ा जा सकता है. एक दृष्टि से यह मन्तव्य सही हो सकता है पर यह सर्वांगीण दृष्टिकोण नहीं है. क्योंकि हर बच्चा अपने साथ आनुवंशिकता लेकर आता है, गुणसूत्र (क्रोमोसोम) और संस्कारसूत्र (जीन्स) लेकर आता है. सामाजिक वातावरण भी उसके व्यक्तित्व पर प्रभाव डालता है. इसका अर्थ यह हुआ कि संस्कार-निर्माण के बीज हर बच्चा अपने साथ लाता है. सामाजिक या पारिवारिक वातावरण में उसे ऐसे निमित्त मिलते हैं, जिनके आधार पर उसके संस्कार विकसित होते हैं.
शिक्षा का अंतिम लक्ष्य सुंदर चरित्र है। मनुष्य के व्यक्तित्व के सभी पहलुओं का पूर्ण और संतुलित विकास करता है। इसके अंतर्गत बच्चों का भावनात्मक और आध्यात्मिक विकास ही होता है।उच्च स्तरीय शिक्षा द्वारा बच्चों में पाँचों मानवीय मूल्यों सत्य, प्रेम, धर्म, अहिंसा और शांति का विकास होता है।आज की शिक्षा मनुष्य को विद्वान एवं कुशल डॉक्टर, इंजीनियर या अफसर तो बना देती है परंतु वह अच्छा चरित्रवान इंसान बने यह उसमें होने वाले संस्कारों पर निर्भर करता है।एक पक्षी को ऊँची उड़ान भरने के लिए दो सशक्त पंखों की आवश्यकता होती है उसी प्रकार मनुष्य को भी जीवन के उच्च लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दोनों प्रकार की शिक्षा की आवश्यकता होती है। सांसारिक शिक्षा उसे जीविका देती है और आध्यात्मिक शिक्षा उसके जीवन को मूल्यवान बनाती है।
शिक्षा और संस्कार एक दूसरे से जुड़े हैं ! शिक्षा और संस्कार से ही देश का निर्माण हो सकता है। जब व्यक्ति में शिक्षा का विकास होगा, तब वह विकास की ओर आगे बढ़कर समाज के लिए कार्य करेगा।समाज के बदलाव के लिए व्यक्ति में अच्छे गुणों की आवश्यकता होती है और इसकी नीव बाल्यकाल में ही रख दी जानी चाहिए ! बच्चों को तीन गुणों से प्रखर बनाएं जिससे वह समाज के प्रति अपनी शक्ति व् अपना कर्म भी सकरात्मक रखेगे ! ये गुण हैं , ज्ञान ,कर्म व् श्रधा ,जब यह तीनों गुण व्यक्ति में होंगे, तो वह समाजसेवा में आगे बढ़ेगा। आज जो रास्ट्र व्यापी अनैतिक्वाद प्रदूषण हमारे समाज को दूषित कर रहा है उसका मूलभूत कारण बच्चों में संस्कारों का आभाव और इसका दोष वयस्कों पर आता है जो स्वयं भी अपने भारतीय अमूल्य संस्कारों के प्रति उदासीन होते जा रहे हैं ! बाहय सभ्यता का आँख मूँद कर अनुसरण करना ही हमे पतन की ओर ले जा रहा है !
हम सभी को याद रखना होगा कि शब्दों का और भावों का निरिक्षण करते हुए दूसरों के मान सम्मान को प्रमुखता देना ही संस्कारवान होने के लक्षण होते है , जो हमे बच्चों को घर ,स्कूल और सामाजिक परवेश में सिखाते रहना होगा !रास्ट्र निर्माण की दिशा में बच्चों की अपेक्षा वयस्कों की नैतिक जिम्मेदारी अधिक है वे अपनी भूमिका को पूरी निष्ठा से निबाहें और सुंदर परिवेश का निर्माण में सहभागी बने ! आयें बच्चों को गुरुकुल पद्धति में सिखाये जाने वाली परम्पराओ से अवगत कराएं और उन्हें गुणवान ,ज्ञानवान और आदर्श नागरिक बनाने में अपने दायत्व को भरपूर निबाहे !
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