बुधवार, 4 सितंबर 2013

शिक्षक दिवस 
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शिक्षक दिवस एक ऐसा दिन है जब हम उन गुरुओं का धन्यवाद करें जो हमें शिक्षा प्रदान कर हमारे जीवन में उजाला भर हमें जीवन जीने के सही तरीके से अवगत कराते हैं। शिक्षक दिवस गुरु की महत्ता बताने वाला प्रमुख दिवस है । भारत में 'शिक्षक दिवस' प्रत्येक वर्ष 5 सितम्बर को मनाया जाता है। शिक्षक का समाज में आदरणीय व सम्माननीय स्थान होता है। भारत के द्वितीय राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिवस और उनकी स्मृति के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला 'शिक्षक दिवस' एक पर्व की तरह है, जो शिक्षक समुदाय के मान-सम्मान को बढ़ाता है। किसी भी राष्ट्र के विकास में शैक्षिक विकास की भूमिका अहम है। शिक्षक दिवस शिक्षकों को अपने जीवन में उच्च जीवन मूल्यों को स्थापित कर आदर्श शिक्षक बनने की प्रेरणा देता है।
समाज को संस्कारवान बनाए रखने का महत्वपूर्ण कार्य शिक्षक करते हैं ! शिक्षक बच्चों का जीवन तराशकर उसे समाज के लिए सक्षम् बनाने वाला जौहरी  होता है ! वास्तव में गुरु की महिमा अपरंपार है ! वह तो देवतुल्य या उससे भी बढ़कर है !
गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागू पाय
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।
कबीरदास द्वारा लिखी गई उक्त पंक्तियाँ जीवन में गुरु के महत्त्व को वर्णित करने के लिए काफी हैं। भारत में प्राचीन समय से ही गुरु व शिक्षक परंपरा चली आ रही है। गुरुओं की महिमा का वृत्तांत ग्रंथों में भी मिलता है। एकलव्य और द्रोणाचार्य जैसे गुरु-शिष्य के कई उदाहरण हमारे सामने है। विद्यार्थी जीवन में ही नहीं बल्कि जीवन के हर पथ पर हमें कोई न कोई ऐसा व्यक्ति मिलता ही है जो हमारे जीवन में एक सकारात्मक परिवर्तन लाता है। शिक्षक उस माली के समान है, जो एक बगीचे को भिन्न-भिन्न रूप-रंग के फूलों से सजाता है। जो छात्रों को कांटों पर भी मुस्कुराकर चलने को प्रोत्साहित करता है। उन्हें जीने की वजह समझाता है। शिक्षक के लिए सभी छात्र समान होते हैं और वह सभी का कल्याण चाहता है। शिक्षक ही वह धुरी होता है, जो विद्यार्थी को सही-गलत व अच्छे-बुरे की पहचान करवाते हुए बच्चों की अंतर्निहित शक्तियों को विकसित करने की पृष्ठभूमि तैयार करता है। वह प्रेरणा की फुहारों से बालक रूपी मन को सींचकर उनकी नींव को मजबूत करता है तथा उसके सर्वांगीण विकास के लिए उनका मार्ग प्रशस्त करता है। किताबी ज्ञान के साथ नैतिक मूल्यों व संस्कार रूपी शिक्षा के माध्यम से एक गुरु ही शिष्य में अच्छे चरित्र का निर्माण करता है। एक ऐसी परंपरा हमारी संस्कृति में थी, इसलिए कहा गया है कि-
"गुरु ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात परब्रह्म तस्मैः श्री गुरुवेः नमः।"
विवेकानंद एक ऐसे शिष्य थे जिन्होने अपने गुरु से जीवन जीने का सही तरीका सीखा। उन्होने अपने गुरु के दिखाए पथ पर चलते हुए न जाने कितने लोगों के जीवन में प्रेम, नि:स्वार्थ सेवा और सत्यता का दीपक प्रज्वलित किया। गुरु का स्थान तो माता-पिता से भी ऊँचा होता है, क्योंकि माता-पिता जीवन देते हैं और गुरु उस जीवन का सही अर्थ समझाकर, सत्य का मार्ग दिखाते हैं।अगर वही गुरु, शिष्यों के जीवन में अंधकार का कारण बन जाएँ तो कैसे कोई शिष्य एकलव्य और विवेकानंद बन पाएँगे। आधुनिक युग में शिक्षक की भूमिका बहुत बढ़ गयी है ! एक बच्चे के सर्वांगीण विकास में शिक्षक अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है जिसमें वह उसका शैक्षणिक, मानसिक, भावनात्मक, सामाजिक व साँस्कृतिक विकास भी करता है  ल  राष्ट्र निर्माण में छात्रों की भूमिका, शिक्षक द्वारा दिये गए मार्गदर्शन पर निर्भर करती है जिसमें शिक्षक अमृत के समान होते हैं। उन्होंने कहा कि छात्र-शिक्षक एक सिक्के के दो पहलू हैं, जिसके बिना मजबूत समाज और राष्ट्र की कल्पना नहीं की जा सकती है।
आधुनिक युग में शैक्षिक विकास के साथ साथ भोतिकवाद की दौड़ भी तेज हुयी है ! प्रत्येक व्यक्ति अधिक से अधिक सुख सुविधाएँ जुटा लेने को प्रयासरत है जिसने गला काट प्रतिद्वंद्विता को जन्म दिया है! झूंठ ,मक्कारी धोखेबाजी ,चापलूसी ,हिंसा जैसे अवगुणों को अपनाना उसकी मजबूरी बन गयी है अर्थात नैतिकता का अस्तित्व समाप्त प्रायः होता जा रहा है !यह तो कटु सत्य है कि बिना, नैतिक उत्थान के सिद्धांतों , की रक्षा किये मानव विकास संभव नहीं है !  ऐसे वातावरण में भी  हमें आदर्शों को भूलना नहीं  चाहिए या अपने बच्चों को आदर्शों पर अडिग रहने के लिए उन्हे प्रेरित करते रहना चाहिए !आज के आधुनिक युग में जब शिक्षण मात्र एक व्यवसाय बन कर रह गया है ! ऐसे में समय के साथ छात्रों और शिक्षकों के आपसी संबंध भी बदले हैं ! आज शिक्षा में शिक्षक की भूमिका को अस्वीकार कर इ-लर्निंग जैसी बात हो रही है और आधुनिक ज्ञान विज्ञान के अविष्कारो ने इसे  कुछ हद तक संभव भी बनाया है लेकिन आमने सामने के शिक्षण में जो आपसी  विचारों का आदान- प्रदान है वह दूर शिक्षा में संभव नहीं हो पाता ! उसमें विचारों का एक तरफा बहाव है जो छात्रों का सम्पूर्ण विकास नहीं कर पाता ! लेकिन साथ ही हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि आमने सामने कि शिक्षा का माहौल भी कटु हो गया है !  शिक्षक दिवस का भी बाजारीकरण हो गया है ! महंगे गिफ्ट, झूठी बड़ाई अपनी प्रशंसा इसी की भूख है ! साथ ही छात्रों का भी शिक्षकों के प्रति विश्वास घटा है और व्यवहार बदला है यानि छात्र और शिक्षक दोनों ही एक दूसरे को संदेह की दृष्टी से देखने लगे हैं ! इसके पीछे दोनों के व्यवहार में आये परिवर्तन ही दोषी हैं  जिससे छात्रों और शिक्षकों के बीच मतभेद बढता जा रहा है ! अब उनमें पहले सा आत्मीय स्नेह नहीं रह गया है ! एक तरफ छात्र शिक्षकों के पीठ पीछे उनका मजाक उड़ाने से नहीं चूकते  ! शिक्षक भी कुछ हद तक  फ़िल्मी शिक्षको की तरह विदूषक मात्र रह गए हैं जो कक्षा में घुसते ही सो जाते हैं या अन्य किसी हास्यास्पद स्तिथियों के जनक बन जाते हैं,  साथ ही वे  भी अब मात्र पाठ्यक्रम भर से नाता रखने लगे हैं !  दबाव और भय के माहौल में शिक्षक भी ‘जैसा चाल रहा है चलने दो’ की नीति अपना कर अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़ रहे  हैं. और इन सबका परिणाम है संस्कारहीन बच्चे और बढ़ते अपराध ! आज जब इलेक्ट्रोनिक मीडिया, समाचार पत्रों में कहीं शिक्षकों के नैतिक पतन की, व्यभिचार की,  तो कहीं छात्रों द्वारा शिक्षकों की हत्या तक की ख़बरें देखने और पढ़ने को  मिल रही है तो स्थिति और वीभत्स हो गई है , शिष्यों द्वारा गलत आचरण और शिक्षकों की उदासीनता समाज के लिए चुनौती बनता  जा रहा है ! आजकल बच्चों में आ रहे मूल्यों में गिरावट के कारण शिक्षकों की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण हो गयी है। अब समय आ गया है कि प्रत्येक शिक्षक इस बात को प्रभावशाली ढंग से सामने लाये कि मूल्य शिक्षा बच्चों के  भविष्य के लिए अनिवार्य है ।
ये विश्वास से मानना होगा कि गुरु का इस आधुनिक युग में भी महत्ता में जरा भी कमी नहीं आई है ! गुरु का अनादर करने वाले शिष्य जीवन में कभी सफल नहीं हो पाते हैं ! इसीलिए जीवन में सफलता और सम्मान पाने के लिए सभी को गुरुओं का आशीर्वाद लेते रहना चाहिए ! गुरु का महत्व आज भी  अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को प्रेरणा स्त्रोत को  कहा जाता है ! गुरु के बिना ज्ञान संभव नहीं है। गुरु-शिष्य परंपरा भारत की संस्कृति का एक अहम और पवित्र हिस्सा है और सदैव रहेगा ! समाज के शिल्पकार कहे जाने वाले शिक्षकों का महत्व यहीं समाप्त नहीं होता क्योंकि वह ना सिर्फ आपको सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं बल्कि आपके सफल जीवन की नींव भी उन्हीं के हाथों द्वारा रखी जाती है। आए सभी मिलकर एक स्वस्थ स्माज के निर्माण हेतू संकल्पबद्ध होकर उज्ज्वल भारत का निर्माण करें और यह तभी संभव होगा जब गुरु शिष्य परंपरा का सभी मिलकर पालन करें !
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सभी आदरणीय सदस्य , शिक्षकगण  व सुधी पाठक जन को शिक्षक दिवस कि मंगलकामनाए ! 

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