मन पंछी ही तो है इसका न कोई ठौर न ठिकाना | आस पास होती सामायिक घटनाओं पर अपनी भावनात्मक उड़ान कब भरने लगे और नन्ही के मन का दर्पण बन जाये स्वयं नन्ही भी नहीं जानती सब माँ शारदे का आशीर्वाद |
रविवार, 27 अप्रैल 2014
-बुत
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सारा परिवार आज बहुत खुश था ! शहर के मशहूर मॉल " फ्रेंडशिप " में विनोद ने अपने बेटे माणिक के जन्मदिन की पार्टी रखी थी ! सभी मिलकर नाच गा रहे थे किन्तु माणिक की छोटी बहिन मृदुला का ध्यान कहीं और था ! सबकी नज़रे बचाकर वह मॉल की खिड़की से पार्क में स्थापित एक झुकी बुत को लगातार देखने लगी उसे उस बुत में अपनी दादी नज़र आने लगी और वह रो पड़ी ! माँ पापा बहुत बुरे हैं ! उन्होंने मेरी बूढी दादी जिसकी कमर ऐसे ही झुकी रहती है उन्हें गाँव में अकेले छोड़ कर यहाँ आ गए है ! दादी भी तो अकेली होगी और उन्हें कितना बुरा लगता होगा ! कुछ सोचकर मृदुला ने दो गुब्बारे ,थोड़ा केक और थोड़े पैसे जो उसे अभी एक अंकल ने दिए थे उन्हें लेकर वह चुपचाप मॉल के पार्क में आ गई जहाँ पार्टी में आए बच्चे झूला झूल रहे थे ! मृदुला उस सफ़ेद मूर्ति के पास गई और बोली - " दादी आप सारा दिन ऐसे क्यों खड़ी रहती हो ,थक जाओगी , आज भैया का बर्थडे है देखो मैं तुम्हारे लिए केक और पैसे लाई हूँ और ये हैं गुब्बारे इनसे खेला करो देखो इसमें मैं और माणिक भैया दिख रहे है न , तो अब आप अकेली नहीं ! " बोलते बोलते मृदुला रो पड़ी ! अरे यह क्या ? मूर्ति हिली और उसने न केवल गुब्बारे लिए बल्कि मृदुला को गले लगा लिया , और बोली- "बिटिया मैं दुनिया में अकेली कहाँ ,आप जैसे बच्चे रोज मुझसे मिलते हैं और खेलते हैं ! मैं इस मॉल के मालिक की माँ हूँ और मेरे कोई बच्चे खो न जाएं या कोई उन्हें बहला फुसला कर ले न जाए इसकी निगरानी करती हूँ बदले में मुझे मिलता है तुम सबका ढेर सारा प्यार , तो हूँ न आपकी भी दादी ,अब हंसो और याद रखो बिटिया कभी अकेले मत घूमा करो , अब जाओ और भैया के साथ पार्टी में रहो !" __________________सुनीता शर्मा
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