रविवार, 12 मई 2013

मातृ दिवस


माँ अपने आप में सम्पूर्णता लिए हुए एक ऐसा शब्द जिसका वर्णन करना भी एक परम सौभाग्य का विषय है ! विश्व में अधिकतर देश इस दिन को धूमधाम से मनाते हैं किन्तु हमे माँ को सम्मानित करने के लिए किसी विशेष दिवस की आवश्यकता नहीं है ! भारत में प्रत्येक दिन हर घर में माँ की वंदना करने की परम्परा रही है ! आज पाश्चात्य के प्रभाव से हमारी संस्कृति ने इस लोक आडम्बर को अपना लिया है ! 
माँ के बारे में अपने अंतर्मन से पूछें कौन है और क्या है , तो उत्तर आएगा माँ हमारे जीवन की वह अमृतधारा है जो दिव्य है ,अतुलनीय ,अकथनीय है ! जन्म से मृत्यु तक हमारे सुख दुःख की सच्ची संगिनी होती है माँ ! हर व्यक्ति के जीवन में माँ का स्थान उसके नजरिए पर निर्भर करता है ! हमारे जीवन का प्रतीक माँ गर्भ से लेकर हमारे सम्पूर्ण जीवन संचालिका होती है ! माँ की ममता वह सागर जिसकी थाह न कोई ले सका है, न ही कभी ले सकेगा ! माँ ,जीवांश से जीवन देने और जीवन देने से लेकर विभिन्न आयामों की कुशल संचालिका होती है ! माँ की ममता अतुलनीय ,अकथनीय होती है ,वह बच्चों का जीवन संबल होती है ! हर घर आँगन की अनुराग होती है माँ ! वह जीवन के हर कष्ठ झेलकर भी अपने बच्चों की ख़ुशी ढूंढ लेती है ! हम स्वय जिसका अंश हैं उसका ऋण तो चुकाना कल्पना से परे है ! ईश्वर हर स्थान पर नहीं पहुँच सकता इसलिए उसने अपने कार्य माँ को सौप दिया !प्रख्यात कवि आलोक श्रीवास्तव जी ने माँ को कुछ यूँ परिभाषित किया है जो अदभुत है _
घर में झीने रिश्ते मैंने
लाखों बार उधड़ते देखे
चुपके चुपके कर देती थी
जाने कब तुरपाई अम्मा !
माँ की समवेदनाएं अतुलनीय होती है जिसमें उसका ध्यान योग अर्थात टेलीपथी सबसे प्रबल होती है ! मानव हो या पशु पक्षी योनि माँ की तपस्या का कोई मोल नहीं है ! माँ को अपने बच्चे के प्रति समवेदनाएं चौबीस घंटे स्पन्दित होती रहती हैं जैसे इंसान तो इंसान गाय भी मीलों दूर जंगल में भी अपना ध्यान अपने बछड़े पर लगाये रहती है ,घर पर उसके रभाने पर वह भी उससे अपनी आवाज मिलाकर घर लौट आती है ! असल में माँ की ममता को तीन भागो में विभाजित किया जा सकता है - मुर्गी छाप , कछुआ चाप और कुञ्ज छाप ! मुर्गी अपने अन्डो को अपने स्पर्श से जगत में लाती है , कछुआ अपनी निगाहों से अपने अण्डों को सेककर इस दुनिया में लाती है तो इन सब में सर्वोतम तपस्या कुञ्ज पक्षी का होता है जो अपने ध्यान योग से अपने बच्चो को जगत में लाती है जबकि वह स्वय अपने अंडो से कोसो दूर रहती है ! माँ के इस ध्यान में अतुलनीय शक्ति है कि उसके बच्चे संसार के किसी भी कोने में हो उसके तन मन से बस अपने बच्चों की मंगल कामना में समर्पित रहता है !अपने बच्चों के मन के हर जज्बात को सम्भाल लेने में माँ की भूमिका सर्वोपरी है !
प्रसिद्ध माताओं में अग्रणीय जीजाबाई शौर्यता का प्रतीक , अहिल्याबाई होलकर न्याय का प्रतीक और पन्ना धाई अपने राज्य सेवा धर्म में त्यागी सेविका के रूप में इतिहास में सदा याद रखी जाती है ! हमारी संस्कृति में वसुंधरा को माता कहा गया है ! हम भारतवासी अपनी जन्मभूमि को माँ मानते है जो पूरी दुनिया में एक मिशाल है ! हम सभी बड़े गर्व से स्वय को माँ भारती की सन्तान मानते है !
आज आधुनिक समाज में माँ का सम्मान कदाचित घट रहा है ! व्यक्ति के जीवन मूल्यों में विकृति दिखने लगी है ! जिस माँ की चरण वन्दना से दिन प्रारम्भ होता था आज उसका तकरीबन हर घर में तिरस्कार हो रहा है ! जिस माँ ने उसकी पैदाइश से लेकर उसके हर आह में साथ दिया आज बच्चे अपने दायित्व से मुह मोड़कर अपनी ही माँ को दो वक़्त की रोटी , प्यार के दो बोल और थोडा सा आसरा देने से कतराने लगे है ! जिस माँ ने अपने जीवन की अनगिनत रातें हमे सुख देने में काट दी थी आज उसी के बीमार होने पर हम उसके लिए एक रात जगना तो दूर ,उसके सिराहने के पास बैठने तक का समय नहीं निकाल पाते ! जिस माँ के ऋण से मुक्त होना असम्भव माना जाता था आज इसी तथाकथित समाज में उसे तिरस्कार ,वृद्धा आश्रम का रास्ता व् मानसिक आघात मिल रहा है ! व्यक्ति के जीवन की आधार माँ का बुढापा बच्चों को बोझ क्यूँ लगता है ,जब वह शैशवकाल में हमारा साथ देती है तो हम अपने कर्तव्यों से क्यूँकर मुह मोड़ना चाहते है !बच्चे तो स्वार्थान्ध होकर उसे अपने प्रत्येक कार्य की उपलब्धी का साधन मात्र मानते हैं ! परिवार की सम्बल माँ सदैव कुपोषण का शिकार होती रही है ,अल्पायु में उसे भाँती भाँती की बीमारियाँ घेर लेती हैं किन्तु तब भी उसके चेहरे पर कोई शिकन नहीं आता !
ऐसा नहीं है कि माँ का नकरात्मक पहलू न दिखता हो ! आधुनिकता की मार माँ की भूमिका में नारी में दिखने लगा है ! आज नारी कुछ आवश्यकताओ की पूर्ती या फिर अपने महत्वकांक्षाओ की पूर्ती हेतू माँ की भूमिका से मुह मोड़ने लगी हैं ! बच्चों का लालन पालन क्रेच ,आंगनबाड़ी के हवाले कर अपने कर्तव्यों की इति समझ रही है ! जो समय बच्चा अपनी माँ के आँचल में गुजारता है वह समय तो आधुनिक माएँ आफिस या क्लबों को दे रही हैं जिसका नतीजा बच्चों में संस्कारहीनता स्पष्ठ दिखने लगी है ! आज जो समाज का नैतिक पतन हो रहा है उसमें कहीं न कहीं माँ की भूमिका से नारी का मुह मोड़ना दृष्टीगोचर हो रहा है ! अपने स्वार्थ और नाम ख्याति की पूर्ती की इच्छा में वह अपने बच्चो को जीविका का साधन बनाते हुए उन्हें वक्त से पहले परिपक्व बनाने वाले क्षेत्रों की ओर प्रेरित कर रही है ! माँ ही ममतान्ध में अपने ही घर परिवेश में भेदभाव के बीज बोती है ! बेटियों को बेटों के सामने कम आंकना ,आज गम्भीर विकृतियों को जन्म दे रही है ! आज के वर्तमान परिवेश में माँ का दायित्व निबाहती नारी को रुढ़िवादी परम्पराओं को तोड़कर समयनुसार स्वय को बदलना होगा ! समभाव से बच्चों का लालन पालन ,संस्कारों से परिपूर्ण एक स्वस्थ समाज की ओर अग्रणीय भूमिका निबाहनी होगी ! माँ आखिर माँ ही होती है ,वह कभी कुमाता नहीं हो सकती , बेटी हो या बेटा सब को दे समान दुलार ! बेटी बहू में उपजी वर्षों की खायी को पाटने का अधिकार है नारी अधीन जो कभी न कभी माँ की भूमिका में आती है !
अंत में वस्तुत: माँ जैसे आलोकिक शक्ति से स्मरण मात्र से न केवल हमारे कष्ठ हल्के हो जाते है अपितु उसके दर्शन मात्र से 
प्रफुलित हो जाता है ! हमारे वेद, पुराण, दर्शनशास्त्र, स्मृतियां, महाकाव्य, उपनिषद आदि सब ‘माँ’ की अपार महिमा के गुणगान से भरे पड़े हैं।वेदों में ‘माँ’ को ‘अंबा’, ‘अम्बिका’, ‘दुर्गा’, ‘देवी’, ‘सरस्वती’, ‘शक्ति’, ‘ज्योति’, ‘पृथ्वी’ आदि नामों से संबोधित किया गया है। इसके अलावा ‘माँ’ को ‘माता’, ‘मात’, ‘मातृ’, ‘अम्मा’, ‘अम्मी’, ‘जननी’, ‘जन्मदात्री’, ‘जीवनदायिनी’, ‘जनयत्री’, ‘धात्री’! श्रीमदभागवत पुराण में उल्लेख मिलता है कि ‘माताओं की सेवा से मिला आशिष, सात जन्मों के कष्टों व पापांे को भी दूर करता है और उसकी भावनात्मक शक्ति संतान के लिए सुरक्षा का कवच का काम करती है।’ इसके साथ ही श्रीमदभागवत में कहा गया है कि ‘माँ’ बच्चे की प्रथम गुरू होती है।‘ आप सभी को सादर शुभकामनाएं कि हर घर में होगा माँ का सम्मान , भारत माँ का अडिग रहेगा मान सम्मान !

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