गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

बढ़ता इलेक्ट्रॉनिक नशा 

आज की भागती दौड़ती जीवन शैली में लोगों के व्यवहार में भारी  परिवर्तन आया है ! एक ही परिवार के सदस्यों के मध्य सामजस्य का आभाव आने लगा है ! आपसी मतभेद से बचने के लिए अनेको माध्यम से लोग अपनी जिम्मेदारी से बचने का कुशल  अभिनय करने लगे हैं ! आज के युग में इलेक्ट्रॉनिक नशा हर व्यक्ति के सर चढ़ कर बोल रहा है ! हम अपने दिनचर्या में मुख्य समय टी . वी या इन्टरनेट के साथ  व्यतीत करना सीख गए हैं !यह ऐसा घातक  नशा बनता जा रहा है जिसमें व्यक्ति के दिलो दिमाग में उसके कार्यक्रमों  के प्रति बैचैनी दिखाई देने लगी है ! सोते जागते , हर कार्य में इन उपकरणों से अत्याधिक लगाव भविष्य  में कई चुनौती को दावत दे रही  है ! 
पहले बच्चे स्कूल से आकर गृहकार्य ,  क्रीडा और बडो के साथ बैठकर विचारों का आदान प्रदान करते थे किन्तु आज वह स्कूल से आने के पश्चात सीधे टी .वी , कंप्यूटर के आगे बैठ जाता है और अपने पसंदीदा कार्यक्रम के साथ भोजन को मात्र भूख मिटाने के लिए खाने लगा है !यही उसे धीरे -धीरे मोटापे , मधुमेह  और ह्रदय रोगों की ओर धकेल रहा है ! इसके साथ साथ मानसिक कुरीतियाँ भी बढ़ रही हैं !अच्छे ज्ञान के स्थान पर बुरे ,हिंसात्मक व् अश्लीलता प्रधान कार्यक्रम की ओर उसका बढ़ता नशा समाजिक चिंता का विषय बन गया है !
आज वयस्क  भी अपनी परेशानी को भुलाने के लिए इन्ही साधनों के आगे घंटों बैठकर समय व्यतीत तो कर लेता है किन्तु उसके पास घरेलू जिम्मेदारी  को निपटाने का समय नहीं होता ! फूहड़ ,बेसिर पैर के कार्यक्रम में उलझा तो रहेगा किन्तु बच्चों को नैतिक ज्ञान देने का उसके पास समय नहीं होता !बड़ी विडम्बना है की जहाँ आपके पास आधा घंटा भी अपने परिवार की उलझनों को सुलझाने हेतु समय नहीं होता तो आप 2-3 घंटे टी .वी .हेतु कैसे निकाल पाते हैं ! इसी तरह महिलाएं चाहे वे घरेलू  हों या कामकाजी ,बेकार के समाजिक पतन दर्शाने वाले कार्यक्रमों पर अपने पारिवारिक  सदस्यों के साथ घंटो बिता लेंगी , या फिर अपनी मित्र मंडली में बढ़ चढ़ कर एक एक पात्र की चर्चा में भाग लेंगी  किन्तु उन बुराईयों के प्रति अपने बच्चों का मार्ग दर्शन करने का उनके पास समय क्यूँ नहीं रहता ? अपनी घरेलू नैतिक जिम्मेदारी के प्रति उसका उदासीन व्यवहार पारिवारिक विघटन  के संकेत देने लगा  हैं ! मुख्य बात यह की अपने पसंदीदा पात्र के जीवन को अपने जीवन का लक्ष्य बना बेहद चिंता का विषय बन गया है !
जिस पारिवारिक परिवेश में इलेक्ट्रॉनिक  एडिक्शन अधिक है वहां के परिवेश में प्रेम ,त्याग और आपसी सामजस्य की भारी कमी दिखने लगी है ! हर कार्यों को एक दूसरे  पर टालने जैसे इन परिवेश के सदस्यों का गुण बन गया है !भौतिक सुखों की आड़ में यह आधुनिक नशा कितना घातक सिद्ध हो रहा है इसका तो शायद आज आदमी समझना ही नहीं  चाह रहा ! मनोरंजन जब विकृत रूप लेने लगे तो समाज को स्वत : सावधान हो जाना चाहिए ! एक बात का सदैव ख्याल रखें कि टी . वी . पर आने वाले कार्यक्रमों का यह काम नहीं कि  वे समाज को दिशा दें या न दें , उनका कार्य तो मात्र पैसा बटोरना है ! चाहे इसके लिए उन्हें फूहड़ मनोरंजन ,हिंसा ,कल्पित ,संस्कार विहीन कहानियाँ ही परोसना पड़े !यहाँ तक कि  धर्माचार्यों  के उपदेशों को ही न सुनना पड़े ! उनको तो आय प्राप्त हो रही है ! यह तो आपको तय   करना है कि  आपके लिए और आपके परिवार के लिए क्या सही है और क्या गलत ! सभी कार्यक्रम सकरात्मक नहीं होते ,उनके नकरात्मक भावों को समझने व् परिवार से बचाने  का प्रयास कौन करेगा ! 
टी . वी .  इन्टरनेट जहां एक ओर  समाज को भटकाव की ओर  ले जा रही है वहीं यदि इसके सकरात्मक पहलूओं  की ओर  यदि हम अपने परिवार का रुझान बढ़ायेंगे तो वह समय का सदुपयोग कहलायेगा ! अधिक से अधिक प्रयास करें कि  सभी परिवार के सदस्य एक सुनिश्चित  समय पर समाचार , ज्ञानवर्धक कार्यक्रम  देखें और उस पर चर्चा करें ! अपने पारिवारिक व् नैतिक जिम्मेदारी को समझें ,एक सुंदर शिक्षित ,संस्कारवान समाज के निर्माण में सहयोग दें !

सदैव याद रखें ,"दुनिया वैसी ही है जैसे हम इसके बारे में सोचते हैं, यदि हम अपने विचारों को बदल सकें, तो हम दुनिया को बदल सकते हैं।" ~ एच. एम. टोमलिसन

बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

बचपन  सँवारें  प्रसंशा  टॉनिक  के संग 

प्रसंशा जीवन  का वह अनमोल रत्न जिसकी धुरी के इर्दगिर्द  मनुष्य के व्यक्तित्व  का विकास  होता है !यह एक टॉनिक के समान है जो व्यक्ति का सर्वांगीण  विकास में सहायक बनता है ! प्रसंशा  के दो बोल व्यक्ति विशेषकर  बच्चों  में आत्मविश्वाश  बढाने के साथ -साथ  उन्हें जीवन संघर्ष झेलने के लिए भी प्रेरित करता है !बच्चों को प्रोत्साहित  करते रहेंगे तो आत्मविश्वास  बढ़ेगा  ! उनके चिन्तन पर  सकरात्मक  प्रभाव  पड़ेगा  ! बच्चों  को सृजनात्मक  कार्यों की ओर  प्रोत्साहित करें   ताकि वे अपने रूचि  के अनुसार और बढ़िया  नतीजे सामने ला सकें ! प्रसंशा करते समय इस बात  का ध्यान रखे की आपके द्वारा दी गयी तारीफ कृत्रिम  न लगे  ,जब भी दें पूरे उर्जा से दें ! बच्चा छोटा भले ही हो अनुभूति उसके भीतर भी है ! 
अक्सर  अभिभावक ही अपने बच्चों के विकास में बाधाएं उत्पन्न करते हैं ! बात बात पर डांटना ,टीका टिप्पण  करना  , हतोसाहित करना जिसके प्रभाव में बच्चों में हीन भावनाओ का विकास होता है ! अभिभावकों द्वारा यह अवधारणा  कि  प्रसंशा  बच्चों को जिद्दी व् घमंडी  बनाता है  ,निराधार है ! मनो वैज्ञानिक  इस दिशा में निरंतर शोध करते रहते हैं ! उनके अनुसार  यदि बच्चों को अपने अभिभावक ,शिक्षकों व् अपने परिवेश का समर्थन  प्राप्त होता है  उनका सर्वांगीण विकास होता है जो उनके जीवनपर्यंत  काम आता है ! बच्चो  की बस आवश्यकता  से अधिक प्रसंशा करना गलत है क्यूंकि यदि वह इसका आदि हो जायेगा तो आप अपना ही महत्व खो देंगे ! ऐसी स्तिथि में वस्तुत :  व् जिद्दी बन सकता है और झूठी प्रसंशा की ओर  लालायत हो जायेगा जिसका नुक्सान उसे तो होगा   ही किन्तु भविष्य में आपकी भी दुखद स्तिथि बनने का अंदेशा रहेगा !
यदि बड़े बच्चों का उचित समय पर उचित प्रसंशा करेंगे  तो बच्चों के मन में इसका सकरात्मक प्रभाव तो दिखेगा ही साथ में वे इस गुण के साथ आस पास के परिवेश में  व्यवहार करते दिखेंगे !किन्तु इसके विपरीत उनके कार्यों को दूसरों के साथ तुलना करते हुए उनकी आलोचना करेंगे तो यही बच्चे न केवल हीन भावना का शिकार होंगे अपितु अपनी त्रासदी से आस पास के माहौल को भी कुंठाग्रस्त बना देंगे !
सभी व्यस्क यह ध्यान रखें कि  हमे बच्चों के सुख दुःख में समभाव रखना है और उन्हें निरंतर प्रगति पथ पर अग्रसर करना है ! उसेउनकी  हार में अकेला न छोड़े  बल्कि उसके मनोदशा में साथ देना है ,इससे उसका मनोबल बढेगा  और उसका ह्रदय भी दूसरों के लिए विशाल बनेगा ! इन्ही भावनाओ को लेकर जब वह  अपने परिवेश में कार्य करेगा तो उसमें आपकी आदतों का प्रतिबिम्ब  स्पष्ठ  दिखेगा ! यदि हम हर स्तिथि में उनका साथ देते हैं  और उसके अच्छे कार्यों पर उनका हौसला बढ़ाते हैं  ,तो आप यह समझ लें की आप  देश के प्रति अपने दायित्व  निबाह रहे हैं ! बच्चों के साथ मित्रता रखेंगे तो उनको भी अहसास  होगा कि दुनिया सुंदर है वे जीवन का मकसद समझेगें।
बच्चों का मन कोमल फूलों की पंखुड़ियों  समान होता है ! यदि बड़े उनकी प्रसंशा करते हैं  तो यही गुण उसके व्यक्तित्व का अभिन्न अंग बन जायेगा ! घर में आनन्द का माहौल रहेगा तो बच्चों के भीतर सकरात्मक उर्जा  का संचार होगा  और इस प्रतिस्पर्धा के दौर में वे किसी प्रकार के बोझ में नहीं दबेंगे ! यह भी ध्यान रखे कि  यदि हम उनकी गलतियों में उनको सकरात्मक  दिशा न डकार उनकी आलोचना करेंगे तो वे भी बात बात में आपकी कमियाँ ढूँढने से न चूकेंगे  और आपसे नजरे चुरायेंगे ! कुछ बच्चे दब्बू भी बन जाते है !उनके साथ दुश्मनी भरा सौतेला व्यवहार मत कीजिये अन्यथा वे अपनी कुंठाओं के आग में समाज के विध्वंशक  बन जायेंगे जिसका पश्चताप भी नहीं हो सकेगा ! रास्ट्र  के  निर्माण  में हमे  अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निबाहनी है ! आएँ  हम सभी मिलकर प्रसंशा टॉनिक  का प्रचार करें ! हमेशा याद रखें  कि'' यदि आप चाहते हैं कि आपका बच्चा सही मार्ग पर चले, तो केवल उसे सही मार्ग की जानकारी प्रदान न करें, बल्कि उस पर चल कर भी दिखाएं।'' ~ जे. ए. रोसेनक्रांज

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013

शिक्षा और संस्कार

सुंदर संस्कारवान समाज का निर्माण  बच्चों में पड़ने वाली दृढ  नीव पर आधारित होती है ! यदि नीव कमजोर होगी तो देश  की नाव भी डगमगाती रहेगी ! इस दिशा में प्रत्येक  व्यस्क को कार्यरत रहना होगा !
बच्चे का जीवन सफेद कागज जैसा होता है. उस पर व्यक्ति जैसे चाहे, वैसे चित्र उकेर सकता है. बच्चे को जिस दिशा में मोड़ना हो सरलता से मोड़ा जा सकता है. एक दृष्टि से यह मन्तव्य सही हो सकता है पर यह सर्वांगीण दृष्टिकोण नहीं है. क्योंकि हर बच्चा अपने साथ आनुवंशिकता लेकर आता है, गुणसूत्र (क्रोमोसोम) और संस्कारसूत्र (जीन्स) लेकर आता है. सामाजिक वातावरण भी उसके व्यक्तित्व पर प्रभाव डालता  है. इसका अर्थ यह हुआ कि संस्कार-निर्माण के बीज हर बच्चा अपने साथ लाता है. सामाजिक या पारिवारिक वातावरण में उसे ऐसे निमित्त मिलते हैं, जिनके आधार पर उसके संस्कार विकसित होते हैं.

शिक्षा का अंतिम लक्ष्य सुंदर चरित्र है। मनुष्य के व्यक्तित्व के सभी पहलुओं का पूर्ण और संतुलित विकास करता है। इसके अंतर्गत बच्चों का भावनात्मक और आध्यात्मिक विकास ही होता है।उच्च स्तरीय शिक्षा द्वारा बच्चों में पाँचों मानवीय मूल्यों सत्य, प्रेम, धर्म, अहिंसा और शांति का विकास होता है।आज की शिक्षा मनुष्य को विद्वान एवं कुशल डॉक्टर, इंजीनियर या अफसर तो बना देती है परंतु वह अच्छा चरित्रवान इंसान बने यह उसमें होने वाले संस्कारों पर निर्भर करता है।एक पक्षी को ऊँची उड़ान भरने के लिए दो सशक्त पंखों की आवश्यकता होती है उसी प्रकार मनुष्य को भी जीवन के उच्च लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दोनों प्रकार की शिक्षा की आवश्यकता होती है। सांसारिक शिक्षा उसे जीविका देती है और आध्यात्मिक शिक्षा उसके जीवन को मूल्यवान बनाती है।

शिक्षा और संस्कार  एक दूसरे  से जुड़े हैं ! शिक्षा और संस्कार से ही देश का निर्माण हो सकता है। जब व्यक्ति में शिक्षा का विकास होगा, तब वह विकास की ओर आगे बढ़कर समाज के लिए कार्य करेगा।समाज के बदलाव के लिए व्यक्ति में अच्छे गुणों की आवश्यकता होती है और इसकी नीव बाल्यकाल में ही रख दी जानी चाहिए ! बच्चों  को तीन गुणों  से  प्रखर बनाएं जिससे वह समाज के प्रति अपनी शक्ति  व् अपना  कर्म  भी सकरात्मक रखेगे  ! ये गुण हैं  , ज्ञान  ,कर्म  व् श्रधा ,जब यह तीनों गुण व्यक्ति में होंगे, तो वह समाजसेवा में आगे बढ़ेगा। आज जो रास्ट्र व्यापी अनैतिक्वाद  प्रदूषण  हमारे  समाज को दूषित कर रहा है उसका मूलभूत कारण  बच्चों में संस्कारों का आभाव और इसका दोष वयस्कों पर आता है जो स्वयं भी अपने भारतीय अमूल्य संस्कारों के प्रति उदासीन होते जा रहे हैं ! बाहय  सभ्यता का आँख मूँद कर अनुसरण करना ही  हमे पतन की ओर  ले जा रहा है !

हम सभी को याद रखना होगा कि शब्दों का और भावों का निरिक्षण करते हुए दूसरों के मान सम्मान को प्रमुखता देना ही संस्कारवान होने के लक्षण होते है , जो हमे बच्चों को  घर ,स्कूल  और सामाजिक परवेश में सिखाते रहना होगा !रास्ट्र  निर्माण  की  दिशा  में  बच्चों  की अपेक्षा  वयस्कों  की  नैतिक  जिम्मेदारी अधिक है वे अपनी भूमिका को पूरी निष्ठा  से निबाहें और सुंदर परिवेश का निर्माण में सहभागी बने ! आयें बच्चों को गुरुकुल पद्धति  में  सिखाये  जाने  वाली  परम्पराओ से अवगत कराएं और उन्हें गुणवान ,ज्ञानवान और आदर्श  नागरिक  बनाने   में  अपने  दायत्व  को  भरपूर निबाहे !

गुरुवार, 7 फ़रवरी 2013

बच्चों  में आत्मविश्वास

मनोबल व् सच्ची लगन से जीवन के हर संघर्ष में व्यक्ति कामयाब रहता है ! बच्चो में आत्मविश्वास  की कमी उन्हें हीन भावना से भर देती है ! आत्मविश्वास की कमी व्यक्तित्व के विकास में रूकावट है ! इसके आभाव में बच्चों  के अन्दर नकारात्मक  विचार भर देती है ! और यदि इन विचारों की बढोतरी हो जाये तो बच्चे दिशाहीनता के शिकार हो जाते हैं ! ऐसे में बच्चे अपनी काल्पनिक  दुनिया बना लेते हैं जिसमें उन्हें अपने भीतर कमियाँ  ही कमियाँ दिखाई देने लगती है ! फिर वे अपने को दुनिया की नजरों से दूर छुपाने की कोशिश में लग जाते हैं ! उनके मन :चिन्तन   पर हीन भावना प्रचुर मात्रा  में भर  जाती  है ! ऐसे में इन बच्चों को एकाकीपन अधिक लुभाता है ! जो बच्चे हीन भावना से ग्रसित होते हैं उनमें आत्मविश्वास की भारी  कमी दिखती है ! उनकी प्रत्येक  क्षेत्र  की  प्रगति में रूकावट आने लगती है ! साथ में उनका यह समझने लगना की वे जीवन में  कभी सफल नहीं हो पाएंगे ,उनके व्यक्तित्व में घातक  प्रहार करता है !
बच्चों को सिखाएं कि  वे अपने भीतर सकरात्मक विचारों का संचार करें ! अच्छी किताबें जिसमें  महान संतों की वाणी हो ,उन्हें पढने से उनके भीतर आत्मबल का संचार होगा जिससे उन्हें अपनी अपनी समस्यायों से दृढ़ता  से जूझना आ जायेगा ! बच्चों से कहें कि  वे अपने आस पास ध्यान  से  देखें कि  हर व्यक्ति के अंदर कुछ न कुछ कमी दिखने लगेगी  ! इस सृष्टी  की सम्पूर्णता केवल ईश्वर के पास है बाकि सभी किसी न किसी क्षेत्र में दूसरे  से अधिक सक्षम होते हैं ! उन्हें  उनके गुण  पहचानना सिखाएं  ताकि वे उसी दिशा  में अपनी योगिता अनुसार अपने भीतर की  उर्जा  का संचार कर सकें ! इससे उनके भीतर पनप रहे नकारात्मक चिन्तन से वे भी बचे रहेंगे साथ ही उनके परिवेश पर भी बुरा असर नहीं पड़ेगा ! बच्चे यह सीख लें की नकारात्मक चिंतन से पूरे समाज को हानि होती है ! कभी वे स्वय को दुसरे से कम न समझे ! यदि एक बच्चा कक्षा में पढाई में अव्वल  है तो दूसरा बच्चा  खेल में तो तीसरा कला में तो चौथा तकनीकी  क्षेत्र में ! हर बच्चे की बोद्धिक  क्षमता भी भिन्न होती है ! अभिभावक व् शिक्षक  बच्चों को गुमराह होने से बचा सकते हैं ! आज के दौर में शिक्षा प्रणाली भी इसी वजह से लचीली कर दी गयी है ! बच्चों के गुणों का आकलन मात्र पढाई से ही नहीं अपितु उनके सर्वागीण  विकास से किया जाना चाहिए !हर बच्चा के भीतर किसी न किसी क्षेत्र की प्रतिभा छुपी होती है ! बच्चों को स्वय का आकलन करना सिखाएं कि  उन्हें किन कारणों से हीन भावना आती है ! कक्षा में अनुतीर्ण होना / शिक्षकों द्वारा फटकार या प्रताड़ना / अभिभावकों द्वारा  किये जाने वाली तुलनात्मक आलोचना / परिवार में आपके दातित्व / खुद की कमी / लापरवाही  इत्यादि अन्य  कारण उन्हें स्वयम मनन करना होगा !
अभिभावक भी ध्यान दें कि  बच्चों का मन उस कोमल मिट्टी की भांति है जिसे आप यानि कुम्हार अपने इच्छा अनुरूप ढालता है ! आप अपने बच्चे के गुण दोष परखिये ,फिर उसी अनुसार उसे दिशा दें ! मारना / डांटना / आलोचना करने से आप बच्चे के विकास में स्वयम बाधा डालते हैं ! यदि आप उनका आत्मबल बढाने में अक्षम हैं तो कम से कम उन्हें  गहन  अन्धकार की ओर  न  धकेलें ! अपने बच्चे की रूचि पहचानिए  और उसे उस में व्यस्त होने दीजिये ! आप  स्वयं  देखेंगे की समय के साथ उसका आत्मविश्वास भी बढेगा और वह बाकि क्षेत्रों में स्वत : रूचि लेने लगेगा ! कभी बच्चों को डरायें धमकाएं नहीं  क्यूंकि अक्सर  इसके दुष्परिणाम भी आपको ही झेलने पड़ेंगे ! आत्मविश्वास की कमी से बच्चे कई बार गलत निर्णय ले बैठते हैं जिसकी वजह से बाद में आप जीवन भर  पछतायेंगे ! बच्चों के बीच संवाद बनाये रखें  यह सुझाव विशेषकर उन अभिभावकों के लिए महत्वपूर्ण है जो  अपने  कार्य  में व्यस्त रहते हैं ! उन्हें प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए  प्रेरित करें किन्तु उन्हें अपनी कठपुतली  न बनाएं ! बच्चों को प्रतिस्पर्धा के अनुकूल बनाएं पर उस पर इसका  बोझ  न डालें ! जब जब बच्चा कोई प्रशंसनीय कार्य करे तो उसकी तारीफ करें इससे उसमें आत्मविश्वास बढ़ेगा ! बच्चो के सामने आप अपना आदर्श स्थापित करें ताकि वह अपनी दिक्कते  स्वय आपके सामने रखना सीख लें ! कभी भी भूल से नकरात्मक शब्दों  का इस्तेमाल  न करें ! अच्छे कुशल माली के समान – उन्हें स्वस्थ पोषण दें। माली पौधे को खाद पानी देता है। खर पतवार को पास उगने नहीं देता। धूप, अतिवृष्टि, अनावृष्टि से बचाता है। यदि डालियां इधर-उधर बढ़ रही हैं तो सुंदर रूप देने के लिए काट छांट भी करता है।अभिभावक भी बच्चों को स्वस्थ साहित्य पढ़ने को दें, बुराई से बचाएं, गंदे व्यवहार की निंदा करते हुए उन्हें उनसे दूर रखें और सबसे अहम बच्चों का मनोविज्ञान समझें और अपना भी।
शिक्षकगण  की भूमिका  भी सकरात्मक होनी चाहिए ! शिक्षक केवल किसी विद्यार्थी को अपने अद्यापन क्षेत्र में सम्पूर्ण बनाने की चेष्ठा नहीं करता अपितु उनके व्यक्तित्व के विकास में उनकी नैतिक भागीदारी होती है ! उन्हें उनकी योग्यता फ्च्न्ने में मदद करें ! नन्हे बीजो को सुंदर फलदार वृक्ष में बदलना जो मानवतावाद  से भरपूर हो ,इसकी जिम्मेदार भी शिक्षक ही होते हैं ! सब बच्चों को समान दृष्टि से देखें, निश्छल व्यवहार करें व समय का पालन करें – तो यह गुण बच्चों में स्वत: आ जाएंगे। वे भी समय पर अपना कार्य पूर्ण कर के दिखाएंगे व सबके साथ मित्रवत व्यवहार करेंगे।उनके अभिभावकों के सामने  उनकी निंदा न करके उनकी उन अच्छाईयों को पहले सामने  लायें  जो उनके विकास में आधारशिला का कार्य करता है ! उसके पश्चात यदि उनकी कमजोरियां सामने लायी जाएँगी तो वे स्वयं अपने को सुधरने का प्रयत्न करेंगे ! उनकी हर विषय में रूचि जागृत करने हेतु उन्हें प्रयोगिक कार्यशाला द्वारा  अध्यन कराएं ! इससे वह मात्र किताबी ज्ञान न लेकर वास्तविक जगत का सामना करने लायक हो पायेगा ! नैतिक  शिक्षा  की कक्षा  में आत्मविश्वास बढाने  वाली कहानियों द्वारा मार्गदर्शन करें ! समाज  कल्याण  की दिशा में प्रेरित करने वाले  अभियान से बच्चों को जोड़े , उन्हें  मात्र किताबी आदर्श न सिखाकर वास्तविक जगत के  प्रतिस्ठित लोगो से मिलवाएं जिससे उनमें भी आत्मबल का संचार हो और वे भी जीवन में कुछ सीखने व् बनने के लिए लालायित रहे ! परीक्षा के दिनों में उनके आत्मबल को डिगने न दें ! लगातार बच्चे के अभिभावक के सम्पर्क में रहे ! मनोचिकित्सक डा. क्षितिज विमल जी का सुझाव  है कि अध्यापक इस बात का जरूर ध्यान दें कि जो वे बच्चों को पढ़ा रहे हैं, उसके प्रति बच्चे संतुष्ट दिखे। क्योंकि अगर बच्चे संतुष्ट नहीं होंगे तो मानसिक तनाव बढ़ने के आसार होते हैं। अभिभावक भी इस बात पर ध्यान दें कि बच्चों पर ज्यादा प्रेशर न डालें और गलती से भी उनमें हीन भावना पैदा न होने पाए।
अंत में हम  सबकी नैतिक जिम्मेदारी है की हम अपनी वाटिका के सुगन्धित पुष्प  की सुगंधी को चहु दिशा में फ़ैलाने हेतु उनकी शक्ति बने ! बच्चों को प्रतिभावान बनाएं ! मैरी  क्यूरी के अनुसार ,"हम में से जीवन किसी के लिए भी सरल नहीं है. लेकिन इससे क्या? हम में अडिगता होनी चाहिए तथा इससे भी अधिक अपने में विश्वास होना चाहिए. हमें यह विश्वास होना चाहिए कि हम सभी में कुछ न कुछ विशेषता है तथा इसे अवश्य ही प्राप्त किया जाना चाहिए"