मन पंछी ही तो है इसका न कोई ठौर न ठिकाना | आस पास होती सामायिक घटनाओं पर अपनी भावनात्मक उड़ान कब भरने लगे और नन्ही के मन का दर्पण बन जाये स्वयं नन्ही भी नहीं जानती सब माँ शारदे का आशीर्वाद |
रविवार, 27 अप्रैल 2014
अतीत के फूल
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"हे भगवान मेरे परिवार को किसकी नज़र लग गई .. पहले दामाद अब बेटी भी चली गई " मालती का विलाप उस को भी अधीर कर रहा था ! हम माँ बाप पर विपदा आ पड़ी थी ! मै अभी हाल में ही पत्नी व बेटी की लगन से पक्षाघात से उभरा था और मेरी पत्नी को गठिया थी ! इकलौती बेटी जूही आज गीजर के करंट के चपेट में आ गई थी और तडपकर उसने वहीं दम तोड़ दिया था ! जूही के पति यानि उनके दामाद की ८ वर्ष पूर्व सड़क दुर्घटना में मौत हो गई थी ! तब से लेकर आज तक जूही ने अपने बच्चों राहुल व पिंकी व हमारी जिम्मेदारी अपने कंधे पर उठा ली थी ! आज उसके जाने से वे बेबसी के आँसू रो रहे थे ! उन्होने मन ही मन दृढ निश्चय किया कि भले ही उनकी उमर व स्वास्थय उनके कार्य में बाधक बनेगा पर जिंदगी की लड़ाई में वे अपनी जिम्मेदारी से मुह नहीं मोड़ेंगे ! मालती और वह रिटायर्ड सरकारी डॉक्टर थे ! जूही के विवाह के बाद वे अपने छोटे क्लिनिक के माध्यम से समाज सेवा में अपना समय व्यतीत कर लेते थे किन्तु आज वही कार्य उनके लिए जरूरत बन गया था ! अपने परिचित दोस्तों की मदद से उन्होने फिर से काम पर जाना शुरू कर दिया ! जीवन की गाड़ी धीरे धीरे पटरी पर रेंगने लगी थी कि एक दिन फिर बदकिस्मती उन पर हंस पड़ी ! ६ साल की अल्पायु में दोनो बच्चों में मेजर थैलासीसीमिया पाया गया था और बहुत इलाज के बावजूद १० वर्ष के नन्हे फूल दुनिया से विदा हो गए थे ! तब से लेकर आज तक उन्होने थैलेसीमिया के मरीजों के बीच अपने शेष जीवन के आयाम खोज लिए थे ! " नानू नानू नानी नानी देखो हम आ गए ", बच्चों की आवाज सुनकर वह अतीत से बाहर निकल आया था उनके सामने वे दो फूल थे जिनके माली ने उनके खर्चों से बचने के लिए उस अस्पताल में छोड़ गए थे ! ईश्वर की लीला भी अजीब .... दोनो का नाम था राहुल और पिंकी ... और उनके हाथ खुद ब खुद अपने बच्चों को गोद में लेने के लिए आगे बढ़ गए !
__________________________सुनीता शर्मा
-बुत
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सारा परिवार आज बहुत खुश था ! शहर के मशहूर मॉल " फ्रेंडशिप " में विनोद ने अपने बेटे माणिक के जन्मदिन की पार्टी रखी थी ! सभी मिलकर नाच गा रहे थे किन्तु माणिक की छोटी बहिन मृदुला का ध्यान कहीं और था ! सबकी नज़रे बचाकर वह मॉल की खिड़की से पार्क में स्थापित एक झुकी बुत को लगातार देखने लगी उसे उस बुत में अपनी दादी नज़र आने लगी और वह रो पड़ी ! माँ पापा बहुत बुरे हैं ! उन्होंने मेरी बूढी दादी जिसकी कमर ऐसे ही झुकी रहती है उन्हें गाँव में अकेले छोड़ कर यहाँ आ गए है ! दादी भी तो अकेली होगी और उन्हें कितना बुरा लगता होगा ! कुछ सोचकर मृदुला ने दो गुब्बारे ,थोड़ा केक और थोड़े पैसे जो उसे अभी एक अंकल ने दिए थे उन्हें लेकर वह चुपचाप मॉल के पार्क में आ गई जहाँ पार्टी में आए बच्चे झूला झूल रहे थे ! मृदुला उस सफ़ेद मूर्ति के पास गई और बोली - " दादी आप सारा दिन ऐसे क्यों खड़ी रहती हो ,थक जाओगी , आज भैया का बर्थडे है देखो मैं तुम्हारे लिए केक और पैसे लाई हूँ और ये हैं गुब्बारे इनसे खेला करो देखो इसमें मैं और माणिक भैया दिख रहे है न , तो अब आप अकेली नहीं ! " बोलते बोलते मृदुला रो पड़ी ! अरे यह क्या ? मूर्ति हिली और उसने न केवल गुब्बारे लिए बल्कि मृदुला को गले लगा लिया , और बोली- "बिटिया मैं दुनिया में अकेली कहाँ ,आप जैसे बच्चे रोज मुझसे मिलते हैं और खेलते हैं ! मैं इस मॉल के मालिक की माँ हूँ और मेरे कोई बच्चे खो न जाएं या कोई उन्हें बहला फुसला कर ले न जाए इसकी निगरानी करती हूँ बदले में मुझे मिलता है तुम सबका ढेर सारा प्यार , तो हूँ न आपकी भी दादी ,अब हंसो और याद रखो बिटिया कभी अकेले मत घूमा करो , अब जाओ और भैया के साथ पार्टी में रहो !" __________________सुनीता शर्मा
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