रविवार, 27 अप्रैल 2014


शौक ==== रोज की तरह वासू मुट्ठी भर बाजरा कसोरे में डाल साथ में पानी का कटोरा रख अपने दफ्तर चली गई ! उसे बचपन से ही कबूतर बहुत पसंद थे खासकर उसके बच्चे जो उड़ने के लिए आतुर रहते थे ! कई बार वह घर में अपनी तुलना भी इन बच्चों से करती थी जिसे अपने परिवार के बसेरे से दूर नई दुनिया में जाना होगा .... नई दुनिया में अपने वजूद तो तलाशना होगा और यह तो सदियों की चली आ रही रीत है सो वह भी अपने को इसके लिए तैयार कर चुकी थी ! गुटर गूँ गुटर गूँ जैसे उसकी आत्मा में रच बस गये थे ! विवाह के समय उसने अभिनव के समक्ष बस यही तो शर्त रखी थी कि उसके परिवार में कबूतर भी रहेंगे ! इन कबूतरों के कारण अभिनव ने अपने घर वालों से कितने ताने सुने थे , किन्तु उसके शौक को जारी रखने दिया था ! परिवार वाले भी एक एक कर उनसे अलग हो गए थे ! एक सुबह अचानक एक साथ २ कबूतरों का अचानक मर जाना और उसके बाद अगले दिन २ और का चले जाना उसे आघात दे गया ..... जाने कितनी देर तक वह रोती रही ... सारा दिन अभिनव ने अपना काम काज छोड़कर उसे ढांढस बंधाया था ! आज रह रहकर अभिनव की याद आ रही थी ... वे कारोबार के सिलसिले में कबूतरों की भांति ऐसे उड़े कि..... फिर कभी ना लौट सके ! तबसे वह और कबूतरों का दल ही एक दूसरे के जीवन आधार बन चुके थे ! आज उसे अपने इस शौक का महत्व पता चल चुका था ! ______________________________सुनीता शर्मा

1 टिप्पणी: