गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

बढ़ता इलेक्ट्रॉनिक नशा 

आज की भागती दौड़ती जीवन शैली में लोगों के व्यवहार में भारी  परिवर्तन आया है ! एक ही परिवार के सदस्यों के मध्य सामजस्य का आभाव आने लगा है ! आपसी मतभेद से बचने के लिए अनेको माध्यम से लोग अपनी जिम्मेदारी से बचने का कुशल  अभिनय करने लगे हैं ! आज के युग में इलेक्ट्रॉनिक नशा हर व्यक्ति के सर चढ़ कर बोल रहा है ! हम अपने दिनचर्या में मुख्य समय टी . वी या इन्टरनेट के साथ  व्यतीत करना सीख गए हैं !यह ऐसा घातक  नशा बनता जा रहा है जिसमें व्यक्ति के दिलो दिमाग में उसके कार्यक्रमों  के प्रति बैचैनी दिखाई देने लगी है ! सोते जागते , हर कार्य में इन उपकरणों से अत्याधिक लगाव भविष्य  में कई चुनौती को दावत दे रही  है ! 
पहले बच्चे स्कूल से आकर गृहकार्य ,  क्रीडा और बडो के साथ बैठकर विचारों का आदान प्रदान करते थे किन्तु आज वह स्कूल से आने के पश्चात सीधे टी .वी , कंप्यूटर के आगे बैठ जाता है और अपने पसंदीदा कार्यक्रम के साथ भोजन को मात्र भूख मिटाने के लिए खाने लगा है !यही उसे धीरे -धीरे मोटापे , मधुमेह  और ह्रदय रोगों की ओर धकेल रहा है ! इसके साथ साथ मानसिक कुरीतियाँ भी बढ़ रही हैं !अच्छे ज्ञान के स्थान पर बुरे ,हिंसात्मक व् अश्लीलता प्रधान कार्यक्रम की ओर उसका बढ़ता नशा समाजिक चिंता का विषय बन गया है !
आज वयस्क  भी अपनी परेशानी को भुलाने के लिए इन्ही साधनों के आगे घंटों बैठकर समय व्यतीत तो कर लेता है किन्तु उसके पास घरेलू जिम्मेदारी  को निपटाने का समय नहीं होता ! फूहड़ ,बेसिर पैर के कार्यक्रम में उलझा तो रहेगा किन्तु बच्चों को नैतिक ज्ञान देने का उसके पास समय नहीं होता !बड़ी विडम्बना है की जहाँ आपके पास आधा घंटा भी अपने परिवार की उलझनों को सुलझाने हेतु समय नहीं होता तो आप 2-3 घंटे टी .वी .हेतु कैसे निकाल पाते हैं ! इसी तरह महिलाएं चाहे वे घरेलू  हों या कामकाजी ,बेकार के समाजिक पतन दर्शाने वाले कार्यक्रमों पर अपने पारिवारिक  सदस्यों के साथ घंटो बिता लेंगी , या फिर अपनी मित्र मंडली में बढ़ चढ़ कर एक एक पात्र की चर्चा में भाग लेंगी  किन्तु उन बुराईयों के प्रति अपने बच्चों का मार्ग दर्शन करने का उनके पास समय क्यूँ नहीं रहता ? अपनी घरेलू नैतिक जिम्मेदारी के प्रति उसका उदासीन व्यवहार पारिवारिक विघटन  के संकेत देने लगा  हैं ! मुख्य बात यह की अपने पसंदीदा पात्र के जीवन को अपने जीवन का लक्ष्य बना बेहद चिंता का विषय बन गया है !
जिस पारिवारिक परिवेश में इलेक्ट्रॉनिक  एडिक्शन अधिक है वहां के परिवेश में प्रेम ,त्याग और आपसी सामजस्य की भारी कमी दिखने लगी है ! हर कार्यों को एक दूसरे  पर टालने जैसे इन परिवेश के सदस्यों का गुण बन गया है !भौतिक सुखों की आड़ में यह आधुनिक नशा कितना घातक सिद्ध हो रहा है इसका तो शायद आज आदमी समझना ही नहीं  चाह रहा ! मनोरंजन जब विकृत रूप लेने लगे तो समाज को स्वत : सावधान हो जाना चाहिए ! एक बात का सदैव ख्याल रखें कि टी . वी . पर आने वाले कार्यक्रमों का यह काम नहीं कि  वे समाज को दिशा दें या न दें , उनका कार्य तो मात्र पैसा बटोरना है ! चाहे इसके लिए उन्हें फूहड़ मनोरंजन ,हिंसा ,कल्पित ,संस्कार विहीन कहानियाँ ही परोसना पड़े !यहाँ तक कि  धर्माचार्यों  के उपदेशों को ही न सुनना पड़े ! उनको तो आय प्राप्त हो रही है ! यह तो आपको तय   करना है कि  आपके लिए और आपके परिवार के लिए क्या सही है और क्या गलत ! सभी कार्यक्रम सकरात्मक नहीं होते ,उनके नकरात्मक भावों को समझने व् परिवार से बचाने  का प्रयास कौन करेगा ! 
टी . वी .  इन्टरनेट जहां एक ओर  समाज को भटकाव की ओर  ले जा रही है वहीं यदि इसके सकरात्मक पहलूओं  की ओर  यदि हम अपने परिवार का रुझान बढ़ायेंगे तो वह समय का सदुपयोग कहलायेगा ! अधिक से अधिक प्रयास करें कि  सभी परिवार के सदस्य एक सुनिश्चित  समय पर समाचार , ज्ञानवर्धक कार्यक्रम  देखें और उस पर चर्चा करें ! अपने पारिवारिक व् नैतिक जिम्मेदारी को समझें ,एक सुंदर शिक्षित ,संस्कारवान समाज के निर्माण में सहयोग दें !

सदैव याद रखें ,"दुनिया वैसी ही है जैसे हम इसके बारे में सोचते हैं, यदि हम अपने विचारों को बदल सकें, तो हम दुनिया को बदल सकते हैं।" ~ एच. एम. टोमलिसन

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