बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

बचपन  सँवारें  प्रसंशा  टॉनिक  के संग 

प्रसंशा जीवन  का वह अनमोल रत्न जिसकी धुरी के इर्दगिर्द  मनुष्य के व्यक्तित्व  का विकास  होता है !यह एक टॉनिक के समान है जो व्यक्ति का सर्वांगीण  विकास में सहायक बनता है ! प्रसंशा  के दो बोल व्यक्ति विशेषकर  बच्चों  में आत्मविश्वाश  बढाने के साथ -साथ  उन्हें जीवन संघर्ष झेलने के लिए भी प्रेरित करता है !बच्चों को प्रोत्साहित  करते रहेंगे तो आत्मविश्वास  बढ़ेगा  ! उनके चिन्तन पर  सकरात्मक  प्रभाव  पड़ेगा  ! बच्चों  को सृजनात्मक  कार्यों की ओर  प्रोत्साहित करें   ताकि वे अपने रूचि  के अनुसार और बढ़िया  नतीजे सामने ला सकें ! प्रसंशा करते समय इस बात  का ध्यान रखे की आपके द्वारा दी गयी तारीफ कृत्रिम  न लगे  ,जब भी दें पूरे उर्जा से दें ! बच्चा छोटा भले ही हो अनुभूति उसके भीतर भी है ! 
अक्सर  अभिभावक ही अपने बच्चों के विकास में बाधाएं उत्पन्न करते हैं ! बात बात पर डांटना ,टीका टिप्पण  करना  , हतोसाहित करना जिसके प्रभाव में बच्चों में हीन भावनाओ का विकास होता है ! अभिभावकों द्वारा यह अवधारणा  कि  प्रसंशा  बच्चों को जिद्दी व् घमंडी  बनाता है  ,निराधार है ! मनो वैज्ञानिक  इस दिशा में निरंतर शोध करते रहते हैं ! उनके अनुसार  यदि बच्चों को अपने अभिभावक ,शिक्षकों व् अपने परिवेश का समर्थन  प्राप्त होता है  उनका सर्वांगीण विकास होता है जो उनके जीवनपर्यंत  काम आता है ! बच्चो  की बस आवश्यकता  से अधिक प्रसंशा करना गलत है क्यूंकि यदि वह इसका आदि हो जायेगा तो आप अपना ही महत्व खो देंगे ! ऐसी स्तिथि में वस्तुत :  व् जिद्दी बन सकता है और झूठी प्रसंशा की ओर  लालायत हो जायेगा जिसका नुक्सान उसे तो होगा   ही किन्तु भविष्य में आपकी भी दुखद स्तिथि बनने का अंदेशा रहेगा !
यदि बड़े बच्चों का उचित समय पर उचित प्रसंशा करेंगे  तो बच्चों के मन में इसका सकरात्मक प्रभाव तो दिखेगा ही साथ में वे इस गुण के साथ आस पास के परिवेश में  व्यवहार करते दिखेंगे !किन्तु इसके विपरीत उनके कार्यों को दूसरों के साथ तुलना करते हुए उनकी आलोचना करेंगे तो यही बच्चे न केवल हीन भावना का शिकार होंगे अपितु अपनी त्रासदी से आस पास के माहौल को भी कुंठाग्रस्त बना देंगे !
सभी व्यस्क यह ध्यान रखें कि  हमे बच्चों के सुख दुःख में समभाव रखना है और उन्हें निरंतर प्रगति पथ पर अग्रसर करना है ! उसेउनकी  हार में अकेला न छोड़े  बल्कि उसके मनोदशा में साथ देना है ,इससे उसका मनोबल बढेगा  और उसका ह्रदय भी दूसरों के लिए विशाल बनेगा ! इन्ही भावनाओ को लेकर जब वह  अपने परिवेश में कार्य करेगा तो उसमें आपकी आदतों का प्रतिबिम्ब  स्पष्ठ  दिखेगा ! यदि हम हर स्तिथि में उनका साथ देते हैं  और उसके अच्छे कार्यों पर उनका हौसला बढ़ाते हैं  ,तो आप यह समझ लें की आप  देश के प्रति अपने दायित्व  निबाह रहे हैं ! बच्चों के साथ मित्रता रखेंगे तो उनको भी अहसास  होगा कि दुनिया सुंदर है वे जीवन का मकसद समझेगें।
बच्चों का मन कोमल फूलों की पंखुड़ियों  समान होता है ! यदि बड़े उनकी प्रसंशा करते हैं  तो यही गुण उसके व्यक्तित्व का अभिन्न अंग बन जायेगा ! घर में आनन्द का माहौल रहेगा तो बच्चों के भीतर सकरात्मक उर्जा  का संचार होगा  और इस प्रतिस्पर्धा के दौर में वे किसी प्रकार के बोझ में नहीं दबेंगे ! यह भी ध्यान रखे कि  यदि हम उनकी गलतियों में उनको सकरात्मक  दिशा न डकार उनकी आलोचना करेंगे तो वे भी बात बात में आपकी कमियाँ ढूँढने से न चूकेंगे  और आपसे नजरे चुरायेंगे ! कुछ बच्चे दब्बू भी बन जाते है !उनके साथ दुश्मनी भरा सौतेला व्यवहार मत कीजिये अन्यथा वे अपनी कुंठाओं के आग में समाज के विध्वंशक  बन जायेंगे जिसका पश्चताप भी नहीं हो सकेगा ! रास्ट्र  के  निर्माण  में हमे  अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निबाहनी है ! आएँ  हम सभी मिलकर प्रसंशा टॉनिक  का प्रचार करें ! हमेशा याद रखें  कि'' यदि आप चाहते हैं कि आपका बच्चा सही मार्ग पर चले, तो केवल उसे सही मार्ग की जानकारी प्रदान न करें, बल्कि उस पर चल कर भी दिखाएं।'' ~ जे. ए. रोसेनक्रांज

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