बुधवार, 2 जनवरी 2013

 जन जाग्रति अभियान   
अनैतिकता ,मूढ़मान्यता  और कुरीतियों  के कारण होने वाले भयंकर अनर्थों से अब भारत को बचाना होगा ! पिछले वर्ष की गतिविधियों का अवलोकन करने से नैतिक , बौद्धिक  और सामाजिक  क्षेत्रों में अनेक अनीतियाँ  देखने  में आयीं  जिनके विरुद्ध जनमत और आक्रोश भी फैला ! लोक चिंतन को उत्कृष्ट्ता की दिशा  में अग्रसर करने वाले चेतन साहित्य को बढ़ावा  देना होगा ! यह चिंतन हर वर्ग तक पहुंचाने से एकता व् समता के सिद्धांतों  को मान्यता मिल पायेगी ! 
चिंतन चरित्र निर्माता व् प्रेरणा स्त्रोत होता है जिसमें श्रधा  ,निष्ठा एवं अटूट विश्वास के भाव जागृत हो  ऐसे लोगों को एकजुट होकर इस दिशा में कार्यरत होना चाहिए ! यदि सिद्धांतो  के प्रति हम निष्ठावान नहीं हुए तो  भटकाव युही बना रहेगा ! हर जिम्मेदार व्यक्ति को अपने चिन्तन व् कर्मों से सदैव अपने को आस्थावान बनाकर रखना है !
नव युग चेतना का आधार आत्मीयता होना चाहिए ! जब भी किसी कार्य के प्रति संकल्प लेते हैं , तो भावनाओ  की रस्सी ढीली यदि रखेंगे तो मनुष्य के भटकने का खतरा और यदि  कसाव रखेंगे तो उलंघन का खतरा सदैव बना रहेगा ! इसीलिए प्यार ही वर्तमान परिस्तिथि में सामाजिक बंधन में मजबूती लाएगा ! अपने व्यक्तिगत यश की कामना में या गरीबी से जूझ रहे जीवन का अक्सर  सामाजिक भटकाव की ओर  ध्यान नहीं जाता ! वे यह सोचते हैं कि  यह कार्य सरकार का है ! उन्हें इन फालतू चीज़ों के लिए  समय ही कहाँ ! ऐसे लोग सामाजिक दायित्व के साथ विश्वासघात  करते हैं !
समय की परिपाटी में हम यह  नहीं समझ पाते कि सामाजिक  दायित्वों से मुह मोड़कर ,हम अपना पतन स्वत : ही कर रहे हैं , जिसके फलस्वरूप  न केवल आप अपितु आपकी जीवात्मा  आने वाले कल में आत्मग्लानि से पीड़ित रहेगी ! अब तक  समाज में जो कुछ हो रहा है , उसके प्रति सजग होने का समय आ गया है ! हमारे व्यक्तित्व का स्तर जितना ऊँचा  होगा ,उसी से पारिवारिक शक्ति और सामाजिक जागृति बढ़ेगी !
छोटे बच्चों  द्वारा शिष्टाचार  पालन में ढील  को हंसकर टाला  जा सकता है पर बड़े होकर मर्यादाओं का पालन अत्यंत  आवश्यक हो जाता है ! अब समय आ गया है कि बाल्यकाल  से ही आचरण  पर पैनी नजर रखनी होगी ! समाज में बिखरे  अनगिनत माणिक्यों को ढूंढकर ऐसे समूह का निर्माण करें ,जिसका कार्य जन जाग्रति अभियान से घर  घर के मोतियों को तराश कर समाज की सुंदर  माला  तैयार की जा सके ! घर के बच्चों में संस्कारों का आभाव या उनके आचरण में कमी दिखे तो उन्हें  समय रहते ही सुधार लिया जाए ! ताकि वे भी विचारशील लोगों की मधुर कड़ी में सम्मिलित हो जायें ! ऐसे व्यक्तियों के आभाव में ही तो आज समाज का कुरूप चेहरा सामने आ रहा है !
अध्यात्म व् नैतिक शिक्षा का प्रचार व् प्रसार अत्यंत जरूरी है ! सत्प्रवृतियों  की प्रतिष्ठापन  व् हर बच्चे का उत्साहवर्धन समाजिक दर्पण में स्पस्ट दिखना चाहिए ! जो लोग आत्मविश्वास के धनी और धैर्यवान होते हैं वे इन परिस्तिथियों पर आसानी से विजय प्राप्त  कर लेते हैं !
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