गुरुवार, 24 जनवरी 2013

इलेक्ट्रोनिक  मीडिया  का बच्चो  पर प्रभाव 

आज  के आधुनिक  समाज में  इलेक्ट्रोनिक  मीडिया  आसानी से पूरी दुनिया हमारी मुट्ठी में कैद कर रही है ! हमारे बच्चे  भी  इसका भरपूर उपभोग कर रहे हैं ! स्कूल जाने वाले मासूम बच्चे और युवा  हिंसा , नशाखोरी ,आत्महत्या जैसे  अवसाद युक्त  समस्याओं   के भंवरजाल में फंसते जा रहे हैं ! आज का बच्चा तकनीकी और आधुनिक इलेक्ट्रोनिक उपकरण को इस्तेमाल करने में महारत हासिल कर रहा है ! समाजशास्त्रियों व् मनोवैज्ञानिको  के अनुसार आधुनिक जीवन शैली के कारण बढ़ता एकाकीपन संयुक्त परिवार का बिखरना और अभिभावकों के पास समय का आभाव  बच्चों को दिशा विहीन बनाता जा रहा है !

अभिभावक  अपने बच्चों  को घंटो टी .वी  और कम्पयूटर  के सामने बैठे रहने की अनुमति  देकर उन्हें कैंसर की ओर  धकेल रहे हैं ! बच्चों में मोटापे , हृदय  रोग , डायबटीज  जैसी बीमारियाँ बढ़ रही हैं ! साथ  में  उदासीन  जीवन शैली की  ओर  बढ़ता  रुझान  भी  दृष्टीगोचर  हो  रहा है ! निरंतर इन उपकरणों  के आगे बैठने से चर्बी से ग्रसित बच्चे कैंसर  विशेषकर चर्म  कैंसर के शिकार हो रहे हैं ! इस प्रतिस्पर्धा के युग में उचित माहौल न मिलने की वजह से बच्चों में आत्मविश्वास घटा है ! अभिभावक भी धनौपार्जन की दौड़ में अपने  बच्चो की मौलिक आवश्यकताओं  की बस खानापूर्ति  कर स्वय को जिम्मेदारी  से मुक्त समझने की भूल कर रहे हैं ! यही वजह है कि  बच्चों ने अपने को दूसरे  आधारों में  उलझाना आरम्भ कर दिया है ! 

जीवन में सफलता और सुख वही  व्यक्ति प्राप्त करता है जो निर्धारित लक्ष्य प्राप्त करने के लिए योजनाबद्ध  तरीके से कार्य करता है ! बच्चों को उनकी रुचियों  के अनुरूप स्वयं को ढालने देना चाहिए  तभी वे अपनी उर्जा का पूर्णरूप से सदुपयोग कर पायेगा और उसका लाभ उठा पायेगा ! उसे अपने आसपास की परिस्तिथियों को झेलने की क्षमता आनी चाहिए ! उन्हें उनके कर्तव्य बोध पर प्रेरित करने के लिए उनका रूझान  अच्छी पुस्तकें पढने की ओर  बढ़ाना चाहिए ! आज के आपाधापी और धन संग्रह की ओर  इतना आकर्षण  है कि  उस पर मानवीय  मूल्य  दाँव  पर लग गए हैं ! मानव जीवन  के प्रतिमान भी बदल रहे हैं जिसका घातक प्रभाव परिवार पर पड़ रहा है फलस्वरूप समाज प्रभावित होना भी सुनिश्चित है ! 

अभिभावक को बच्चों में संस्कारों  की नीव की सोच विलुप्त होती जा रही है ! बस बच्चों को छोटी उम्र से ही धनोर्पाजन का माध्यम  समझा जाने लगा है और नैतिक मूल्यों के स्थान पर फूहड़ संस्कृति को अपनाकर  अभिमानी हो रहे हैं !  संस्कार विहीन वातावरण में पले  बच्चों का रूझान  भी अनुशाशनहीनता  ,अकर्मण्य  और सुख सुविधाभोगी बनते जा रहे हैं ! संयुक्त परिवारों के विघटन से सीधा असर बच्चों में नैतिक मूल्यों की कमी के रूप में सामने आई ! पहले बड़े बूढों  की छत्र छाया में बच्चे हितोपदेश  कहानियों से नैतिक मुल्य स्वत : ही ग्रहण कर लेते थे और आपसी सम्बन्धों में मिठास झलकती थी किन्तु एकल परिवार में यह एक अभिशाप ही है कि  बच्चे का लगाव अपने माता  पिता से रहता है वह भी तब तक जब तक वह स्वय  कमाने  के काबिल नही होता बाद में जैसे उसे प्राप्त होता है वह वैसे  ही लौटा देता है ! हम अभिवाहक  अपने बच्चों को अपने महत्वकांक्षाओं की पूर्ती में उसकी नैतिक अवहेलना कर रहे हैं जिसके फलस्वरूप वे भी संस्कारों को मात्र स्कूली शिक्षा  का एक विषय समझकर नजर अंदाज कर देते हैं ! 

वर्तमान परिदृश्य  में अभिभावक अपने बच्चों की नित्य दिनचर्या  से चिंतित होते जा रहे हैं !  इसके लिए यह बहुत सोचनीय  हो गया है कि  बच्चों को अच्छे लक्ष्यों की ओर  कैसे  प्रेरित करें ! अभिभावक बच्चों के साथ कम्युनिकेशन  बनाकर रखें ! वे कभी किसी उलझन में न रहे ! कोई परेशानी पर उसे ह्तोसाहित  न  करें ! स्वय  को उसको कोसने के  बजाय  समाधान ढूँढने  का  पर्यास करें ! धैर्य से उसे उसकी गलतियाँ  दिखाएं और फिर उसका मार्गदर्शन करें ! उसके टी . वी . देखने का समय सुनिश्चित करें  और उसे कुछ खास ज्ञानवर्धक चैनलों  की ओर  प्रेरित करें ! उसको तनाव देने के बजाय  उसके  मन को  प्रफुलित  रखेंगे तो वह स्वय  घर परिवार की ओर  रूझान  बढेगा ! उनमें  किसी  प्रकार  के  नकारत्मक  भाव न पनपने दें ! वस्तुत : बच्चों के सामान्य व्यवहार से उनके व्यक्तित्व पर गहरा  असर पड़ता है जो अभिभावक और अन्य  पारिवारिक सदस्यों  की गतिविधि  के अनुरूप ढलती चली जाती है ! 

बच्चों को आधुनिक मीडिया  के  दुस्प्रभाव से बचाने  के लिए अभिभावकों की न केवल नैतिक जिम्मेदारी होती  है बल्कि  उन्हें स्वय अपने लिए भी मापदंड तय  करने होंगे ! बच्चों पर दबाब और उससे जुड़ने से मना करने से पहले समय सारिणी निश्चित किया जाना चाहिए ! उनकी महत्वपूर्ण गतिविधियों पर नज़र रखें , नियम बनाएं और उसे ईनाम  से जोडें ! अपने अभिमान की ज्वाला से उनके कोमल मन को ठेस न पहुंचाएं  , उन पर अपने कड़े नियम थोपने से बचें  ! इन्टरनेट , मोबाइल  और टी .वी  सबके सकरात्मक व् नकारात्मक प्रभाव होते हैं ! बच्चों के लिए  उचित और क्या अनुचित इसको अभिभावक ही सुनिश्चित कर सकते हैं ! उन्हें अध्यन  की ओर  इस सुविधा का इस्तेमाल सिखाएं ,जानकारी बढे किन्तु सही दिशा  की  ओर ! बच्चों को अच्छे क्रिया कलापों की ओर  प्रेरित करें ! उनके के साथ मैत्री भाव रखते हुए उनके साथ समय बिताएं ! उनके मन मस्तिष्क पर आप एक खौफ नहीं मित्र के रूप में दिखें ताकि वह बाहय  दुनिया की ओर  न मुड़े !

 आज जरुरत हैं नैतिक मूल्यधारा  का पुनर्निर्माण  ताकि हमारे  बाल गोपाल सुंदर ,स्वस्थ ,और चिंतनशील व्यक्तित्व वाले हो , जो खुशहाल भारत के निर्माता बनेंगे ! बच्चों को यह शिक्षा दी जानी चाहिए कि  सम्पूर्ण  रास्ट्र की बागडोर उस पर है ! श्रेष्ठ  विचार बच्चों के व्यक्तित्व निखारते हैं तो दूषित आचरण उनका पूरा जीवन नस्ट करता है !  शिक्षकों  की  भी  भूमिका है कि  वे अपने शिष्यों को पतन के मार्गी न बनाने दें ! उनको कुटिलता और शोषण करने की प्रवृति से बचाएँ !
 इसके अलावा सरकार  का भी दायित्व है कि वह कार्यक्रमों पर तीखी दृष्टी बनाये रखे कि  किस कार्यक्रम  की क्या सामग्री परोसी जा रही है ! जब परिवार के सदस्य  सीरिअल्स  को देखने में खुद को आधुनिक समझते हैं तो  फिर आप बच्चो पर अपने नियम कैसे थोप सकते हैं ! . जितने भी सास बहु से केन्द्रित सीरियल हैं उसमें समाजिक परिवेश   का विघटन स्पष्ठ  दिख रहा है ! आधुनिकता के नाम पर गलत चीज़ों को आसानी से उपलब्ध करवाने से बचना होगा ! इसके लिए सरकार  द्वारा कड़े नियम लागु करवाने की आवश्यकता है साथ ही यह भी महत्वपूर्ण है की समाज का प्रत्येक जागरूक सदस्य अपनी भूमिका सही ढंग से निबाह रहा है या नहीं ! 
हम सभी को याद  रखना होगा कि " आदर्श, अनुशासन, मर्यादा, परिश्रम, ईमानदारी तथा उच्च मानवीय मूल्यों के बिना किसी का जीवन महान नहीं बन सकता है" ~ स्वामी विवेकानंद

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