बुधवार, 9 जनवरी 2013



 विद्यार्थियों में आत्महत्या का बढ़ता प्रचलन

प्रसिद्ध चिंतक अरस्तु ने कहा था कि आप मुझे सौ अच्छी माताएं दें तो मैं तुम्हे एक अच्छा रास्ट्र दूंगा ! माँ के हाथो में राष्ट्र निर्माण की कुंजी होती है किन्तु आज ऐसी माताओं व् सोच की कमी सी महसूस हो रही है ! जीवन स्तर बढने के साथ -साथ , भौतिक प्रतिस्पर्धा भी अपने चरम पर है जिसका दुस्प्रभाव तनाव युक्त जीवनशैली से आत्महत्या का बढ़ता चलन देखने में आ रहा है ! आज के समाज में आत्महत्या जैसा आत्मघाती कदम एक अभिशाप बन गया है ! बड़े दुःख का विषय है कि आज विद्यार्थीयों में लग्न व् मेहनत से विद्या ग्रहण करने की प्रवृति लुप्त होती जा रही है वे जीवन के हर क्षेत्र में शार्टकट मार्ग अपनाना चाहते हैं और असफल रहने पर आत्महत्या जैसे दुस्साहसी कदम उठा लेते है !आजकल अभिभावक भी स्वयं बच्चों पर पढाई और करिएर का अनावश्यक दबाब बनाते हैं ! वे ये समझना ही नहीं चाहते कि प्रत्येक बच्चे की बौद्धिक क्षमता भिन्न होती है और जिसके चलते हर छात्र कक्षा में प्रथम नहीं आ सकता ! बाल्यकाल से ही बच्चो को यह शिक्षा दी जानी चाहिए कि असफलता ही सफलता की सबसे बड़ी कूंजी है ! यदि बच्चा किसी वजह से असफल होता है तो वह पारिवारिक एवं सामाजिक उल्हाना के भय से आत्महत्या को सुलभ मान लेता है ! जिसके बाद वे अपने परिवार और समाज पर प्रश्नचिन्ह लगा जाते हैं !बच्चों में आत्मविश्वास की कमी भी एक बहुत बड़ा कारक है !

आज खुशहाली के मायने बदल रहे हैं अभिभावक अपने बच्चों को हर क्षेत्र में अव्वल देखने व् समाजिक दिखावे के चलते उन्हें मार्ग से भटका रहे हैं ! एक प्रतिशत के लिए यह मान लिया जाये कि वे बच्चे कुंठा ग्रस्त होते हैं जिन परिवारों में शिक्षा का आभाव होता है किन्तु वास्तविकता यह है की गरीब बच्चे फिर भी संघर्षपूर्ण जीवन में मेहनत व् हौसले के बलबूते अपनी मंजिल पा ही लेते हैं ! किन्तु अक्सर धन वैभव से भरे घरों में अधिक तनाव का माहौल होता है और एक दूसरे से अधिक अपेक्षाएं रखी जाती हैं ! साधन सम्पन्न होने के बाबजूद युवा पीढ़ी में आत्महत्या के आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं !

मनोचिकित्सक का मानना है कि खुदखुशी कोई मानसिक बीमारी नहीं बल्कि मानसिक तनाव व् दबाब का प्रभाव होता है !असंतोष इसका मुख्य कारण है ! कुछ वर्षों से दस से बाईस वर्ष के बच्चे आत्महत्या को अपना रहे हैं ! परीक्षाओं का दबाब ,सहपाठियों द्वारा अपमान का भय , अध्यापकगण की लताड़ या व्यंग न बर्दास्त करने की क्षमता उन्हें इस मार्ग की ओर धकेल रहा है ! शहरों की भागदौड़ भरी जिन्दगी में बच्चे वक़्त से पहले परिपक्व हो रहे हैं जिसके फलस्वरूप वे अपने निर्णय स्वयं लेना चाहते हैं और अपने द्वारा लिए गए निर्णयों के अनुसार आशातीत परिणाम प्राप्त न होने पर आत्महत्या का निर्णय ले लेते हैं ! यही नहीं माता पिता की आकांक्षाओ की पूर्ति का दबाब वे अपनी जिन्दगी पर न सह पाने की वजह और सही निर्णय न लेने की स्तिथि में उन्हें यह मार्ग सुगम दिखता है !

आज के सन्दर्भ में दोष उन अभिवाहकों का है जो अपने बच्चों की प्रदर्शनी लगाना चाहते हैं मानो वह भी आज की उपभोगतावादी संस्कृति के चलते एक वस्तु हो और उन्हें जीवन के हर क्षेत्र के लिए अधिक से अधिक मूल्यवान बनाया जा सके यही कारण है की आज परिवार अपने मौलिक स्वरुप से भटक कर आधुनिकता की बलिवेदी पर होम हो रहे हैं ! भावनाओं व् संवेदनाओं से शून्य होते पारिवारिक रिश्ते कलुषित समाज की रचना कर रहे हैं !अभिभावकों को समझना होगा की बच्चे मशीन या रोबर्ट नहीं हैं ! बच्चों को बचपन से अच्छे संस्कार दिए जाने चाहिए ताकि वे अपनी मंजिल पर अपनी खुद चुने किन्तु आत्मविश्वास न खोएं ! बच्चों को सहनशील , धैर्यवान , निर्भिक , निर्मल , निश्चल बनाना है तो स्वत : अपने स्वभाव परिवर्तित करें ! बाल सुलभ मन में चरित्र का प्रभाव पड़ता है ! शिक्षा का नहीं आचरण की सभ्यता बाल सुलभ मन पर अधिक प्रभाव पढ़ता है ! शिक्षा का अंतिम लक्ष्य सुंदर चरित्र है ! मनुष्य के व्यक्तित्व के सभी पहलुओं का पूर्ण और संतुलित विकास करता है ! इसके अंतर्गत बच्चों में पाँचों मानवीय मूल्यों अर्थात सत्य , प्रेम , धर्म ,अहिंसा और शांति का विकास होता है !आज की शिक्षा बच्चों को कुशल विद्वान् एवं कुशल डॉक्टर , इंजीनियर या अफसर तो बना देती है परन्तु यह वः अच्छा चरित्रवान इंसान बने यह उसके संस्कारों पर निर्भर करता है ! एक पक्षी को ऊँची उड़ान भरने के लिए दो सशक्त पंखो की आवश्यकता होती है उसी प्रकार मनुष्य को भी जीवन के उच्च लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए दोनों प्रकार की शिक्षा अपने बच्चों को अवश्य दें ! सांसारिक शिक्षा उसे जीविका और आध्यात्मिक शिक्षा उसके जीवन को मूल्यवान बनाएगी !

बच्चों को  श्री हरिवश राय बच्चन जी की कविता के अंश जरुर पढ़ने चाहिए

असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।

बच्चों की भी ध्यान रखना होगा की जिन्दगी बहुत कीमती है और वे जिस समाज में रहते हैं उसके प्रति उनकी भी नैतिक जिम्मेदारी हैं जिसका निर्वाहन करना उनका फ़र्ज़ है ! वे जिस समाज में रहते हैं , उसका सम्मान करें क्यूंकि उस समाज ने उनके लिए बहुत कुछ किया है और सामाजिक प्राणी होने के नाते आप अपनी जिम्मेदारी निभाए बिना कैसे इस दुनिया से चले जाना चाहते हैं ? सिर्फ इसलिए कि कि आप चुनौतियों से घबरा गए हैं ! खेद इस बात का नहीं होना चाहिए की आप असफल हुए हैं बल्कि आप की वजह से आपके माता पिता का समय ,धन व् सम्मान को ठेस पहुंची ! जीवन को चुनौती समझकर दृढ़ता से उस पर आने वाली चुनौती का डट कर सामना करें और अपनी गलतियों का अवलोकन कर इस द्रढ़ता से परीक्षा की तैयारी करें और कठिनाई के समय अपने शिक्षक ,अभिभावक को अपना मित्र समझ अपनी परेशानी उन्हें बताएं और स्वयं  पर हीनता के भाव कदापि न आने दें ! आत्मविश्वासी  बच्चे  उज्ज्वल भारत निर्माण  का संचार अब घर घर में हो !

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1 टिप्पणी:

  1. बच्चा मिटटी के ढेर की तरह है उसको जैसे सांचे में ढालना है वो मत पिता के ऊपर है हमारी धारणा है की माँ बाप चाहे तो किसीभी परिस्थिति मेंबच्चे को एक अच्छा इंसान बना सकते है

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